'भरोसे' की कमाई, कैसे गंवाई?
जनता सुशासन भी चाहती है

केजरीवाल पहले 'सादगी' पर बहुत जोर देते थे
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की हार के संकेत तो पहले ही मिलने लगे थे, लेकिन इतनी करारी हार होगी, इसका अंदाजा कम था। पूर्व मुख्यमंत्री एवं 'आप' के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल खुद 4,089 वोटों के अंतर से हार गए! यही नहीं, पार्टी के कई वरिष्ठ नेता अपनी सीट गंवा बैठे। जंगपुरा में मामूली अंतर से मनीष सिसोदिया की शिकस्त हुई। मालवीय नगर में सोमनाथ भारती कोई कमाल नहीं दिखा सके। सोशल मीडिया पर 'राजा बनने के तरीके' बताने वाले अवध ओझा को पटपड़गंज की जनता ने फूल मालाएं तो खूब पहनाईं, लेकिन 'जीत का लड्डू' नहीं खिलाया। दशकभर पहले लोकप्रियता की लहर पर सवार होकर दिल्ली की सत्ता में आई 'आप' का यह हाल कैसे हुआ? क्या इसका कोई भविष्य भी है? आगे राह कैसी होगी? वास्तव में दिल्ली की जनता ने इन चुनाव नतीजों से साफ कर दिया है कि 'ईमानदारी' और 'बदलाव की राजनीति' की बातें करने वाले केजरीवाल के दावों पर उसे भरोसा नहीं रहा। लोगों ने अन्ना आंदोलन के कारण उन पर भरोसा किया था, जिसकी कमाई कई 'गलतियां' करते हुए गंवा दी। जनता मुफ्त बिजली-पानी के अलावा सुशासन भी चाहती है, जिसका घोर अभाव दिखा। केजरीवाल सत्ता में आने से पहले 'सादगी' पर बहुत जोर देते थे, लेकिन मुख्यमंत्री आवास से जुड़े खर्चों के कारण उन्होंने भाजपा को आलोचना का मौका दिया। 'शीशमहल' सोशल मीडिया पर छाया रहा, जिसका 'आप' के पास कोई जवाब नहीं था। दिल्ली सरकार की आबकारी नीति ने इस पार्टी और इसके नेतृत्व की छवि को बहुत धूमिल किया। जब मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल जेल गए तो 'आप' इसमें भी सहानुभूति लेने के पैंतरे आजमा रही थी, जबकि जनता के लिए यह उस सुनहरे सपने के टूटने जैसा था, जिसमें भ्रष्टाचार से मुक्त शासन का रेखाचित्र खींचा गया था।
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर आतिशी को जिम्मेदारी सौंपी थी, जिनके पास विपक्ष के आरोपों का न तो कोई मजबूत जवाब था और न वे जनता के उसी भरोसे को वापस लौटा पाईं, जो पार्टी के पिछले शासन काल में था। वायु प्रदूषण, सड़कों की हालत, कचरे के ढेर, सरकारी कामों में देरी, पानी की किल्लत, यमुना की सफाई जैसे कई मुद्दे थे, जिनको उठाते हुए भाजपा भरपूर हमले बोल रही थी। वहीं, आतिशी के नेतृत्व में 'आप' इन आरोपों के जवाब आरोपों में ही देती रही। जनता के सामने कई समस्याएं थीं, लेकिन 'आप' उनका समाधान नहीं कर सकी। वह वादे तो खूब करती रही, बस यह बताने से बचती रही कि इन्हें पूरा कैसे किया जाएगा! इसका असर कालकाजी सीट के चुनाव नतीजों में देखा जा सकता है। वहां 'मुख्यमंत्री' आतिशी बमुश्किल जीती हैं। इन नतीजों ने 'आप' को तगड़ा झटका दिया है। अब उसे अपनी हार के कारणों का पता लगाकर चिंतन करना चाहिए। भाजपा को भी बहुत सूझबूझ और विनम्रता से काम करना होगा। दिल्ली में वायु प्रदूषण, सड़क, स्वच्छता और पानी की समस्याएं, अपराध नियंत्रण, यमुना की सफाई, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति, भ्रष्टाचार पर अंकुश, अवैध बांग्लादेशियों समेत तमाम घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई, अतिक्रमण, सरकारी कामों में देरी जैसे कई बड़े मुद्दे हैं। भाजपा सरकार को अपने वादे निभाने होंगे। जनता 'डबल इंजन' सरकार से सुशासन चाहती है। भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वे हमेशा जनता के बीच रहें, उससे जुड़े रहें, कोई भी बयान देते समय सोच-समझकर बोलें। उन्हें यह सत्ता जनसेवा के लिए मिली है। मन में कभी अहंकार नहीं आना चाहिए। अपनी कार्यशैली ऐसी रखें कि हर व्यक्ति अपनी बात पहुंचा सके और उसका काम ईमानदारी से हो। भाजपा नेता इस तथ्य को न भूलें कि 'आप' ने दशकभर बाद सत्ता गंवाई है। इस दौरान सत्ताविरोधी लहर का पैदा होना स्वाभाविक है। उसकी सीटों की संख्या में कमी जरूर आई है, लेकिन वह वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा से बहुत दूर नहीं है। भाजपा जहां 45.5 प्रतिशत वोट लेकर सत्ता में आई है, वहीं 'आप' को 43.5 प्रतिशत वोट मिले हैं। कुछ सीटों पर भाजपा बहुत मामूली अंतर से जीती है। कई सीटों पर कांग्रेस ने 'आप' के वोटबैंक में अच्छा-खासा बंटवारा कर दिया। उसका खाता तो नहीं खुला, लेकिन उसने 6.3 प्रतिशत वोट हासिल कर लिए। कहीं अन्य पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 'आप' का खेल बिगाड़ दिया। इसलिए भाजपा उसे बहुत कमजोर न समझे। 'आप' की ओर से भाजपा को चुनौतियां मिलती रहेंगी।