तीर्थंकर राह दिखाते हैं, खुद को चलकर लक्ष्य पर पहुंचना होगा: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

कल्याणक पर्व की भव्य संयोजना में सैकड़ों परिवार सम्मिलित हुए

तीर्थंकर राह दिखाते हैं, खुद को चलकर लक्ष्य पर पहुंचना होगा: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

दूसरों के भरोसे या सहारे संसार सागर पार नहीं किया जा सकता

गदग/दक्षिण भारत। राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जैनधर्म के 22वें तीर्थंकर यदुवंशी भगवान नेमिनाथ का दीक्षा कल्याणक पर्व बुधवार को हर्षोउल्लास से मनाया गया। आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी और गणि पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में मंत्रों और मुद्रा विधानों से नेमिनाथ का सामूहिक पूजन किया गया। संयम के उपकरणों और संयमियों की अभिवंदना की गई। तीन दिवसीय कल्याणक पर्व की भव्य संयोजना में सैकड़ों परिवार सम्मिलित हुए। 

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इस अवसर पर जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में सभा में आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि नेमिनाथ त्याग-वैराग्य और जीवदया के अप्रतिम प्रतिमान हैं। वासुदेव श्रीकृष्ण, उनके पुत्र, पांचों पांडव भ्राता, नारद, राजकन्या राजीमती, जरासंघ आदि महाभारतकालीन ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के साथ उनके प्रसंग बहुत प्रेरणादायी हैं।

योगमार्ग ही तीर्थंकरों के जीवन का शुद्ध ध्येय होता है। वे सत्वशाली पवित्र आत्माएं संसार को भोग और संबंधों की नश्वरता का भान कराती हैं। उनके पीछे ज्ञान और योगमार्ग पर चलते हुई हजारों-लाखों आत्माएं जीवन का कल्याण करती हैं। 

जैनाचार्य ने कहा कि देर-सबेर योगमार्ग का अनुसंधान ही मनुष्य जीवन का महत्वपूर्ण उद्देश्य बनना चाहिए। दुनिया के शेष सारे विकल्प दुःख, अशांति और असंतोष के मार्ग हैं। मनुष्य का विवेक ज्ञान के परिपेक्ष्य में सत्य का अनुसंधान करता है। तीर्थंकर राह दिखाते हैं, लेकिन साधना पथ पर चलकर मंजिल तक स्वयं को पहुंचना होता है। 

दूसरों के भरोसे या सहारे संसार सागर पार नहीं किया जा सकता। जीवन में मोह, माया, ममत्व, राग-द्वेष आदि दोष जब क्षीण बनते हैं तब वैराग्य भावों का विकास होता है। वैराग्यभाव संसार को देखने का जीवन का सर्वथा भिन्न दृष्टिकोण है। सामान्य बुद्धि से इसे समझा नहीं जा सकता। 

चमड़े की आंखों से संसार को देखना और वैराग्य से ओतप्रोत बनकर ज्ञानचक्षु से दुनिया को देखना, दोनों अलग दिशाएं हैं। आज तक का मानवजाति का इतिहास साक्षी है कि भोग से परितृप्ति किसी को नहीं मिली और जो जिसने योगमार्ग का अनुसंधान किया, वह कभी अतृप्त न रहा। 

गणि पद्मविमलसागरजी ने कल्याणक पर्व की रोचक संयोजना की। दो अगस्त, शनिवार को पार्श्वनाथ निर्वाण कल्याणक पर्व के साथ तीन दिवसीय महोत्सव का समापन होगा। संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि इस वर्ष विमल वर्षावास का शुभ संयोग पाकर अनेक लोग छोटी-बड़ी तप साधनाओं में जुड़ रहे हैं।

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