सभी धर्मों से श्रेष्ठ धर्म है अहिंसा, दया, तपस्या: डॉ. वरुणमुनि

'प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का वास माना गया है'

सभी धर्मों से श्रेष्ठ धर्म है अहिंसा, दया, तपस्या: डॉ. वरुणमुनि

'सेवा धर्म सबसे कठिन है'

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। यहां गांधीनगर के गुजराती जैन संघ में डॉ. वरुणमुनिजी म.सा. ने शनिवार को अपने प्रवचन में कहा कि दीन, दुखी और पीड़ित प्राणियों की अनदेखी करना प्रत्यक्ष रूप से धर्म और परमात्मा का अपमान करने के समान है। प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का वास माना गया है। उसकी सेवा में समर्पित होना चार धामों की यात्रा करने के बराबर है। प्रत्येक धार्मिक स्थान सेवा के केंद्र बनें। 

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उन्होंने कहा कि अहिंसा, दया, तपस्या सभी धर्मों से श्रेष्ठ धर्म हैं और सेवा धर्म सबसे कठिन है। सभी धर्मों की उपासना पद्धति अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सेवा को सभी धर्मों ने प्रथम स्थान दिया है। 

सत्संग के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए मुनिश्री ने कहा कि अपने जीवन में ज्ञानवान महापुरुषों का सत्संग करने से व्यक्ति जीवन में सफलता की नई ऊँचाइयों को प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि जैसी संगति होती है, वैसा ही रंग होता है। अर्थात, जिस व्यक्ति के साथ वह रहता है, जिस वातावरण में वह काम करता है, वैसा ही वह बन जाता है। 

दोष और गुण, बुराई या अच्छाई अच्छी या बुरी संगति से प्राप्त होते हैं। निम्न लोगों की संगति बुद्धि का नाश करती है। समान विचारों और आचरण वाले लोगों के साथ रहने से समानता मिलती है और विशिष्ट लोगों के साथ रहने से विशिष्टता प्राप्त होती है। संचालन राजेश मेहता ने किया।

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