प्रेम या षड्यंत्र?

प्रेम या षड्यंत्र?

इन दिनों पाकिस्तान से भारत आई एक महिला सीमा हैदर और भारतीय युवक सचिन की 'प्रेम-कहानी' खूब सुर्खियां बटोर रही है। उस घर में मीडिया का जमावड़ा लगा हुआ है, जिसमें सीमा और सचिन रहते हैं। सोशल मीडिया में इसे 'गदर' जैसी प्रेमकथा बताकर सरकार से यह मांग की जा रही है कि सीमा और उसके चार बच्चों को भारत की नागरिकता दे दी जाए। 

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वहीं, आस-पास की महिलाएं भी सीमा की आवभगत में व्यस्त हैं। हम भारतवासी अपने अतिथियों के सत्कार को लेकर बड़े भावुक होते हैं। हर किसी पर बहुत आसानी से विश्वास कर लेते हैं। इस प्रवृत्ति ने अतीत में हमें बहुत नुकसान भी पहुंचाया है। 

सीमा हैदर किस इरादे से भारत आई, इसकी जांच संबंधित एजेंसियां कर रही हैं, लेकिन इसके साथ यह जानना जरूरी है कि वह चार बच्चों संग कैसे भारत में अवैध ढंग से दाखिल हो गई। उसके बाद किसी को कानों-कान खबर तक नहीं हुई और वह यहां हफ्तों आराम से रही! 

अब तक जितनी जानकारी सार्वजनिक हुई है, उसके अनुसार, वह पहले पाकिस्तान से शारजाह (यूएई) गई। वहां से नेपाल आई। फिर आसानी से सरहद पार करती हुई भारत में नोएडा आ गई। सवाल है- जब यह महिला अपने चार बच्चों के साथ अवैध ढंग से भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो रही थी तो संबंधित एजेंसियों की इस पर नजर क्यों नहीं पड़ी? 

कहीं ऐसा कोई नेटवर्क तो नहीं चल रहा, जो इसी तर्ज पर घुसपैठियों को हमारे देश में दाखिल होने में मदद करता है? सीमा ने अब तक जो कुछ मीडिया को बताया, उससे कई सवाल पैदा होते हैं।

वह खुद को बहुत कम पढ़ी-लिखी बताती है, लेकिन उसे काफी ज्यादा तकनीकी ज्ञान है। वह पब्जी खेलती थी। उसने नेपाल में हॉटस्पॉट लेकर सचिन से बात की थी। यही नहीं, वह बोलचाल में उर्दू शब्दों के बजाय शुद्ध हिंदी शब्द बोलती है। एक ओर जहां सचिन मीडिया से बातचीत करने में इतना कुशल नजर नहीं आता, वहीं सीमा हाजिर-जवाब है। वह हर सवाल का तुरंत जवाब देती है, जैसे उसने पहले से इसकी तैयारी कर रखी हो! 

वह हिंदी के अलावा अंग्रेज़ी शब्द बोलती है। उसने यह स्वीकारा है कि उसका एक भाई पाकिस्तानी फौज में है। हालांकि उसकी रैंक बहुत छोटी है, लेकिन यह बात याद रखनी चाहिए कि रैंक छोटी हो या बड़ी, पाकिस्तानी फौज भारत को अपना दुश्मन समझती है। 

इन दिनों हनीट्रैप के मामले बढ़ते जा रहे हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिक से लेकर संविदा कर्मी तक पाकिस्तानी एजेंसियों के जाल में फंस चुके हैं। कहीं ऐसा न हो कि नोएडा के एक सीधे-सादे युवक को 'मोहपाश' में फंसाने का कोई गहरा उद्देश्य हो! इस मामले को हर नजरिए से देखना जरूरी है। 

सीमा ने जितने भी चैनलों को साक्षात्कार दिए हैं, उनमें उसके शब्दज्ञान और लहजे पर गौर किया जाए तो वे किसी भी तरह पाकिस्तान से मेल नहीं खाते। जिस तरह भारत में कोई व्यक्ति हिंदी बोले तो उसके लहजे से यह अंदाजा हो जाता है कि वह कहां से है। खासतौर से अगर वह ऐसे परिवेश से आया हो, जहां उसे पढ़ाई-लिखाई के ज्यादा मौके नहीं मिले, तो उसकी पहचान करना तुलनात्मक रूप से आसान होता है। 

सीमा के मामले में यह ठीक उल्टा है। वह दावा करती है कि उसने बॉलीवुड फिल्में देखी हैं, जिससे हिंदी सीखने में काफी मदद मिली। हालांकि कोई व्यक्ति कितनी ही फिल्में देख ले, अपनी मातृभाषा के प्रभाव से पूरी तरह दूर हो जाना संभव नहीं है। जांच एजेंसियों को इस मामले का सच सामने लाना चाहिए। साथ ही सरहद पर कड़ी निगरानी होनी चाहिए, ताकि कोई भी व्यक्ति अवैध ढंग से भारतीय क्षेत्र में दाखिल न हो पाए।

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