सरलता में जीना सीखो: डॉ. समकित मुनि

'जितना सरलता में जीएंगे, उतना ही जीवन सहज और सुखमय बनेगा'

सरलता में जीना सीखो: डॉ. समकित मुनि

'जैसे-जैसे हम सरलता की राह पर चलेंगे, वैसे-वैसे जीवन की जटिलताएँ दूर होती जाएंगी'

चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल ट्रस्ट में चातुर्मासार्थ विराजित डॉ. समकित मुनिजी म.सा. ने शनिवार को अपने प्रवचन में कहा कि जीवन में अक्सर ऐसा होता है कि जो हम चाहते हैं वह हमें मिलता नहीं और जो हमें बिल्कुल नहीं चाहिए, वह मिल जाता है। 

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यश की इच्छा रखते हैं, पर नहीं मिलता। क्षमा धारण करना चाहते हैं, लेकिन गुस्सा आ जाता है। शांति का प्रयास करते हैं, मगर झगड़े हो जाते हैं। जिस कार्य के लिए प्रयास करते हैं, वह नहीं हो पाता और जिसका अनुमान तक नहीं होता, वही घटित हो जाता है।

उन्होंने कहा कि मित्र बनाना चाहते हैं, पर कभी-कभी बिना मतलब दुश्मन बन जाते हैं। प्रेम की चाह रखते हैं, लेकिन मिलता नहीं और जो नहीं चाहिए, वही मिल जाता है। भगवान महावीर ने इस स्थिति का समाधान बताते हुए कहा है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी न किसी जन्म में हम कपटी बने होते हैं और उसका परिणाम यही है कि हमारी इच्छाएँ पूरी नहीं हो पातीं। इसीलिए जीवन में सरलता की साधना जरूरी है। जितना अधिक हम सरलता में जीएंगे, उतना ही जीवन सहज और सुखमय बनेगा। 

मुनिश्री ने कहा कि आगमकार भी कहते हैं कि सरलता के साथ जीना सीखो। जैसे-जैसे हम सरलता की राह पर चलेंगे, वैसे-वैसे जीवन की जटिलताएँ दूर होती जाएंगी। प्रवचन में उन्होंने परदेशी की कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि परदेशी का राजा कपटी, अन्यायी और अत्याचारी था। ऐसे समय में जब केसी श्रमण का आगमन हुआ तो समाज में जागृति आई। 

मुनिश्री ने आगे कहा कि यदि किसी के दुख में सुख न पहुँचा सको तो कम से कम उसे और दुखी मत करो। यदि कुछ नहीं कर सकते तो मंगल कामना जरूर करनी चाहिए। इंसान मरते दम तक उस व्यक्ति को याद रखता है जिसने उसके बुरे वक्त में साथ दिया हो। इसलिए जीवन का मूल मंत्र यही है कि दूसरों के लिए सहायक बनो। 

इस अवसर पर किशनलाल खाबिया, गौतमचंद काटारिया, महावीर सिंघवी, गौतमचंद बोहरा सहित अनेक श्रावक-श्राविकाएँ उपस्थित रहे। मंच संचालन मंत्री विनयचंद पावेचा ने किया।

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