उचित प्रस्ताव
भारतीय लोकतंत्र में चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं हैं
'वर्ष 1947 में नारा था- पाकिस्तान ज़िंदाबाद। वर्ष 2023 में नारा है- पाकिस्तान से ज़िंदा भाग!'
अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद श्री थानेदार के नेतृत्व में सांसदों के एक दल द्वारा प्रतिनिधि सभा में भारत के स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्रीय दिवस के जश्न के तौर पर मनाने की शुरुआत से संबंधित प्रस्ताव रखा जाना स्वागत-योग्य है।
भारत में स्वतंत्रता के बाद जिस तरह लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुईं और कई चुनौतियों के बावजूद यह अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहा है, उसके मद्देनजर अमेरिकी संसद में ऐसा प्रस्ताव आना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिकी लोकतंत्र से दुनिया बहुत कुछ सीख सकती है।
इस प्रणाली के माध्यम से उसने अपने यहां कई सुधार किए, जिनका प्रभाव अन्य देशों पर भी हुआ। वहीं, भारत में स्वतंत्रता से पहले लोकतंत्र को लेकर कई आशंकाएं व्यक्त की जाती थीं। ब्रिटिश नेताओं ने उपहास उड़ाते हुए यह तक कहा था कि ये लोग इतने बड़े और इतनी विविधता वाले देश को चला ही नहीं सकते।
आज दुनिया देख रही है कि भारत की जनता ने उस साम्राज्यवादी व संकीर्ण मानसिकता को पूरी तरह ग़लत साबित कर दिया है। शुरुआत में कुछ समस्याएं जरूर आईं, लेकिन उनका समाधान ढूंढ़ा गया। इसी लोकतंत्र ने साधारण पृष्ठभूमि वाले लोगों को शिखर तक पहुंचाया। उनमें युवाओं को अपना आदर्श भी मिला और देश को नई दिशा।
आज विभिन्न देशों के प्रतिनिधि भारत में यह देखने-समझने आते हैं कि इतने बड़े देश का राज-काज कैसे चल रहा है! जब उन्हें पता चलता है कि कई धर्मों, कई जातियों, भाषाओं, खान-पान, कई तरह के पहनावों वाला यह देश इतनी विविधता के बीच एकता के सूत्र में बंधकर सांसदों, विधायकों और स्थानीय शासन के प्रतिनिधियों का चुनाव करता है, तो उन्हें आश्चर्य होता है! वे कहते हैं कि अगर इतनी बड़ी आबादी और इतनी विविधता उनके यहां हो तो चुनाव करवाना और संसद चलाना असंभव कार्य है।
वहीं, भारतीय लोकतंत्र में चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं हैं। संसद में उपस्थित जनप्रतिनिधि एक 'लघु भारत' की छवि प्रस्तुत करते हैं। वे अपने मुद्दे उठाते हैं और सरकार की ओर से जवाब दिया जाता है। सदन में होने वाली बहस का टीवी और सोशल मीडिया पर प्रसारण किया जाता है। इस पर गांव-ढाणियों तक खूब चर्चा होती है।
अमेरिकी सांसद श्री थानेदार और अन्य सांसदों को 14 अगस्त की ओर भी ध्यान देना चाहिए। इसे 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के तौर पर याद करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2021 में कहा था कि लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में हर साल 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यह हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने की न केवल याद दिलाएगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तीकरण की भावना और मज़बूत होगी।
निस्संदेह पड़ोसी देश पाकिस्तान 14 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है, लेकिन अब उसकी दुर्गति देखकर उसके नागरिक ही इस पर सवाल उठाने लगे हैं। यही वो दिन था, जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद के षड्यंत्र और कुछ नेताओं के स्वार्थ के कारण लाखों लोगों ने प्राण गंवाए और करोड़ों लोग विस्थापित हुए थे। आज तक उसकी पीड़ा महसूस होती है।
अमेरिका को चाहिए कि वह भी इस दिन को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के रूप में अंकित करे। इस दिन मानवता लहूलुहान हुई थी, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। भारत में बहुत लोगों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि इन दिनों पाकिस्तान में 14 अगस्त को 'ब्लैक डे' मनाने के लिए आवाजें उठ रही हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान के नाम पर उनके पूर्वजों के साथ धोखा और भद्दा मजाक हुआ था। पाक की खराब अर्थव्यवस्था और आतंकवादी घटनाओं के कारण नकारात्मक छवि की वजह से आम जनता कहने लगी है कि यह मुल्क (अमेरिका, चीन, सऊदी और आईएमएफ से) कर्ज मांगने और बम फोड़ने के लिए बनाया गया था, जिसमें हमारा कोई भविष्य नहीं है।
जिन लोगों ने जिद और नफरत के वशीभूत होकर पाकिस्तान मांगा, भारत मां का विभाजन कराया, आज उनके वंशज हर कीमत पर उस मुल्क को छोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं। इस कोशिश में सैकड़ों पाकिस्तानी समुद्र में डूबकर जान गंवा चुके हैं।
पाक में सोशल मीडिया पर अक्सर कहा जाता है कि 'वर्ष 1947 में नारा था- पाकिस्तान ज़िंदाबाद। वर्ष 2023 में नारा है- पाकिस्तान से ज़िंदा भाग!' क्या यह नारा 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है?
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