कैसे रुके पलायन?

गांवों से पलायन के पीछे कुछ 'मान्यताएं' और उनसे जुड़े खास कारण हैं

कैसे रुके पलायन?

इस धारणा को बदलने की जरूरत है कि शहर जाने से ही व्यक्ति सफल कहलाता है

अखिल भारतीय किसान संघों के महासंघ (एफएआईएफए) ने 'कृषि क्षेत्र में डिजिटल क्रांति से युवाओं का खेती से पलायन रोकने में मदद मिलने' संबंधी जो बयान दिया है, वह भविष्य को लेकर उम्मीदें जगाने वाला है। सरकार को इस दिशा में और गंभीरता से काम करना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का पलायन एक कड़वी सच्चाई है। ऐसा कई दशकों से हो रहा है। साल-दर-साल शहरों पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है, जबकि गांव खाली हो रहे हैं। 

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गांवों से पलायन के पीछे कुछ 'मान्यताएं' और उनसे जुड़े खास कारण हैं। न जाने कहां से यह सोच घर कर गई कि शहर जाने का मतलब है- 'उन्नति'! बेशक शहर जाने के बाद कुछ लोग बहुत 'उन्नति' करते हैं, लेकिन ज्यादातर आबादी के लिए वहां ज़िंदगीभर 'संघर्ष' की स्थिति ही बनी रहती है। प्राय: उन्नति को कमाई से जोड़कर देखा जाता है। आज कई लोग गांवों में रहकर हर महीने लाखों रुपए कमा रहे हैं। क्या उनकी सफलता को उन्नति नहीं माना जाएगा? 

वास्तव में इस धारणा को बदलने की जरूरत है कि गांव छोड़कर शहर जाने से ही व्यक्ति सफल कहलाता है। अगर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, अच्छी कमाई, तनावरहित जीवन, रोजाना की भागमभाग से मुक्ति जैसी सहूलियतें गांव में ही मिल जाएं तो वहां रहना ज़िंदगी का बेहतरीन फैसला होगा। गांव से युवाओं के शहर जाने के पीछे प्रमुख कारण हैं- पढ़ाई और रोजगार। 

अगर स्कूली शिक्षा गांव में अच्छी मिल जाए और उच्च शिक्षा के लिए नजदीकी कस्बे में पर्याप्त इंतजाम हो जाएं तो शहरों पर दबाव काफी हद तक कम हो सकता है। प्राय: ग्रामीण क्षेत्र के युवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए शहर जाते हैं। वहां वे कोचिंग सेंटरों में दाखिला लेते हैं। युवाओं को स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के बाद भी कोचिंग लेने की जरूरत क्यों होनी चाहिए, यह एक बड़ा मुद्दा है।

हर साल जयपुर, सीकर, कोटा, दिल्ली, इलाहाबाद, पटना जैसे शहरों में हजारों विद्यार्थी कोचिंग लेने आते हैं। एक छोटे-से कमरे का भारी-भरकम किराया और तमाम तरह के शुल्क चुकाते हुए ये बच्चे सुनहरे भविष्य के ख्वाब देखते रहते हैं। ये जिन हालात में रहते हैं, अगर एक बार कोई स्नेह जताकर पूछ ले तो इनकी आंखें छलछला जाएंगी। कोचिंग फीस, मकान किराया, चाय-पानी, खाना, परिवहन जैसी जरूरतों पर सालभर में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं। इस पर भी तनावग्रस्त होने की आशंका बनी रहती है! 

कोटा से हर साल दिल दहला देने वाली खबरें आती हैं। हाल में दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने से तीन अभ्यर्थियों की मौत हो गई थी। उससे पहले एक अभ्यर्थी की मौत करंट लगने से हो गई थी। जब हादसे होते हैं तो प्रशासन कुछ सख्ती दिखाता है, लेकिन कुछ दिन बाद सबकुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। 

ऑनलाइन कोचिंग ऐसी कई समस्याओं का समाधान कर सकती है। कुछ शिक्षक इस माध्यम से बहुत अच्छी तैयारी करवा रहे हैं। इसका असर दिखने लगा है। उक्त शहरों में हजारों रुपए देकर किराए पर रहने वाले कई युवा अपने गांव लौट रहे हैं और वहां घर से ही ऑनलाइन कोचिंग ले रहे हैं। सरकार को भी चाहिए कि वह प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित विभिन्न विषयों की तैयारी करवाने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाए। उस पर गुणवत्तापूर्ण सामग्री होगी तो युवा उससे जरूर जुड़ेंगे और उसके लिए सहर्ष सहयोग राशि भी देंगे। इससे शहरों की ओर पलायन रुकेगा। 

इसके साथ गांवों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए बहुत गंभीरता से काम करने की जरूरत है। एक तरफ इजराइल जैसा देश है, जो वैज्ञानिक विधियों से खेती करते हुए खुशहाली के नए कीर्तिमान रच रहा है, जबकि उसके पास न ज्यादा जमीन है और न वह बहुत उपजाऊ थी। वहीं, भारत के पास जमीन की कोई कमी नहीं है, काम करने वाले हाथ भी खूब हैं, लेकिन गांवों में बच्चों को 'चेतावनी' दी जाती है कि पढ़-लिखकर कुछ बन जाओ, वरना ज़िंदगीभर खेत में काम करना होगा! इस सोच को बदलना चाहिए। 

खेती करना, अन्न उपजाना देश की प्रगति में योगदान देना है। इस पर गौरवान्वित होना चाहिए। खेती अच्छी होगी तो देश खुशहाल होगा। अब कई युवा कॉर्पोरेट जॉब छोड़कर खेती कर रहे हैं और लोगों की सोच बदल रहे हैं। उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है। खेती की उपज को ग्राहकों तक पहुंचाने में इंटरनेट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगर युवाओं को खेती से फायदा होगा तो पलायन निश्चित रूप से रुकेगा।

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