संकल्प दिवस बने गणतंत्र दिवस, अब मोदी सरकार लाए ये जरूरी कानून

संकल्प दिवस बने गणतंत्र दिवस, अब मोदी सरकार लाए ये जरूरी कानून

संकल्प दिवस बने गणतंत्र दिवस, अब मोदी सरकार लाए ये जरूरी कानून

देश के वीरों को नमन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो: भाजपा ट्विटर अकाउंट।

गणतंत्र दिवस का सुप्रभात उन अमर बलिदानियों, योद्धाओं, सुधारकों, राजनेताओं और हर उस व्यक्ति को नमन करने का दिन है जिनके प्रयासों से हम स्वतंत्र एवं गणतंत्र बने। हमने वैभव एवं विजय देखी, तो अपनी गलतियों से पराधीन भी हुए। यह दिन एक सरकारी त्योहार, रस्मअदायगी नहीं होना चाहिए। हमें अपनी शक्तियों का स्मरण करना चाहिए, साथ ही आत्ममंथन करना चाहिए।

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गणतंत्र की इस अनवरत यात्रा में मधुर, कड़वे, साधारण, अविस्मरणीय – कई प्रसंग आए। जो इसे सबसे अनूठा बनाता है, वह समय के साथ इसका मजबूत होना है। स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश शासन इस बात को लेकर तंज कसा करता था कि भारत में इतनी ज्यादा विविधता है कि अगर इनके हाथ में शासन दिया गया तो ये इस देश को चला नहीं पाएंगे।

हमने उन्हें गलत साबित कर दिया। भारत के संविधान निर्माताओं ने विविधता को पर्याप्त सम्मान दिया, हर भाषा के महत्व को स्वीकारा, हर राज्य को समान महत्व मिला, जरूर पड़ी तो नए राज्य भी बने, इसी का परिणाम है कि भारत तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद प्रगति के पथ आगे बढ़ता गया और बढ़ता जा रहा है।

जब अंग्रेज यहां से गए तो भारत को खंडहर बनाने की पूरी कोशिश करके गए। हमारे पूर्वजों ने इस देश को मेहनत से सींचा और आज का भारत आर्थिक, राजनीतिक, सैन्य महाशक्ति है। हमने अपनी यात्रा बैलगाड़ी से शुरू की थी, आज हम चांद को छूकर आ गए हैं। भारत के उपग्रह अंतरिक्ष में विचरण कर रहे हैं। यह उस संविधान की देन है जिसने हमें एक दिशा दी।

यह प्रगति हमारे लिए प्रसन्नता का कारण होनी चाहिए, संतुष्टि का नहीं। हमारा सामर्थ्य इससे कहीं ज्यादा प्राप्त करने का है। हमें इसे बेहतर स्थान पर होना चाहिए था। न हमारे पास संसाधनों की कमी है और न ही काम करने वाले हाथों की। यह गणतंत्र दिवस हमारे लिए एक संकल्प दिवस होना चाहिए, उन लक्ष्यों को प्राप्त करने का जिनका स्वप्न हमारे स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रनिर्माता देखा करते थे।

हमें आत्ममुग्ध होने के बजाय उन गलतियों से भी सीखना चाहिए जो जाने-अनजाने हमसे हुईं। भारतीय गणतंत्र ने आपातकाल का दंश झेला तो वोटबैंक के कारण तुष्टिकरण के रोग ने इसे शक्तिहीन करने का दुस्सास किया। कुछ राजनेताओं, पार्टियों ने अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद के पांसे फेंके। दशकों से चली आ रहीं समस्याओं को हल करने में रुचि नहीं ली। बल्कि अटकाने और भटकाने के दांव चलते रहे।

वहीं, यह गणतंत्र केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इन समस्याओं को गंभीरता से लेकर समाधान की ओर कदम बढ़ाने का साक्षी रहा। तीन तलाक जैसी कुप्रथा के खिलाफ कानून पर मुहर लगी, संसद ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निष्प्रभावी कर जम्मू-कश्मीर को असल मायनों में आज़ादी दी। उच्चतम न्यायालय से राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हुआ।

ये घटनाएं हमारे गणतंत्र के इतिहास में एक अमिट अध्याय के रूप में दर्ज होंगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि अभी रास्ता बहुत लंबा है, कई अवरोधक हैं, हमें धैर्यपूर्वक कदम बढ़ाते जाना है। जो सरकार इन्हें गंभीरता से लेकर धरातल पर काम करेगी, जनता उसका स्वागत करेगी। अगर विलंब होगा तो दबाव भी बनाएगी।

इसके लिए संसद से लेकर गांव, ढाणियों तक चर्चा होनी चाहिए, संवाद से समाधान के सूत्र तलाशे जाने चाहिए। दूरदर्शिता का दृष्टिकोण हो। क्षणिक लाभ के स्थान पर भविष्य उज्ज्वल बनाने के प्रयास होने चाहिए।

देश ने सामाजिक समानता की दिशा में बहुत प्रगति की है। अब जरूरी है कि संवैधानिक समानता आए। इसके लिए केंद्र समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने में गंभीरता दिखाए। इसके लिए अनुकूल वातावरण तैयार हो, इस पर देशवासी एकराय हों। इसके फायदे समझाए जाएं और सभी लोग खुले दिल से स्वीकार करें।

इसी प्रकार देश के मानव संसाधन की बेहतरी के लिए, सभी को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आवास आदि के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने के लिए जनसंख्या नियमन कानून लाया जाए। ‘हम दो, हमारे दो’ की अहमियत जनता बखूबी समझ रही है, इसलिए ऐसे कानून को लेकर वातावरण अनुकूल दिखाई पड़ता है।

अब भारत दशकों पुरानी समस्याओं में उलझे रहने का इच्छुक नहीं है। देश की साख और धाक दोनों बढ़नी चाहिए। उन बेड़ियों को संविधान के अस्त्र से काटना होगा जो दशकों से हमारे लिए रुकावट पैदा करती रही हैं। जनता ने राजग को प्रचंड बहुमत देकर केंद्र में भेजा है तो उसकी आशाएं भी ज्यादा हैं।

कोरोना महामारी ने जीवन एवं अर्थतंत्र के सामने बड़ी चुनौतियां पेश की हैं। अब समय है कि भारत को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जाए। यह तभी संभव हो सकता है जब देश का मन और धन मजबूत हो। सरकार और जनता दृढ़ निश्चय कर लें तो क्या नहीं हो सकता! सरकार ऐसे कानून, योजनाएं लाए जिससे देश का व्यवसाय बढ़े, भ्रष्टाचार पर लगाम लगे, सरकारी तंत्र की सुस्ती दूर हो, अभाव मिटे और आम जनता सुख पाए। भारत का गणतंत्र इक्कीस में ‘इक्कीस’ बने, यही मंगल कामना है।

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