अंधविश्वास से निपटना होगा
हमारे देश में ऐसे अंधविश्वास प्रचलित हैं, जिनके उन्मूलन के लिए न्यायालय को दखल देना पड़ रहा है
आश्चर्य होता है कि इस सदी में भी 'डायन' जैसा अंधविश्वास प्रचलित है
इक्कीसवीं सदी में भारत विज्ञान के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। हमारे वैज्ञानिकों ने कोरोनारोधी वैक्सीन बनाकर करोड़ों लोगों के प्राण बचाए। वे अंतरिक्ष के रहस्यों का पता लगाकर मानवता के कल्याण के लिए मेहनत कर रहे हैं। हाल में जब चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण किया गया तो पूरी दुनिया ने भारत की वैज्ञानिक प्रतिभाओं को सराहा।
दूसरी ओर, हमारे देश में ऐसे-ऐसे अंधविश्वास प्रचलित हैं, जिनके उन्मूलन के लिए न्यायालय को दखल देना पड़ रहा है। इन्हें तो सामाजिक स्तर पर ही जागरूकता का प्रसार कर समाप्त कर देना चाहिए था, लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।झारखंड उच्च न्यायालय ने डायन बताकर महिलाओं को निशाना बनाने के मामले रोकने के लिए प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में राज्य सरकार को विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। दरअसल मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति आनंद सेन की खंडपीठ ने किसी महिला को डायन बताकर उसका सार्वजनिक रूप से अपमान करने और कई मामलों में पीड़िताओं की मौत होने की बढ़तीं घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई की।
यह सोचकर आश्चर्य होता है कि इस सदी में भी 'डायन' जैसा अंधविश्वास प्रचलित है! किसी महिला के लिए ऐसे शब्द का प्रयोग करना तर्क, विज्ञान, नीति व न्याय के विरुद्ध तो है ही, मानवता के विरुद्ध भी घोर अपराध है। देश के कई इलाकों में 'डायन' के नाम पर अंधविश्वास का प्रचलन रहा है। उन महिलाओं पर झूठी कहानियां बनाई गईं। कई महिलाओं का उत्पीड़न किया गया।
आज भी ग्रामीण इलाकों में बड़े-बुजुर्गों से ऐसी कहानियां सुनने को मिल जाती हैं, जब (अंग्रेज़ों / मुग़लों के शासनकाल में) किसी महिला को डायन घोषित कर उस पर अत्याचार किया गया। प्राय: उस घटनाक्रम के पीछे कुछ लालची लोग होते थे, जो महिला और उसके परिवार को सार्वजनिक रूप से अपमानित कर गांव से निकालना चाहते थे। जब वे अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते तो उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लेते थे।
अगर किसी महिला की संतान नहीं होती तो उसके बारे में यह दुष्प्रचार करना ज्यादा आसान होता था। छोटे बच्चों को उससे दूर रहने की 'हिदायत' दी जाती थी। यह कितना अपमानजनक और अनैतिक था! नारी को शक्ति मानने वाले देश में ऐसे कृत्यों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। हालांकि विज्ञान के प्रसार और कानून की सख्ती के कारण ऐसे मामलों की संख्या कम होती गई, लेकिन आज भी ऐसी ख़बरें पढ़ने को मिल जाती हैं, जब किसी महिला को डायन बताकर उसका उत्पीड़न किया गया। ये घटनाएं पूरी तरह बंद होनी चाहिएं।
अगर एक भी महिला के साथ ऐसा अमानवीय कृत्य होता है तो यह शर्मनाक है। झारखंड में डायन के नाम पर अत्याचार की घटनाओं पर न्यायाधीशों ने उचित ही कहा है कि '(डायन बताकर) किसी को निशाना बनाने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकार द्वारा अलग-अलग अधिनियम बनाए गए हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि इनसे कुछ खास लाभ नहीं हुआ। ... किसी को डायन करार देकर भीड़ द्वारा उसकी पीट-पीटकर हत्या किए जाने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। ... समाज में फैली इस बुराई को रोकने के लिए अंधविश्वास से बड़े पैमाने पर निपटना होगा। ... लोगों को जागरूक करना होगा और सकारात्मक परिणाम सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों की योजना बनाकर उन्हें लगातार क्रियान्वित करने की जरूरत है।'
ऐसे मामलों के लिए गुमला जिला चर्चा में रहा है। माना जाता है कि इसके ग्रामीण इलाकों में बहुत अंधविश्वास है। अगस्त 2015 में मांडर इलाके में पांच महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित करने का मामला भी बहुत सुर्खियों में रहा था। इन घटनाओं की प्रभावी रोकथाम के लिए विज्ञान का प्रसार और जागरूकता ही प्रमुख उपाय हो सकते हैं। न्यायालय द्वारा दोषियों को कठोर दंड दिए जाने से भी कड़ा संदेश जाएगा।