सुख-सुविधाओं से नहीं, परिश्रम से मिलती हैं सफलताएं: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
'बैठे-बैठे तो मात्र समय और जीवन बर्बाद होता है'
'इतिहास उन्होंने बनाए हैं जिन्होंने पसीना बहाकर जीवन को तपाया है'
गदग/दक्षिण भारत। गुरुवार को स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में स्टेशन रोड स्थित जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में धर्मसभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि भगवान महावीरस्वामी और तथागत बुद्ध ने समस्त सुख-सुविधाओं के बावजूद गृहत्याग कर साधना की थी।
दुनिया में ऐसे हजारों-हजारों लोग हुए हैं, जो अत्यंत अभावों के बीच भी परिश्रम पूर्वक सफताओं के ऊंचे शिखर पर पहुंचे हैं। बैसाखियों और सुख-सुविधाओं के बलबूते पर सफलताओं के दिवास्वप्न देखना पागलपन है। बैठे-बैठे कुछ नहीं होता।पशु-पक्षियों को भी प्रतिदिन अपने दाना-पानी का भटक-भटक कर इंतजाम करना पड़ता है। बैठे-बैठे तो मात्र समय और जीवन बर्बाद होता है। इतिहास उन्होंने बनाए हैं जिन्होंने पसीना बहाकर और संघर्ष कर जीवन को तपाया है। बड़े मुकाम हासिल करने के लिए लक्जरी छोड़नी पड़ती है। बलिदान देने पड़ते हैं। परिवार और अरमान तो सबके होते हैं, पर चमत्कार उनसे नहीं होते।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि जीवन की सफलताओं का सरोवर कोई जन्म से भरकर नहीं आता, उसे तो पल-पल के प्रयत्न और बिंदु-बिंदु के संग्रह से भरना होता है। जन्म से मनुष्य महान नहीं होता, उसके कर्मों के अनुसार जीवन की गति निर्धारित होती है।
निपट भाग्य के भरोसे बैठे रहना अज्ञानता है। सत्पुरुषार्थ ही हमारे सद्भाग्य का निर्माण करता है। आगे बढ़ना है तो आलस्य को झकझोरना होगा। भगवान महावीरस्वामी ने तो प्रमाद को मृत्यु कहा है। सत्पुरुषार्थ का अभाव जीवन की उज्ज्वल संभावनाओं का समाप्तिकरण है। भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों क्षेत्रों में समय का सदुपयोग और सत्पुरुषार्थ ही सफलता का मूलमंत्र है।
गुरुवार को हरपनहल्ली, गंगावती, कोप्पल, कुकनूर, सेलम, मुंबई चलकेरे, बेंगलूरु हुब्बली आदि अनेक क्षेत्रों के श्रद्धालु उपस्थित थे। गणि पद्मविमलसागर ने सभी तपस्वियों के लिए अभिमंत्रित जल का विशिष्ट विधान किया। आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने वासनिक्षेप कर आशीर्वाद प्रदान किया। संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि शुक्रवार को धर्मसभा के बाद मेहंदी रचना का कार्यक्रम होगा।


