सौर ऊर्जा को बढ़ावा दें
'उज्ज्वला' और अन्य योजनाओं के कारण गांवों में स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल बढ़ रहा है

सरकारों को चाहिए कि वे अब इन चूल्हों को रसोई गैस का विकल्प बनाएं
राष्ट्रीय दक्ष कार्यक्रम के तहत केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के बिजली वितरण विभाग के साथ मिलकर आंगनबाड़ी केंद्रों को मुफ्त में 2,000 इंडक्शन चूल्हे उपलब्ध कराने का फैसला सराहनीय है। इससे पर्यावरण के अनुकूल तरीके से खाना पकाने के संबंध में जागरूकता का प्रसार होगा। ये चूल्हे खाना बनाने के तौर-तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
आज 'उज्ज्वला' और अन्य योजनाओं के कारण गांवों में स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल बढ़ रहा है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। कभी रसोईघरों में लकड़ी और कोयले से जलने वाले चूल्हों के कारण धुएं और घुटन का माहौल रहता था। फिर केरोसिन के स्टोव आए। इससे गृहिणियों को आंखों और श्वास से संबंधित कई समस्याएं होती थीं। आंधी, बारिश और प्रतिकूल मौसमी स्थितियों में दुर्घटनाएं भी हो जाती थीं।धीरे-धीरे गैस चूल्हों का आगमन हुआ और रसोई के काम में (तुलनात्मक रूप से) काफी आसानी हो गई। हालांकि इससे संबंधित सावधानियां भी रखनी होती हैं। आज गैस सिलेंडर लेना काफी आसान हो गया है। अब जरूरत इस बात की है कि वैज्ञानिक प्रगति के साथ अगले स्तर की ओर बढ़ा जाए। भारत के रसोईघरों में इस्तेमाल होने वाली गैस का बहुत बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात किया जाता है। इस पर काफी विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
वहीं, इसे सिलेंडरों में भरकर दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचाना बहुत खर्चीला व मेहनत का काम है। इंडक्शन चूल्हों का उपयोग इस समस्या का प्रभावी समाधान कर सकता है। इन पर रोटी, सब्जी, चावल, दाल जैसी हर खाद्य सामग्री पकाई जा सकती है। चाय बनाने, दूध या पानी गर्म करने जैसे काम तो मिनटों में हो जाते हैं।
सरकारों को चाहिए कि वे अब इन चूल्हों को रसोई गैस का विकल्प बनाएं। लोगों को प्रोत्साहित करें। हालांकि इंडक्शन चूल्हों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में बिजली का बिल एक समस्या बन सकता है। जब आम लोगों के बीच इस चूल्हे की चर्चा होगी तो वे बिजली की खपत के बारे में जरूर जानना चाहेंगे।
इसको ध्यान में रखते हुए इन चूल्हों को सौर ऊर्जा से जोड़ना चाहिए। भारत के ज्यादातर हिस्सों में साल के अधिकांश दिनों में काफी धूप होती है। सौर ऊर्जा से बैटरी चार्ज होने के बाद रात को खाना पकाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। मध्य प्रदेश का बांचा गांव इसका सफल प्रयोग कर चुका है। वहां लकड़ी के चूल्हे और एलपीजी सिलेंडरों की जगह सौर ऊर्जा चालित चूल्हे ले चुके हैं। यह प्रयोग देश के अन्य गांवों में भी सफल हो सकता है।
अगर सरकारें और स्थानीय प्रशासन इच्छाशक्ति दिखाएं तो गांव-गांव में सौर चूल्हे कमाल कर सकते हैं। उसके बाद रसोईघरों में गैस सिलेंडरों का इस्तेमाल बहुत कम हो जाएगा। सूर्य देवता हमारे देश पर अत्यंत कृपालु हैं। उनकी किरणें दिनभर शक्ति बरसाती रहती हैं। इन किरणों के विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जरूरत है। आज अफगानिस्तान, जहां सुदृढ़ ऊर्जा वितरण तंत्र का अभाव है, आर्थिक स्थिति चरमरा गई है, वहां रसोईघरों में बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है।
यही नहीं, वहां पैराबोलिक सोलर स्टोव का चलन बढ़ता जा रहा है, जिसमें छोटे-छोटे दर्पण लगे होते हैं। वह धूप में बहुत अच्छी तरह से काम करता है। अगर उसे ठीक तरह से संभालकर रखा जाए तो दशकों तक चल सकता है। उस पर नाम मात्र की लागत आती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में यह चूल्हा बहुत लाभदायक हो सकता है। इस पर दूध व पानी खूब गर्म करने, पशु आहार तैयार करने जैसे काम आसानी से हो सकते हैं।
अभी इस काम में लकड़ियां, गोबर के उपले आदि इस्तेमाल होते हैं, जिनसे काफी धुआं निकलता है। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा, बल्कि यह प्रयोग दीर्घ अवधि में अर्थव्यवस्था को भी ताकत देगा।
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