बढ़ता पलायन: समाधान क्या है?

गांवों में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है

बढ़ता पलायन: समाधान क्या है?

गांव के बच्चे बहुत मेहनती होते हैं

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने यह कहते हुए एक कड़वी हकीकत बयान की है कि गरीबी और बेरोजगारी की वजह से बहुत लोग ग्रामीण इलाकों से दिल्ली, मुंबई और बेंगलूरु जैसे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। सब जानते हैं कि पलायन के कारण कई गंभीर समस्याएं पैदा हो गई हैं। एक ओर जहां शहरों में भीड़ काफी बढ़ गई है, वहीं गांवों में कई मकान सूने पड़े हैं। शहरों में मकान किराया, रहन-सहन, खाना-पीना सबकुछ बहुत महंगा है, फिर भी लोग शहर में आकर रहना चाहते हैं। इसकी एक वजह गांवों में रोजगार के ज्यादा विकल्पों का न होना तो है ही, कुछ और बिंदु भी हैं, जिन्होंने गांवों से शहरों की ओर पलायन को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभाई है। प्राय: शहर जाकर रहने को 'तरक्की' से जोड़कर देखा जाता है। गांव में शहर की कई चीजों (भले ही वे हानिकारक हों) को 'कॉपी' करने को आधुनिकता समझा जाता है, जो तार्किक दृष्टि से सही नहीं है। समाज ने कुछ ऐसी चीजों को भी 'विकास' समझ लिया है, जो देर-सबेर नुकसान पहुंचाती हैं। आज भी बहुत लोग यह मानते हैं कि पढ़ाई-लिखाई करने के बाद वही व्यक्ति सफल है, जो शहर में नौकरी करे और वहीं अपना मकान बनाए। इसके उलट, अगर कोई ग्रामीण युवक उच्च शिक्षा में स्वर्ण पदक हासिल कर ले, उसके बाद किसी विख्यात शिक्षाविद् के मार्गदर्शन में पीएचडी कर ले और गांव लौटकर खेती करने लग जाए तो हर कोई उसके फैसले पर हंसेगा और पूछेगा- 'जब खेती ही करनी थी तो इतनी पढ़ाई क्यों की?' इस सोच ने गांवों का बड़ा नुकसान किया है। क्या खेती करने में प्रतिभा की जरूरत नहीं होती? इजराइल वैज्ञानिक तरीकों से खेती करते हुए कहां से कहां पहुंच गया! उसके पास तो थोड़ी-सी जमीन है, वह भी बंजर थी!

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गांवों में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। गांव के बच्चे बहुत मेहनती होते हैं। वे कम संसाधनों में गुजारा करने के अभ्यस्त होते हैं। उनके लिए गांव में संघर्ष है तो शहर में भी संघर्ष है। जब वे शहर जाकर अपने क्षेत्र में सफल हो जाते हैं तो गांव में लोग उनसे उम्मीद करते हैं कि अब वे उनका साथ दें। हालांकि जब किसी ग्रामीण बच्चे के संघर्ष के दिन होते हैं तो उसकी मदद करने के लिए न के बराबर लोग आगे आते हैं। ऐसे में वह बच्चा गांव को उसके हाल पर छोड़कर अपना भविष्य शहर में ही देखता है। प्राय: ऐसे लोगों की यह कहते हुए आलोचना की जाती है कि उन्होंने अपने गांव के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन यह भी सच्चाई है कि गांवों में प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए जो प्रयास किए गए, वे नाकाफी हैं। अगर गांवों में ऐसे इंतजाम किए जाएं कि जरूरतमंद प्रतिभाशाली बच्चों की हर संभव तरीके से मदद हो तो शहरों की ओर पलायन में कमी आएगी। उस स्थिति में ये बच्चे शहर जाने के बाद 'उचित समय' पर अपने गांव लौटना चाहेंगे और अन्य बच्चों को मार्गदर्शन देंगे। जिन लोगों ने गांवों को सिर्फ फिल्मों और यूट्यूब वीडियो में ही देखा है, उन्हें लगता है कि ग्रामीण जीवन बिल्कुल ऐसा है। हालांकि 'रील लाइफ' और 'रियल लाइफ' में बड़ा अंतर है। आज ग्रामीण जीवन में ऐसी कई विकृतियां आ गई हैं, जो पहले सिर्फ बड़े शहरों में देखने को मिलती थीं। शहरों की तर्ज पर गांवों में भी फास्ट फूड और हानिकारक पेय पदार्थों का चलन बहुत बढ़ गया है। देर रात तक जागना, मोबाइल फोन पर बहुत समय बिताना, सुबह देर से उठना, व्यायाम और शारीरिक श्रम न करना- जैसी आदतें ग्रामीण नौजवानों में बढ़ती जा रही हैं। वहां भी खैनी, गुटखा, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, शराब जैसी नशीली चीजें खूब बिक रही हैं। इसलिए आज गांवों के सामने चुनौती सिर्फ पलायन रोकने की नहीं, बल्कि उन विकृतियों से निजात पाने की भी है, जो वहां धीरे-धीरे जड़ें जमाती जा रही हैं।

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