ज्ञानशाला बन गई है संस्कारों की पाठशाला: मुनिश्री पुलकितकुमार
मुनिश्री ने कहा- सं'स्कार जीवन की आधारशिला है'

'संस्कारों का संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। मुनि डॉ. पुलकितकुमारजी एवं आदित्यकुमारजी के सान्निध्य में बन्नरघट्टा रोड एवं जिगनी ज्ञानशाला का विशेष कार्यक्रम क्लासिक ऑर्चिड स्थित एक अनुयायी के निवास पर आयोजित हुआ।
इस अवसर पर मुनिश्री पुलकित कुमारजी ने कहा, संस्कार जीवन की आधारशिला है और संस्कारों का संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। आज के भटकते परिवेश में अपनी संस्कृति और मूल्यों को सुरक्षित रखना एक चुनौती बन गया है।ज्ञानशाला के माध्यम से जैन तेरापंथ समाज पूरे भारत में बाल संस्कार निर्माण का प्रशंसनीय कार्य कर रहा है। वास्तव में 'ज्ञानशाला संस्कारों की पाठशाला’ बन चुकी है।
मुनिश्री ने सभी उपस्थित अभिभावकों से आह्वान किया कि वे अधिक से अधिक बच्चों को ज्ञानशाला से जोड़ें, ताकि अगली पीढ़ी संस्कारवान बन सके।
मुनिश्री आदित्यकुमारजी ने घर-घर जागे सदसंस्कार, ज्ञानशाला का यह उपहार गीत के माध्यम से प्रेरणा दी।
कार्यक्रम का शुभारंभ ज्ञानशाला के बच्चों द्वारा गीत की प्रस्तुति से हुआ। कार्यक्रम में जिगनी ज्ञानशाला से लारिका छाजेड़, खुशी लोढ़ा, वंश नाहटा एवं बन्नरघट्टा ज्ञानशाला से पूर्वी धारीवाल, आर्या बाफना, मयंक कोठारी एवं वृद्धि सिंघी ने ज्ञानशाला में अपने अनुभव साझा किए।
दक्षिणांचल ज्ञानशाला के प्रभारी माणकचंद संचेती ने मुनिश्री के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। इस मौके पर विभिन्न सहयोगी संस्थाओं के पदाधिकारी उपस्थित थे।
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