'सब्ज बाग' की सच्चाई
ऐसे एजेंटों से दूर रहने में ही भलाई है। इनके 'सब्ज बाग' की सच्चाई जानें

अपनी कमाई न लुटाएं
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अवैध मार्गों से लोगों को विदेश भेजने वाले ट्रैवल एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई करने की जो घोषणा की है, वह स्वागत-योग्य है। अगर यह कार्रवाई पूरी ईमानदारी और दृढ़ता से होती है तो इससे कई लोगों का भविष्य अंधकारमय होने से बच जाएगा। वास्तव में ऐसी कार्रवाई बहुत पहले हो जानी चाहिए थी। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में ऐसे कथित एजेंट मौजूद हैं, जिन्होंने विदेश में खुशहाल ज़िंदगी के सब्ज बाग दिखाकर बहुत लोगों को संकट में धकेल दिया। इसके तहत गांवों या छोटे शहरों के भोलेभाले नौजवानों के सामने विदेश में कमाई की ऐसी तस्वीर पेश की जाती है, जिससे वे अपना वतन छोड़कर जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। उनसे कहा जाता है कि 'भारत में रहकर जितनी मेहनत कर रहे हैं, उतनी वहां करेंगे तो कई पीढ़ियों के ठाठ हो जाएंगे ... उधर तो मौज ही मौज है ... बैंक अकाउंट में जमकर डॉलर बरसेंगे तो गांव में कोठी बनते देर नहीं लगेगी ... पड़ोसी और रिश्तेदार आगे-पीछे घूमेंगे ... हमने फलां शख्स को भेजा था, वह आज करोड़ों में खेल रहा है!' ये लोग उन देशों से जुड़ीं नकारात्मक बातें बिल्कुल नहीं बताते। कई नौजवान जो वहां पहुंचने की कोशिश में परिवार की जमा-पूंजी गंवा चुके हैं, उन्हें इस बात को लेकर अंधेरे में रखा गया कि अवैध मार्गों से जाने में गंभीर जोखिम है। इस कोशिश में लोगों की मौत तक हो जाती है। हर साल अवैध मार्ग से यूरोप या अमेरिका जाने वाले कितने ही लोग या तो माफिया के हाथों मारे जाते हैं या उनकी नाव डूब जाती है।
इन नौजवानों को माफिया के लोग कदम-कदम पर ब्लैकमेल करते हैं। उन्हें 'आगे पहुंचाने' के लिए धन की मांग की जाती है। जब वे कहते हैं कि हमने तो पहले ही पूरी रकम चुका दी, तो यह कहकर धमकाया जाता है कि अगर धन नहीं देंगे तो किसी जंगल या सुनसान जगह पर छोड़ देंगे, उसके बाद कुछ भी हो सकता है। कई नौजवान अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि उन्होंने खाने के लिए सब्जी-रोटी मांगी तो यह कहते हुए बुरी तरह पिटाई हुई कि जो खाना दे रहे हैं, वह चुपचाप खा लें। कुछ महिलाएं भी बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद के साथ इन अवैध मार्गों से अमेरिका जाने की कोशिश करती हैं। उनके साथ माफिया के लोग ज्यादा बुरा बर्ताव करते हैं। चूंकि कई दिनों तक समूह में चलने से लोगों के बीच आत्मीयता का एक रिश्ता बन जाता है। जब कभी माफिया के लोग किसी की पिटाई करते हैं, अभद्र शब्द बोलते हुए गुस्सा जाहिर करते हैं तो समूह के बाकी लोग चाह कर भी उनका विरोध नहीं कर पाते। वे बेहद मजबूर होते हैं, इसलिए सबकुछ देखकर भी अनदेखा करते हैं। अगर कोई हमदर्दी जताता है तो माफिया के लोग उसकी पिटाई करते हैं। अपमान के घूंट पीने के बाद अगर आगे सही-सलामत पहुंच गए तो इसका यह मतलब नहीं है कि वहां ज़िंदगी आसान हो जाएगी। जो लोग गलत तरीके से अमेरिका पहुंचकर किसी तरह नौकरी हासिल कर लेते हैं, उन्हें वहां न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम रकम दी जाती है। चूंकि नियोक्ता को पता होता है कि यह शख्स अवैध मार्ग से आया है, इसलिए कम मजदूरी की शिकायत करेगा तो खुद फंसेगा। भारत में 40 लाख, 60 लाख और एक करोड़ रुपए एजेंटों को थमाने के बाद गलत तरीके से अमेरिका आए लोगों की ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा तो पिछला कर्ज चुकाने में चला जाता है। पकड़े जाने का खतरा बना रहता है सो अलग! विदेश में इस पीड़ा, अपमान और शोषण के बाद मिली 'चुपड़ी रोटी' से बहुत बेहतर है- अपने देश की 'दाल और सूखी रोटी'। ऐसे एजेंटों से दूर रहने में ही भलाई है। इनके 'सब्ज बाग' की सच्चाई जानें। अपनी कमाई न लुटाएं।About The Author
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