चुनावी मुद्दा बना छह दशक पुराना कानून

चुनावी मुद्दा बना छह दशक पुराना कानून

भारतीय सेना.. सांकेतिक तस्वीर

नई दिल्ली/वार्ता। लोकसभा चुनाव में एक ब़डा मुद्दा बनकर उभरा सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) छह दशक पूर्व अस्तित्व में आया था और इसे सबसे पहले 1958 में असम के नगा पर्वतीय क्षेत्रों में लागू किया गया था जो समय-समय पर विवाद का विषय बनता रहा है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के 2019 आम चुनाव के घोषणा पत्र में अफस्पा की समीक्षा करने की बात कही गयी है और इसको लेकर नया विवाद उठ खड़ा हुआ है।

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भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर देश तोड़ने का आरोप लगाते हुए इसे अपने प्रचार का मुख्य हथियार बना लिया है वहीं कांग्रेस यह कहते हुए पलटवार कर रही है कि अफस्पा को लेकर हाय तोबा मचाने वाली भाजपा ने त्रिपुरा से २०१५, मेघालय से 2018 में और अरूणाचल के तीन हिस्सों से 2019 में इस कानून को समाप्त कर चुकी है। इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को कठघरे में ख़डा करते हुए वह ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ की भाषा बोल रही है।

उन्होंने कहा,आप अफस्पा का कानून हटाना चाहते हैं, लाए आप, आपको कभी नियमित रुप से समीक्षा करनी चाहिए थी, स्थिति देखनी चाहिए, लेकिन आंखें बंद रखी। हां दुनिया में कोई यह नहीं चाहेगा कि देश जेलखाना बनकर चले, लेकिन आपने स्थितियां सुधारते रहना चाहिए, जैसा हमने अरुणाचल प्रदेश में किया, जहां स्थिति सुधरी, उसे बाहर निकाला, लेकिन कानून खत्म कर देना, कानून को बदल देना, यह जो आप टुकड़े-टुकड़े गैंग की भाषा बोल रहे हो, तो यह देश कैसे चलेगा?

पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवाद और कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए यह विशेष कानून बनाया गया था और इसे सबसे पहले 11 सितम्बर 1958 को असम के नगा पर्वतीय क्षेत्रों में लागू किया गया था। बाद में बदली परिस्थितियों में इसे अलग-अलग समय पर पूर्वोत्तर के सात अन्य राज्यों में लागू किया गया और 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद की गिरफ्त में आने के बाद इसे वहां भी लागू किया गया। निरंतर विवादों के केन्द्र में रहा यह कानून पिछले करीब तीन दशक से जम्मू-कश्मीर में लागू है।

मानवाधिकारों के हनन को लेकर कई वर्ग तथा मानवाधिकार संगठन इस कानून की आलोचना करते रहे हैं वहीं कुछ राष्ट्रीय नेताओं ने इसे हटाने की वकालत की है तो कुछ ने इसे शांति बनाये रखने के लिए जरूरी बताया है। अफस्पा उसी क्षेत्र में लागू किया जाता है जिसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता है। इस कानून के तहत सेना को कानून के खिलाफ काम करने और अशांति फैलाने वालों के खिलाफ बल प्रयोग और क़डी कार्रवाई करने की अनुमति है भले ही इस कार्रवाई में कथित आरोपी की मौत ही क्यों न हो जाये।

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