शांति का दावा!
मुनीर का यह बयान विरोधाभास से भरा हुआ है
पाकिस्तान ने सदैव अशांति को बढ़ावा दिया है
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर का यह बयान अत्यंत हास्यास्पद है कि 'शांति के लिए (पाक के) प्रयासों को कमजोरी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।' जिस मुल्क का इतिहास कट्टरता, नफरत, खून-खराबे और आतंकवाद से भरा हुआ है और जिसकी सरकारी नीति अलगाववाद व आतंकवाद को परवान चढ़ाने की है, वह शांति का दावा कैसे कर सकता है?
मुनीर का यह बयान विरोधाभास से भरा हुआ है। वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तान ने सदैव अशांति को बढ़ावा दिया है। उसने नफरत के नाम पर आतंकवादियों के कैंप खोले, जिन्हें प्रशिक्षण देकर अफगानिस्तान और भारत भेजा तथा निर्दोष लोगों का लहू बहाया। आज पाकिस्तान की पहचान एक ऐसे देश की है, जो आतंकवाद निर्यात करता है। दुनिया में जहां कोई आतंकवादी घटना होती है, उसका कोई-न-कोई तार पाकिस्तान से जरूर जुड़ जाता है।जब कोई पाकिस्तानी (जिसमें आम नागरिक से लेकर शीर्ष राजनेता तक शामिल हैं) यूरोप या अमेरिका जाता है तो वहां हवाईअड्डे पर मौजूद सुरक्षा अधिकारी उसका पासपोर्ट देखते ही चौकन्ने हो जाते हैं। फिर उससे सख्ती से पूछताछ करते हैं। उन्होंने कई लोगों के तो कपड़े खुलवाकर तलाशी ली कि कहीं बम तो लेकर नहीं आ गया है!
अपने अस्तित्व में आने से लेकर आज तक पाकिस्तान ने यह 'प्रतिष्ठा' कमाई है। मुनीर को चिंतन करना चाहिए कि उनका मुल्क इतना ही शांति का समर्थक है तो वह आतंकवाद के लिए क्यों जाना जाता है? लोग यहां निवेश से क्यों डरते हैं? वह आर्थिक बदहाली में क्यों फंसा हुआ है? बांग्लादेश, जो 16 दिसंबर, 1971 से पहले पाकिस्तान का हिस्सा (पूर्वी पाकिस्तान) था, विकास के मामले में उससे इतना आगे क्यों निकल गया है? आज कई कारोबारी अपने कारखाने बंद कर अन्य देशों में जाने की तैयारी क्यों कर रहे हैं?
पाकिस्तान का असल शासक सेना प्रमुख ही होता है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति जैसे पद तो दिखावे के हैं। इस तरह मुनीर पाकिस्तान के कर्ता-धर्ता हैं। वे चाहें तो उसके लिए कुछ बेहतर कर सकते हैं, लेकिन उनके आग उगलते बयानों से यह स्पष्ट हो गया है कि वे भी अपने मुल्क को उसी तबाही के रास्ते पर लेकर जाएंगे, जहां उनके पूर्ववर्ती लेकर जा रहे थे।
मुनीर कहते हैं, ‘हमारे पास अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की इच्छा और क्षमता है, और ऐसा किस तरह किया जाए, इससे अच्छी तरह वाकिफ हैं।’ अगर मुनीर 'अच्छी तरह वाकिफ' हैं तो उन्हें यह भी मालूम होना चाहिए कि पाक की संप्रभुता और अखंडता के लिए असल खतरा भारत नहीं, बल्कि पाकिस्तानी ही हैं।
पाकिस्तान के स्कूल-कॉलेजों में अल्पसंख्यकों के बारे में अपमानजनक बातें धड़ल्ले से पढ़ाई जाती हैं। ये पाठ्यपुस्तकों में शामिल हैं, जिन्हें ऐसे लेखकों ने लिखा है, जो वहां बहुत बड़े 'बुद्धिजीवी' माने जाते हैं। जब किसी बच्चे को शुरुआती कक्षाओं से ही असत्य और भ्रामक सामग्री पढ़ाई जाएगी तो वह अन्य समुदायों से नफरत क्यों नहीं करेगा? उसके मन में नफरत का बीज बोने का काम पाकिस्तानी फौज और आईएसआई के हुक्म पर किया जा रहा है।
इसका नतीजा खूब दिखाई दे रहा है। आज पाकिस्तान में ऐसे लोगों के झुंड के झुंड घूम रहे हैं, जो एक अफवाह पर किसी को भी ईशनिंदा के नाम पर पीट-पीटकर मार डालें। उन्होंने श्रीलंकाई नागरिक प्रियंथा कुमारा को तो ज़िंदा जला दिया था। हाल में एक चीनी अधिकारी बड़ी मुश्किल से बचा, क्योंकि उसे समय रहते सुरक्षा बलों ने हेलिकॉप्टर से अन्यत्र पहुंचा दिया था। बाद में अदालत ने उसे बरी भी कर दिया। चीन में इस मामले की बड़ी चर्चा है।
जब मुनीर चीन पहुंचे तो 'बीजिंग' ने उनसे इस मामले को लेकर जरूर तीखे सवाल किए होंगे। मुनीर याद रखें कि अभी 'खतरा' टला नहीं है। आज पाकिस्तान एक अरब डॉलर के लिए विदेशों में घुटने टेक रहा है तो इसकी जड़ में आतंकवाद और अशांति है। ऐसे देश में कौन निवेश करने आएगा, जहां जान-माल ही सलामत नहीं हैं? इसलिए मुनीर गीदड़-भभकियां देनी बंद करें और अपने नागरिकों के मन से नफरत का जहर खत्म करें। अन्यथा वे और भावी सेना प्रमुख इसी तरह विदेशों में मदद के लिए चक्कर लगाते रहेंगे।