भारत और रूस को अमेरिका के साथ संतुलन बनाए रखने में एक अहम कामयाबी मिली है। अमेरिका ने रूस से एस-४०० मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने में प्रतिबंध से छूट की भारत की मांग के लिए राह तैयार कर दी है। अमेरिकी संसद ने अपना राष्ट्रीय रक्षा विधेयक-२०१९ पारित करके उस सीएएटीएस कानून के तहत भारत के खिलाफ पाबंदी लगने की संभावना को खत्म करने का रास्ता निकाल लिया है, जिसके जरिए अमेरिका उन देशों के खिलाफ प्रतिबंध लगाता है,जो रूस से महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणें की खरीद करते हैं। अमेरिकी कांग्रेस के सिनेट ने वित्त वर्ष २०१८-१९ के लिए एनटीएए-नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट यानी रक्षा विधेयक दस मतों के मुकाबले ८७ मतों से पारित कर दिया। यों यह विधेयक हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में बीते हफ्ते ही पारित हो चुका है। अब यह कानून बनने के लिए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के हस्ताक्षर के लिए ह्वाइट हाउस जाएगा। इस विधेयक में नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट के प्रावधान २३१ को खत्म करने की बात कही गई है। अब नए संशोधित प्रावधानों को कानूनी रूप मिलने के बाद भारत के लिए रूस से एस-४०० मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने में सहूलियत होगी। रक्षा विधेयक में प्रावधान किया गया है कि अमेरिका और अमेरिकी रक्षा संबंधों के लिए महत्वपूर्ण साझेदारों को राष्ट्रपति एक प्रमाणपत्र जारी कर सीएएटीएसए के तहत प्रतिबंधों से छूट दे सकते हैं।असल में रूस से एस-४०० एयर डिफेंस प्रणाली खरीदने के लिए भारत की मोदी सरकार अमेरिका की रजामंदी चाहती थी। लगभग ५.५ अरब, यानी ३९ हजार करो़ड रुपए के इस सौदे के लिए भारत को अमेरिकी कानून के तहत छूट की जरूरत थी। भारत ने अमेरिका को बताया था कि रूस से हथियार और साजो-सामान पर निर्भरता अचानक कम नहीं की जा सकती, क्योंकि देानों देशों के बीच दशकों से रक्षा क्षेत्र में आपसी सहयोग चल रहा है। अमेरिका में रक्षा और रणनीति से जु़डा एक वर्ग भी इस मामले में भारत के साथ रहा है, जो मानता है कि अगर भारत पर बंदिशें लगाई जाएंगी तो इससे अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते खराब हो सकते हैं्। जबकि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए अमेरिका के उप रक्षामंत्री जो फेलर ने हाल में ही कहा था कि हम भारत के साथ आपसी संबंध मजबूत बनाना चाहते हैं, इसे कमजोर नहीं करना चाहते। गौरतलब है कि भारत और अमेरिका ने हाल में रक्षा क्षेत्र में कुछ ब़डे समझौते किए है और अब भारत के लिए अमेरिका दूसरा सबसे ब़डा रक्षा आपूर्तिकर्ता बन गया है। खासतौर पर एयरक्राफ्ट और आर्टिलरी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग काफी ब़ढा है। बहरहाल, भारत अभी भी पनडुब्बियों और प्रक्षेपास्त्रों के लिए रूस पर बहुत हद तक निर्भर करता है क्योंकि अमेरिका इन्हें उपलब्ध करवाने में दिलचस्पी नहीं लेता।