कैसे सुरक्षित बनें सड़कें?

भारत का वाहन उद्योग अगले पांच साल में दुनिया में पहले स्थान पर होगा

कैसे सुरक्षित बनें सड़कें?

कुछ लोग यातायात नियमों का पालन नहीं करने में अपनी शान समझते हैं

भारत में सड़क दुर्घटनाओं का बढ़ना चिंता का विषय है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब लोग इन हादसों में जान नहीं गंवाते। सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने काफी कोशिशें कीं, लेकिन हालात में कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है। हाल में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि भारत का वाहन उद्योग अगले पांच साल में दुनिया में पहले स्थान पर होगा। इससे निश्चित रूप से रोजगार के अवसर पैदा होंगे, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। अगर वाहन ज्यादा होंगे तो सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ने की आशंका भी ज्यादा होगी। हालांकि इसके लिए सिर्फ वाहनों की संख्या को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सड़कों की स्थिति, यातायात के नियमों की अनदेखी, तेज रफ्तार से वाहन चलाने, दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट न लगाने, उस दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने, कार चलाते समय सीट बेल्ट न लगाने जैसे अनगिनत कारण हैं। यह देखकर आश्चर्य होता है कि काफी पढ़े-लिखे लोग भी यातायात के नियमों का उल्लंघन कर देते हैं। जब उनसे कहा जाता है कि आपको नियमों का पालन करना चाहिए, तो जवाब मिलता है- 'कुछ नहीं होता ... यहां यातायात पुलिस तो नहीं है!' यातायात संबंधी नियमों का पालन पुलिस से बचने के लिए करना चाहिए या अपने और अन्य लोगों का जीवन सुरक्षित बनाने के लिए करना चाहिए? सबकुछ जानते हुए भी यातायात नियमों का आदतन उल्लंघन करने वालों के लिए बंबई उच्च न्यायालय का एक फैसला नज़ीर है, जिसके तहत साल 2017 में नाबालिग रहते हुए बिना हेलमेट और लाइसेंस के दोपहिया वाहन चलाने वाले एक व्यक्ति को चार रविवार तक अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया गया है। न्यायालय ने उसके खिलाफ मामला निरस्त कर दिया। उस व्यक्ति को तीन महीने के लिए शहर की पुलिस के पास अपना ड्राइविंग लाइसेंस जमा कराना होगा।

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वास्तव में कुछ लोग यातायात नियमों का पालन नहीं करने में अपनी शान समझते हैं। इस तरह वे खुद के साथ दूसरों की जान भी संकट में डालते हैं। न उन्हें दुर्घटनाओं का डर होता है और न जुर्माने की फिक्र होती है। अलबत्ता उनमें से बहुत लोग अपने मोबाइल फोन पर अच्छा-सा कवर चढ़वाना नहीं भूलते। कुछ हजार रुपए के मोबाइल फोन की इतनी चिंता करते हैं, लेकिन अपने अनमोल जीवन को बचाने के लिए हेलमेट पहनने से परहेज करते हैं! ऐसे लोगों से नियम पालन करवाना थोड़ा मुश्किल जरूर है, नामुमकिन नहीं है। पुलिस की सख्ती, भारी जुर्माना जैसी बातें एक हद तक ठीक हैं, उसके बाद इनसे ज्यादा फायदा नहीं होता। जानबूझकर एवं बार-बार नियमों का उल्लंघन करने के मामलों में कुछ 'सकारात्मक दंड' लागू किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए- ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर संबंधित व्यक्ति को किसी धार्मिक स्थान, गौशाला, अस्पताल, वृद्धाश्रम आदि में सेवा एवं स्वच्छता संबंधी कार्य सौंपे जाएं। जो दोपहिया वाहन चालक हेलमेट नहीं लगाता, उसे मौके पर ही दो हेलमेट दे दिए जाएं। उनका मूल्य उससे जरूर वसूला जाए। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 26 जनवरी से दोपहिया वाहन चालकों को बिना हेलमेट पाए जाने पर पेट्रोल पंप पर ईंधन नहीं देने का फैसला भी सराहनीय है। अगर प्रशासन 'हेलमेट नहीं, तो ईंधन नहीं' के फैसले को सही ढंग से लागू कर पाया तो इससे सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने में मदद मिलेगी। इन दुर्घटनाओं के लिए कुछ यातायात पुलिसकर्मी भी जिम्मेदार हैं, जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे अनगिनत वीडियो मौजूद हैं, जिनमें ये कर्मी रिश्वत लेते हुए देखे जा सकते हैं। सरकारों को चाहिए कि वे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए मिसाल कायम करें। कुछ पुलिसकर्मी भी वाहन चलाते समय सीट बेल्ट लगाने, हेलमेट पहनने जैसे नियमों का पालन नहीं करते। उन पर कई गुणा ज्यादा जुर्माना लगाना चाहिए।

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