एकजुटता का समय
सवाल पूछे जाने चाहिएं, लेकिन 'सही समय' का इंतजार करना चाहिए

सूचना एक ऐसी तलवार होती है, जिसका सही इस्तेमाल यकीनन फायदा पहुंचाता है
सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान प्रारंभिक नुकसान के कारणों का पता लगाने के संबंध में जो टिप्पणी की, उसे आधार बनाकर कुछ नेताओं ने जिस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की है, उससे परहेज करना चाहिए। यह न भूलें कि अभी भारत-पाक संबंधों में तनाव है। हमारा पड़ोसी देश कब आतंकी हरकतें शुरू कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह समय सवाल पूछने का नहीं, एकजुट होने का है। बेशक सवाल पूछे जाने चाहिएं, लेकिन उसके लिए 'सही समय' का इंतजार करना चाहिए। दुश्मन के खिलाफ शुरू किए गए अभियानों में खुद को भी नुकसान होता है। उसका पता लगाना चाहिए। भविष्य में उसे कम करने के लिए बेहतर रणनीति बनानी चाहिए। इन अभियानों से जुड़ी कौनसी जानकारी सार्वजनिक करनी है, इसके लिए बहुत सूझबूझ से फैसला लेना होता है। समय से पहले, या कहें कि गलत समय पर सबके सामने पेश की गई जानकारी का गलत इस्तेमाल भी हो सकता है। अगर पाकिस्तान दोबारा उकसावे की कार्रवाई करेगा तो भारत अपने तरीके से जवाब देगा। इस समय ऐसी कोई भी जानकारी सार्वजनिक क्यों की जाए, जिसका दुश्मन फायदा लेने की कोशिश करे? याद करें, जब पाकिस्तान के आतंकवादियों ने मुंबई पर 26/11 का हमला किया था तो कुछ समाचार चैनल 'सीधा प्रसारण' कर रहे थे। वे सच दिखा रहे थे, लेकिन उसका फायदा सरहद पार बैठे आतंकवादियों के आकाओं ने उठाया था। उन्होंने टीवी देखकर अपनी साजिशों में फेर-बदल किया और आतंकवादियों को सतर्क करते रहे।
सूचना एक ऐसी तलवार होती है, जिसका सही इस्तेमाल यकीनन फायदा पहुंचाता है। वहीं, यह दुश्मन के हाथ लग जाए तो वह उसके जरिए हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता है। जब सितंबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की गई तो भारत में कई लोगों ने उसके सबूत मांगे थे। उनमें से कुछ तो इतने 'तेजस्वी' थे कि सोशल मीडिया पर 'चाल, समय और दूरी' के आधार पर गणितीय गणना कर यह साबित करने में पूरा जोर लगा रहे थे कि इतनी जल्दी कार्रवाई करके वापस नहीं आ सकते। क्या सेना उन 'खास रास्तों' के बारे में सबको बता दे? अगर भविष्य में दोबारा वैसी कार्रवाई करने की जरूरत पड़ी तो क्या होगा? युद्ध सिर्फ नारों और भावनाओं से नहीं लड़ा जाता है। उसके लिए बहुत ध्यान से रणनीति बनानी होती है। दुश्मन को जाल में फंसाने के लिए अपने संसाधन भी दांव पर लगाने होते हैं। वर्ष 1971 में भारतीय नौसेना द्वारा पाकिस्तानी पनडुब्बी ग़ाज़ी को नष्ट करने के लिए बनाई गई रणनीति इसकी शानदार मिसाल है। नौसेना द्वारा ऐसे वायरलैस मैसेज भेजे गए थे, जिससे ग़ाज़ी का कमांडर जफर मुहम्मद खान गुमराह हो गया था। उसे लगा कि उसके पास आईएनएस विक्रांत को नष्ट करने का सुनहरा मौका है। उसके बाद पनडुब्बी ग़ाज़ी अपने आखिरी मुकाम की ओर बढ़ी और भारतीय नौसेना ने उसका शिकार कर इतिहास रच दिया। उसमें पाकिस्तान के लगभग 100 सैनिक मारे गए थे। सूचनाओं के सही इस्तेमाल का यह फायदा होता है। अगर उस युद्ध में 'पूरा सच' तुरंत ही सामने रख दिया जाता तो पनडुब्बी ग़ाज़ी हमारे चक्रव्यूह में नहीं फंसती। इससे देश को बड़ा नुकसान हो सकता था। जब 'ऑपरेशन सिंदूर' की योजना बनाई गई तो ऐसे बिंदुओं पर जरूर विचार किया गया होगा। भारतीय मिसाइलों ने पीओके से लेकर पाकिस्तान में विभिन्न आतंकी ठिकानों पर जिस तरह अग्निवर्षा की, उससे पहले हमारे सशस्त्र बलों ने दुश्मन की निगरानी प्रणाली को चकमा देने के लिए पूरा इंतजाम किया होगा। उसके बारे में 'सही समय' पर ही कोई जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। अभी हमारा ध्यान दुश्मन के मंसूबों को नाकाम करने पर होना चाहिए।About The Author
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