अय्यर ने फिर संभाल लिया 'मोर्चा'?

वे पाकिस्तानी मीडिया में छा गए हैं

अय्यर ने फिर संभाल लिया 'मोर्चा'?

पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक सहायता तुरंत बंद होनी चाहिए

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने पहलगाम आतंकी हमले के बारे में जो बयान दिया है, उससे बिल्कुल भी हैरान होने की जरूरत नहीं है। हैरानी तो इस बात को लेकर है कि अय्यर अब तक खामोश रहे! विवादास्पद बयानों से अपनी ही पार्टी को कई बार नुकसान पहुंचा चुके अय्यर ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले 'मोर्चा' संभाल ही लिया। अपनी ताजा बयानबाजी के बाद वे पाकिस्तानी मीडिया में छा गए हैं। 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा पीटे गए इस पड़ोसी देश के लिए अय्यर के बयान एक मलहम की तरह हैं। वे यह कहकर भारत के कूटनीतिक प्रयासों पर सवालिया निशान लगा सकते हैं कि 'जिन 33 देशों में हम गए, उनमें से किसी ने भी पाकिस्तान को पहलगाम आतंकी हमले के लिए दोषी नहीं ठहराया ... न संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है और न ही अमेरिका ने ... सिर्फ हम ही कह रहे हैं कि पाकिस्तान इसके पीछे है, लेकिन कोई हमें गंभीरता से नहीं ले रहा', लेकिन 6 मई से लेकर एक पखवाड़े तक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की मुखमुद्राएं देख लें। पहले तो मुनीर एक तरह से गायब ही हो गए थे। बाद में जब सामने आए तो चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। शहबाज शरीफ खुद बुरी तरह घबराए हुए थे। उन्होंने उस समय जो बयान दिए, उससे उनकी ही पोल खुल गई थी। भारत ने जिन देशों में अपने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे थे, उनसे इस बात की उम्मीद नहीं की गई थी कि वे पाकिस्तान को खरी-खोटी सुनाएं और हमसे हमदर्दी जताएं। उनके पाकिस्तान के साथ अपने संबंध हैं। वे हमारे लिए ऐसा क्यों करेंगे? प्रतिनिधिमंडल भेजने का सबसे बड़ा मकसद था- उन देशों को पाकिस्तान की आतंकी हरकतों और उनसे जुड़े खतरों से अवगत कराना। इसमें भारत कामयाब हुआ है।

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उन देशों को भी पता चल गया है कि आतंकवाद की अंतरराष्ट्रीय राजधानी कहां है! कितने देशों ने हमारी सैन्य कार्रवाई का विरोध किया? यह इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडलों ने अपना काम बहुत अच्छी तरह से किया था। जब प्रतिनिधिमंडल गए थे तो उन्होंने वहां स्थानीय नेताओं, अधिकारियों से मुलाकातें की थीं। मीडिया को संबोधित किया था। इससे उन देशों से पाकिस्तान में होने वाले निवेश पर असर पड़ेगा, लोग पर्यटन से दूरी बनाएंगे, पाकिस्तानियों के लिए अवसरों में कमी आएगी। इन सबका असर इस्लामाबाद के खजाने पर पड़ेगा। हमें पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी मुहिम लगातार चलानी चाहिए। वहां आतंकवाद, ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, राजनीतिक अस्थिरता आदि का विवरण देकर सभी देशों की महत्त्वपूर्ण भाषाओं में सामग्री का निर्माण किया जाए और उसे नियमित रूप से दूतावासों को भेजा जाए। खासकर यूरोपीय देशों को इस मामले में सावधान किया जाए कि आपके यहां जिस तरह पाकिस्तानियों के झुंड के झुंड आ रहे हैं, वे भविष्य में गंभीर समस्या पैदा करेंगे। उन्हें इस खतरे से आगाह किया जाए। उन देशों में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। उन्हें विश्वसनीय सामग्री की जरूरत है। यूरोपीय देशों की सरकारें पाकिस्तान को समय-समय पर आर्थिक सहायता देती रहती हैं। उनके नागरिकों को बताना होगा कि आपके यहां से जो पैसा पाकिस्तान जाएगा, वह एक दिन बम बनकर लौटेगा। पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक सहायता तुरंत बंद होनी चाहिए। अगर यूरोप में ऐसा माहौल बन जाता है तो पाकिस्तान के आर्थिक हितों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। जहां तक किसी देश की सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर बयान देने या न देने का सवाल है तो हमें इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। हमें अपनी शक्ति, संकल्प, संसाधनों और एकता पर भरोसा होना चाहिए। हम अपने दम पर आतंकवादियों का खात्मा करेंगे।

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