एसआईआर के फैसले से संबंधित सभी दस्तावेज़ और अध्ययन सार्वजनिक किए जाएं: कांग्रेस

चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए

एसआईआर के फैसले से संबंधित सभी दस्तावेज़ और अध्ययन सार्वजनिक किए जाएं: कांग्रेस

Photo: @INCIndia X account

नई दिल्ली/पटना/दक्षिण भारत। कांग्रेस ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का जिक्र करते हुए शुक्रवार को चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। उसने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर कहा, 'आरटीआई से चुनाव आयोग का पर्दाफाश: विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के पीछे 'स्वतंत्र मूल्यांकन' का कोई रिकॉर्ड नहीं है।'

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कांग्रेस ने कहा, 'चुनाव आयोग ने आरटीआई आवेदनों के जवाब में चौंकाने वाली स्वीकारोक्ति की है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं।'

उसने कहा, 'जब उनसे साल 2025 के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के संचालन के आधार के रूप में न्यायालय के समक्ष उद्धृत स्वतंत्र मूल्यांकन/अध्ययन उपलब्ध कराने के लिए कहा गया तो आयोग ने जवाब दिया कि ऐसी कोई जानकारी मौजूद नहीं है।'

कांग्रेस ने कहा, 'जब राष्ट्रव्यापी एसआईआर निर्णय के लिए फाइलों, नोटिंग्स और अनुमोदनों के बारे में पूछा गया तो आयोग ने स्वीकार किया कि ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।'

उसने कहा, 'साल 2003 के बिहार मतदाता सूची संशोधन आदेश और दिशा-निर्देशों की मांग करने वाली एक अन्य आरटीआई में, प्रासंगिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के बजाय, आयोग ने आवेदक को साल 2025 के आदेश की ओर मोड़ दिया, जिससे और अधिक संदेह पैदा हो गया।'

कांग्रेस ने कहा, 'ये जवाब चुनाव आयोग द्वारा अदालत में दिए गए बयान और आरटीआई के तहत दी गई जानकारी के बीच गंभीर विरोधाभास को उजागर करते हैं। अगर कोई स्वतंत्र मूल्यांकन या रिकॉर्ड मौजूद नहीं है तो इतने महत्त्वपूर्ण फैसले किस आधार पर लिए गए?'

उसने कहा, 'पारदर्शिता की यह कमी उस संस्था में जनता के विश्वास को कमजोर करती है, जिसका उद्देश्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है।'

कांग्रेस ने कहा, 'हम चुनाव आयोग से मांग करते हैं कि एसआईआर के फैसले से संबंधित सभी दस्तावेज़, अध्ययन और टिप्पणियां सार्वजनिक किए जाएं। स्पष्ट करें कि उसने 'स्वतंत्र मूल्यांकन' के दावे के साथ सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह क्यों किया? पिछले रिकार्डों को रोकना बंद करें और उन्हें सार्वजनिक करें।'

उसने कहा, 'लोकतंत्र संस्थाओं में विश्वास पर निर्भर करता है। चुनाव आयोग को अपनी बात स्पष्ट करनी होगी। अन्यथा उस विश्वास के पूरी तरह से खत्म होने का जोखिम होगा।'

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