असंभव को संभव कर सकता है संकल्प: आचार्य विमलसागरसूरी
'मन का संकल्प कभी कमजोर नहीं होना चाहिए'
सामर्थ्य का सदुपयोग ही धर्म है
गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में मंगलवार को स्टेशन रोड स्थित जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि साधना या सत्कार्यों के लिए हमारा शरीर कमजोर हो सकता है, लेकिन मन का संकल्प कभी कमजोर नहीं होना चाहिए। साधना की सिद्धि और कार्य की सफलता सिर्फ परिश्रम से नहीं, दृढ़ संकल्प से मिलती है।
संकल्प में ऐसा बल होता है कि वह असंभव को संभव कर सकता है। भगवान महावीर स्वामी ने आगम शास्त्रों में और योगीश्वर श्रीकृष्ण ने गीता में संकल्प की दृढ़ता का मार्मिक वर्णन किया है। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि दुर्बल मनुष्य का दृढ़ संकल्प उसे सफलता दिला सकता है, जबकि बलवान मनुष्य का दुर्बल संकल्प उसे परास्त कर सकता है। जीवन में सही दिशा प्राप्त कर दृढ़ संकल्पपूर्वक हर व्यक्ति को अपनी कार्यसिद्धि के लिये आगे बढ़ना चाहिए।जैनाचार्य ने कहा कि पर्वत और पत्थर की चट्टानें बहुत मझबूत होती हैं, फिर भी लोहा उन्हें चूर-चूर कर सकता है। इस्पात चाहे जितना दमदार हो, अग्नि की घनी ज्वालाएं उसे पिघला सकती हैं। आग कितनी भी विकराल हो, शीतल पानी की तेज बौछारें उसे बुझा सकती हैं। इस प्रकार पत्थर से अधिक शक्तिशाली होता है इस्पात, इस्पात से ज्यादा ताकतवर है अग्नि और अग्नि से अधिक शक्तिमान है पानी, लेकिन मनुष्य का दृढ़ संकल्प सर्वाधिक शक्तिशाली माना गया है।
उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। वह सबको परास्त कर सकता है, चमत्कारों का सृजन कर सकता है। अगर मनुष्य की शक्ति पक्के संकल्प के साथ सही दिशा में लग जाती है तो दुनिया का नजारा बदल सकता है। दुर्भाग्य है जमाने का कि ज्यादातर लोगों की शक्ति और सामर्थ्य बुरे विचारों और गलत कार्यों में लग रहे हैं। सामर्थ्य का सदुपयोग ही धर्म है।
गणि पद्मविमलसागरजी ने साधकों को समय की महत्ता, साधना की आवश्यकता, मन की दृढ़ता और विचारों की पवित्रता के बारे में रोचक मार्गदर्शन दिया। कोषाध्यक्ष निर्मल पारेख ने बताया कि यहां तीन सौ पचास साधकों की तपस्या निर्विघ्न रूप से चल रही है। सचिव हरीश गादिया ने जानकारी दी कि दस व ग्यारह अगस्त को यहां तपस्या का दो दिवसीय पारणा उत्सव आयोजित होगा।


