
क्रूर अट्टहास
कोई व्यक्ति, वह भी पुलिस विभाग से जुड़ा हुआ वरिष्ठ अधिकारी, किसी निर्दोष छात्रा की मौत पर इस तरह कैसे हंस सकता है?
क्या अमेरिका में नस्लभेदी मानसिकता रखने वाले लोग कुंठित हैं?
अमेरिका में भारतीय छात्रा जाह्नवी कांडुला की एक दुर्घटना में मौत के बाद पुलिस अधिकारी डेनियल ऑडरर का रवैया बेहद शर्मनाक है। इस व्यक्ति ने न केवल अमेरिकी मूल्यों को, बल्कि उनके साथ मानवता को भी शर्मसार कर दिया है। यह अधिकारी जाह्नवी की मौत के बारे में फोन पर चर्चा करते हुए जिस तरह हंस रहा था, वह किसी दरिंदगी से कम नहीं है।
आखिर कोई व्यक्ति, वह भी पुलिस विभाग से जुड़ा हुआ वरिष्ठ अधिकारी, किसी निर्दोष छात्रा की मौत पर इस तरह कैसे हंस सकता है? क्या यह वही अमेरिका है, जो अपने लोकतंत्र और उदारवाद पर गर्व करता है? डेनियल ऑडरर जैसे अधिकारियों को देखकर तो यही लगता है कि इनके बीच कहीं न कहीं एक क्रूर चेहरा भी मौजूद है, जो आमतौर पर सुप्त अवस्था में रहता है, लेकिन जब कभी अश्वेतों का मामला होता है, तो वह अचानक जाग उठता है।
अमेरिका को अवसरों की भूमि कहा जाता है, जिसका संविधान किसी भी तरह के भेदभाव को नकारता है। इस देश ने बराक ओबामा को राष्ट्रपति बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की थी कि 'अब रंगभेद, नस्लभेद बीते दिनों की बातें हैं ... अमेरिका इनसे बहुत आगे बढ़ चुका है।' लेकिन आज भी उसके समाज में रंगभेद, नस्लभेद मौजूद हैं। ओबामा ही थे, जिन्होंने अमेरिकी बच्चों से कहा था कि पढ़ लो, वरना भारतीय आ जाएंगे!
ओबामा जानते थे कि भारत के दूर-दराज के इलाकों से अमेरिका आकर पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी प्रतिभा और परिश्रम के धनी हैं। वे अभावों में पले-बढ़े हैं, इसलिए न तो परिश्रम से कतराते हैं और न कामकाज से जी चुराते हैं।
इसका नतीजा है कि आज गूगल, माइक्रोसॉफ्ट समेत तमाम बड़ी कंपनियों के बड़े ओहदों पर भारतीय बैठे हैं। और तो और, जिस अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा ने बड़े-बड़े कारनामों को अंजाम दिया है, उनके पीछे भी भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों का दिमाग है।
क्या अमेरिका में नस्लभेदी मानसिकता रखने वाले लोग इस बात से कुंठित हैं? डेनियल ऑडरर जिस अंदाज में कहकहे लगा रहा था, उससे तो यही प्रतीत होता है। उसके शब्द थे - 'छब्बीस साल की लड़की थी। अमेरिकी नहीं थी। भारत से आई थी। उसकी 'लिमिटेड वैल्यू' थी।'
क्या डेनियल यह कहना चाहता है कि अमेरिका के एक खास तबके के जीवन का ही 'मूल्य' है, बाकी सब 'मूल्यहीन' हैं? अगर आज अब्राहम लिंकन ज़िंदा होते तो इस अमेरिकी अधिकारी के शब्दों पर बहुत लज्जित होते और राष्ट्र को संबोधित कर नस्लभेद के पूर्णत: उन्मूलन का संकल्प लेते। डेनियल ऑडरर कोई पहला अधिकारी नहीं है, जो अपने नस्लभेदी रवैए के कारण सवालों के घेरे में आया है।
इससे पहले जॉर्ज फ्लॉयड नामक अफ्रीकी-अमेरिकी शख्स के साथ पुलिस अधिकारियों ने बेरहमी का बर्ताव किया था। उस हत्याकांड के बाद अमेरिका में लोगों का आक्रोश फूट पड़ा था। कहा जाता है कि अमेरिकी पुलिस में ऐसे कई अधिकारी हैं, जो अश्वेतों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार नहीं करते। उनमें नस्लभेद भरा पड़ा है। इस आरोप को 'बुद्धिजीवियों' के एक वर्ग द्वारा यह कहकर खारिज किया जाता है कि कानून-व्यवस्था कायम रखने और अपराध नियंत्रण के लिए कुछ सख्ती दिखानी पड़ती है, भेदभाव कहीं नहीं है, लेकिन डेनियल ऑडरर का 'अट्टहास' उक्त आरोपों को मजबूत करता है।
इस पुलिस अधिकारी की गंभीरता से जांच होनी चाहिए। साथ ही यह पता लगाना चाहिए कि नस्लभेदी मानसिकता को ढोने वाले ऐसे और कितने अधिकारी व कर्मचारी हैं? अमेरिका ने ज्ञान-विज्ञान में बहुत प्रगति कर ली है। उसने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी शक्ति का लोहा मनवाया है। अब पुलिस सुधारों की ओर भी ध्यान दे। पुलिस अधिकारियों को यह सिखाए कि हर मनुष्य के जीवन का मूल्य 'अनंत' होता है, भले ही उसकी त्वचा का रंग कुछ भी हो।
About The Author
Related Posts

Post Comment
Latest News

Comment List