रावलपिंडी जीएचक्यू: बर्बाद गुलिस्तां करने को एक ही उल्लू काफ़ी था ...
पाकिस्तान को दो क़ौमी नज़रिए के साथ कटोरा लेकर घूमने दें

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.. राजीव शर्मा ..
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आज पाकिस्तान में लोग इस बात का दोष भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर डाल रहे हैं कि ये जब से केंद्र की सत्ता में आए हैं, संबंध बिगड़ते ही जा रहे हैं। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। मैंने एचडी देवेगौड़ा से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक का ज़माना देखा है और बहुत तबीयत से देखा है। मेरी उम्र के सभी लोगों ने देखा है।
मैं बहुत ज़िम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि भारत-पाकिस्तान के संबंध इन नेताओं के ज़माने में भी कोई बहुत अच्छे नहीं थे। हमें आए दिन ये ही ख़बरें पढ़ने-सुनने को मिलती थीं कि आज यहां सैनिक शहीद हो गए, वहां आतंकवादी हमला हो गया, लावारिस चीज़ दिखाई दे तो पुलिस को सूचित करें ...।
कारगिल युद्ध हो, आईसी 814 अपहरण कांड हो, संसद भवन पर हमला हो, मुंबई ट्रेन धमाके हों, 26/11 हमले हों ... ये सब कल की ही बातें लगती हैं। इन सबमें पाकिस्तान की भूमिका रही है। क्या मिलता है यह सब करके? याद रखें, भारत में हज़ारों समस्याएं होंगी, लेकिन यहां राष्ट्रवाद बहुत मज़बूत है। हमने कई दशकों और सदियों तक ठोकरें खाई होंगी, लेकिन उनसे बहुत कुछ सीखा भी है। अगर आज कोई सोचता है कि वह ऐसी हरकतों से भारत को झुका देगा तो बहुत ग़लत सोचता है। यह देश तमाम चुनौतियों से जूझकर और मज़बूत हुआ है।
आज कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां हमें दबाने की कोशिश कर रही हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि भारत इनसे सीखेगा और शक्तिशाली होगा। हम हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी ... सब एकजुट हैं।
मैं किसी नेता और सरकार का समर्थन नहीं कर रहा, लेकिन इस बात से आप सहमत होंगे कि लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने पाकिस्तान को ऐसी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। 'ऑपरेशन सिंदूर' में कमियां रही होंगी, किस ऑपरेशन में नहीं होतीं? इस पर चर्चा होती रहेगी। आप यह देखिए कि इस ऑपरेशन के बाद दुनिया में कितने देशों ने भारत का विरोध किया? यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान में आतंकवादी तैयार किए जाते हैं, उन्हें एलओसी की ओर भेजा जाता है। उनमें से ज़्यादातर भारतीय सेना की कार्रवाई में मारे जाते हैं?
ऐसा कब तक चलेगा? क्या पाकिस्तानी हुक्मरान सोचते हैं कि वे ऐसा करने से भारत को झुका देंगे? आतंकवादियों को एकाध बार कामयाबी मिल सकती है। भविष्य में इसकी गुंजाइश भी कम होती जाएगी। इन सबसे पाकिस्तान को कुछ भी हासिल नहीं होगा। आपने 'कश्मीर-कश्मीर' की रट में पूर्वी पाकिस्तान गंवा दिया। आज हालत यह है कि पाकिस्तान एक बिलियन डॉलर के लिए कभी आईएमएफ तो कभी विश्व बैंक के सामने कटोरा फैलाता है।
पाकिस्तान को इस हालत में पहुंचाने के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार उसके फ़ौजी अफ़सर हैं, जो अवाम से क़ुर्बानी चाहते हैं, लेकिन अपने बच्चों को यूके, यूएई, अमेरिका और कनाडा भेजते हैं। ये दो क़ौमी नज़रिए के नाम पर अवाम को मूर्ख बनाते हैं। इन्होंने भारत से दुश्मनी को कारोबार बना रखा है। ये इतनी कोशिशों के बावजूद जम्मू-कश्मीर का एक इंच भूभाग नहीं ले सके। वर्ष 1947 में भारतीय सेना के आने से पहले जो कब्जा कर लिया, सो कर लिया। अब कोई उम्मीद न रखें।
'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत की गई कार्रवाइयों के बाद मैंने कुछ पाकिस्तानी समाचार चैनलों को देखा। उन्हें इस बात को लेकर बड़ी चिंता हो रही थी कि भारत महात्मा गांधी और पं. नेहरू के आदर्शों से दूर होता जा रहा है! अगर आपके मन में हमारे इन नेताओं के प्रति इतना प्रेम उमड़ रहा है तो यह बताएं कि पाकिस्तान ने इनके जीवित रहते कश्मीर में कबायली लश्कर क्यों भेजे थे? आपको इनका सम्मान करना चाहिए था!
वर्ष 1965, 1971, 1999 में क्या हुआ था? हर युद्ध पाकिस्तान ने शुरू किया था। जब भारत ने जवाबी कार्रवाई की तो ख़ुद को पीड़ित की तरह दिखाने लगा। हमारे नेताओं ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए कई बार कोशिशें कीं, लेकिन उन्हें हर बार धोखा ही मिला। प्रधानमंत्री मोदी तो 25 दिसंबर, 2015 को अपना राजनीतिक करियर दांव पर लगाकर पाकिस्तान गए थे। उनके इस कदम का भारत में बहुत विरोध हुआ था।
अगर पाकिस्तानी हुक्मरान अक़्ल से काम लेते तो उनका देश पर्यटन से ही इतनी कमाई कर लेता कि आईएमएफ और विश्व बैंक के पास जाने की नौबत नहीं आती। अब प्रधानमंत्री मोदी से मेरा नम्र निवेदन है कि भविष्य में पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने में ऊर्जा और संसाधन बिल्कुल खर्च न करें। देश की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करें, ताकि घुसपैठ पर नियंत्रण हो। पाकिस्तान को दो क़ौमी नज़रिए के साथ कटोरा लेकर घूमने दें। ये लोग दुनिया में सेकुलरिज्म चाहते हैं, लिबरल सरकारें चाहते हैं, लेकिन ख़ुद कट्टर और हिंसक बने रहना चाहते हैं। इन्हें इनके हाल पर छोड़ दें। बर्बाद गुलिस्तां करने को एक ही उल्लू काफ़ी था। रावलपिंडी के जीएचक्यू में तो उल्लू ही उल्लू बैठे हैं।
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