साफ हवा का सवाल

स्वच्छ पर्यावरण के लिए पहल कौन करे?

साफ हवा का सवाल

दिल्ली की हवा कर रही लोगों को बीमार

शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) द्वारा तैयार की गई एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) 2025 रिपोर्ट दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति के गंभीर नतीजों को बयान करती है। रिपोर्ट के तथ्यों और निष्कर्षों से सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है। दिल्ली की तस्वीर बदल देने का क्रांतिकारी वादा कर सत्ता में रही आम आदमी पार्टी (आप) ने भी इस मामले में निराश ही किया। साफ हवा और पर्यावरण की रक्षा को कितनी पार्टियां अपना मुद्दा बनाती हैं और सत्ता में आने के बाद कितनी इन पर गंभीरता से काम करती हैं? 'ऊंची इमारतें, चौड़ी सड़कें, सरपट दौड़ते वाहन' - यह तस्वीर विकास की एक झलक पेश करती है, लेकिन विकास का यही एकमात्र पैमाना नहीं होना चाहिए। क्या होगा अगर करोड़ों का बंगला बना लिया और शहर की हवा आपको बीमार कर रही हो? एक्यूएलआई 2025 रिपोर्ट का दावा है कि 'दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण हर निवासी की जीवन प्रत्याशा औसतन लगभग 8.2 वर्ष कम हो रही है!' अगर लोग लंबी अवधि तक इस हवा में सांस लेंगे तो उन्हें कई बीमारियां हो सकती हैं। यह समस्या सिर्फ दिल्ली की नहीं है। भारत के कई शहर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं। अगर समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में समस्या गंभीर हो सकती है। ज्यादातर शहरों के बाजारों और सब्जी मंडी वाले इलाकों में सुबह-सुबह लोग कचरा जलाते दिख जाएंगे। उन्हें लगता है कि वे इस तरह स्वच्छता में योगदान दे रहे हैं, जबकि इससे वायु प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।

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लोग साफ हवा का महत्त्व समझने लगे हैं, लेकिन समस्या है- पहल कौन करे? सब जानते हैं कि वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैलाता है। कितने लोग अपना वाहन होने के बावजूद सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं का इस्तेमाल करना चाहेंगे? निर्माण संबंधी गतिविधियों से प्रदूषण होता है। हवा में उड़ते धूल के कण उन लोगों के लिए ज्यादा तकलीफदेह होते हैं, जिन्हें सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। इन गतिविधियों को रोकने से कई लोगों के रोजगार पर संकट मंडरा सकता है। लिहाजा मलबे को ढक कर, पानी का छिड़काव कर और अन्य वैज्ञानिक विधियों से वायु प्रदूषण पर काबू पाना चाहिए। पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाने से निकलने वाला धुआं हर साल दिल्ली में मुसीबत पैदा करता है। इन गतिविधियों को सख्ती से रोका जाना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने पराली जलाने के विकल्प ढूंढ़ें हैं, जो खेती के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। सरकारों को उनके इस्तेमाल को प्रोत्साहन देना चाहिए। शहरों में पर्यावरण प्रदूषण की एक बड़ी वजह गांवों से लोगों का पलायन है। जहां आबादी का ज्यादा दबाव होता है, वहां संसाधनों की खपत बढ़ती है। जो लोग शहर जाकर आर्थिक कारणों या जगह की कमी होने से छोटे-छोटे कमरों या झुग्गियों में रहने को मजबूर होते हैं, वहां साफ हवा कैसे उपलब्ध होगी? कुछ लोग मेहनत-मजदूरी करने आते हैं, लेकिन उन्हें शहर में आशियाना नहीं मिलता। वे सड़क किनारे या पुलों के नीचे गुजर-बसर करते हैं। अगर उन्हें गांवों में ही रोजगार मिल जाए तो शहरों की हालत थोड़ी बेहतर हो जाएगी। रसोईघरों में लकड़ी के चूल्हों की जगह गैस सिलेंडरों ने ले ली है। यह पर्यावरण और लोगों, दोनों के लिए लाभदायक है। हालांकि कई जगह लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल हो रहा है। वहां रसोई गैस सुलभ कराना सुनिश्चित होना चाहिए। पौधे पर्यावरण के मित्र होते हैं। हर साल पौधे लगाकर उनकी देखभाल करने से ही सबको साफ हवा मिलेगी।

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