भूकंप: कैसे बचेंगी ज़िंदगियां?

भूकंप एक ऐसी चुनौती है, जिससे बचाव के लिए अब तक कोई पुख्ता प्रणाली विकसित नहीं की जा सकी है

भूकंप: कैसे बचेंगी ज़िंदगियां?

नेपाल में शुक्रवार को आए भूकंप से हजारों लोग बेघर हो गए

इस साल दुनियाभर में भूकंप संबंधी हादसों में हजारों लोगों की मौतें हुईं। तुर्किए, अफगानिस्तान में इन मौतों का आंकड़ा काफी ज्यादा रहा। अब नेपाल भी उन देशों में शामिल हो गया, जिन्हें भूकंप गहरे घाव देकर गया है। इस हिमालयी देश में शुक्रवार को आए भूकंप से हजारों लोग बेघर हो गए हैं। उन्हें मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रहीं। ये कल तक इस स्थिति में थे, जब इनके सिर पर छत थी और थाली में खाना था। आज ये खुले आसमान के नीचे भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। 

चूंकि पहाड़ी इलाकों में रास्ते दुर्गम हैं। वहीं, भूकंप के कारण रास्ते अवरुद्ध हो गए हैं, इसलिए कई लोगों के पास अब तक राहत सामग्री नहीं पहुंची है। जान गंवाने वालों में कई लोग तो ऐसे थे, जो त्योहार मनाने घर आए थे। देर रात जब भूकंप आया तो उनकी छत ही उन पर भरभराकर गिर गई। रात को ऐसी कोई सुविधा नहीं थी, जिसका उपयोग कर इतनी बड़ी संख्या में लोगों को मलबे से निकाला जा सके। 

भूकंप एक ऐसी चुनौती है, जिससे बचाव के लिए अब तक कोई पुख्ता प्रणाली विकसित नहीं की जा सकी है। आधुनिक उपग्रहों से बारिश, आंधी, तूफानों का तो पता लगाया जा सकता है, जिससे हर साल बड़ी संख्या में लोगों की जानें बचाई जा रही हैं। आंकड़े बताते हैं कि कुछ दशक पहले तक चक्रवाती तूफानों में हजारों लोगों की जान चली जाती थी। नवंबर 1970 में आए एक चक्रवाती तूफान से तो पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में पांच लाख लोगों की मौतें हो गई थीं। भारत के निकटवर्ती इलाकों में भी उसका असर देखा गया था।

आज उपग्रह एक तरह से कवच का काम कर रहे हैं। क्या हम ऐसे कवच का निर्माण नहीं कर सकते, जो लोगों को भूकंप संबंधी हादसों से सुरक्षित रख सके? इस चुनौती से पार पाने के लिए वैज्ञानिकों को मंथन करना होगा। जिन इलाकों में भूकंप का खतरा ज्यादा है, वहां ऐसे घरों का निर्माण करना होगा, जो भूकंप के झटके आसानी से झेल जाएं। पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों में इस पर काफी काम हुआ है। वहां 'कंटेनर हाउस' के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ता जा रहा है। 

'कंटेनर' का नाम सुनते ही प्राय: लोगों के मन में एक ऐसी चीज की छवि उभरती है, जो तकरीबन कबाड़ चुकी हो, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। इन घरों को बहुत सुंदर तरीके से डिजाइन किया गया है। इन पर धातु के साथ ऐसे पदार्थों की परत लगाई जाती है, जो बहुत गर्मी और बहुत सर्दी के असर को कम कर देती है। यही नहीं, इन पर खास तरह का पेंट करने के बाद ये लंबे समय तक प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। ये रंग-रोगन के बाद किसी बंगले से कम नहीं लगते। इन्हें एक मजबूत आधार पर स्थापित किया जाता है, जिससे ये आंधी-तूफान में स्थिर रहते हैं। ये भूकंप के झटके भी सहन कर जाते हैं।

अभी इस तकनीक पर और शोध करने की जरूरत है। इन 'घरों' में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है। भारत की भौगोलिक और मौसमी दशाओं के अनुसार बदलाव कर इन्हें और बेहतर बनाया जा सकता है। यूट्यूब पर ऐसे घरों के वीडियो आसानी से मिल जाते हैं, जिनसे लोगों को बेहतर आवास सुविधा तो मिल ही रही है, ये वर्षा-जल संरक्षण, वर्टिकल खेती और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी कमाल कर रहे हैं। ये उचित शोध और अनुसंधान के बाद उन इलाकों में लोगों का जीवन बचा सकते हैं, जिनमें सर्वाधिक भूकंप आते हैं।

About The Author

Related Posts

Post Comment

Comment List

Advertisement

Advertisement

Latest News

छत्तीसगढ़ में होंगे 2 उपमुख्यमंत्री, रमन सिंह को ​मिलेगा यह 'खास' पद छत्तीसगढ़ में होंगे 2 उपमुख्यमंत्री, रमन सिंह को ​मिलेगा यह 'खास' पद
Photo: twitter.com/drramansingh
गांव के पंच, निर्विरोध सरपंच, 4 बार लगातार सांसद; ऐसा है विष्णुदेव साय का सियासी सफर
छग के अगले मुख्यमंत्री विष्णुदेव के बारे में अमित शाह ने पहले ही दे दिए थे ये संकेत
आदिवासी परिवार का बेटा अब बनेगा छग का सीएम, यहां जानिए विष्णुदेव साय के बारे में खास बातें
हो गया ऐलान, विष्णुदेव साय होंगे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री
अनुच्छेद 370 निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को फैसला सुनाएगा उच्चतम न्यायालय
मायावती ने अपना 'उत्तराधिकारी' घोषित किया