चीनी शिगूफ़ा
बीजिंग में बैठे शी जिनपिंग के चापलूस मंत्री और अधिकारी उन्हें पट्टी पढ़ा रहे हैं
तवांग सेक्टर में पीएलए ने घुसपैठ का जो दुस्साहस किया था, उसे भारतीय सेना ने कितनी दृढ़ता से विफल किया था
अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के ‘पुनः नामकरण’ से संबंधित चीन का कदम अब हास्यास्पद और ‘बचकानी हरकत’ अधिक प्रतीत होता है। अगर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग यह सोचते हैं कि इससे भारत दबाव में आ जाएगा, तो वे भ्रम के शिकार हैं। स्थिति यह है कि चीन के ऐसे हथकंडों पर भारत में चुटकुले बनने लगे हैं। यह तक कहा जा रहा है कि एक दिन शी जिनपिंग सुबह उठेंगे तो यह दावा कर देंगे कि भारत में जितने भी चाय के बर्तन हैं, वे चीन के हैं, क्योंकि उनमें ‘चीनी’ डाली जाती है!
बीजिंग में बैठे शी जिनपिंग के चापलूस मंत्री और अधिकारी उन्हें यह पट्टी पढ़ा रहे हैं कि अगर आप अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के नाम बदलने की घोषणा कर देंगे तो उन पर हमारा दावा और पुख्ता हो जाएगा। अगर ऐसे नाम बदलने से ही दावे पुख्ता होते हैं तो चीनियों को चाहिए कि वे ‘व्हाइट हाउस’ का नाम बदलकर ‘ड्रैगन हाउस’ कर दें। इससे भविष्य में अमेरिका की ज़मीन के चीन के पट्टे चढ़ने की संभावना अधिक हो जाएगी!जिनपिंग महाशय भूल रहे हैं कि तवांग सेक्टर में पीएलए ने घुसपैठ का जो दुस्साहस किया था, उसे भारतीय सेना ने कितनी दृढ़ता से विफल किया था। पीएलए के ‘नाजुक’ फौजियों को भारतीय सैनिकों ने इतनी बुरी तरह पीटा कि वे उलटे पांव भागे थे। चीन ने उससे कोई सबक नहीं लिया। अब ‘नामकरण’ के बहाने दोबारा माहौल गरमाने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसे खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि ‘मनगढ़ंत नाम रखने से हकीकत बदल नहीं जाएगी। हमने ऐसी खबरें देखी हैं। यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने ऐसा प्रयास किया है। हम इसे सिरे से खारिज करते हैं।’ निस्संदेह अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा था, है और रहेगा। चीनी मंत्री और अधिकारी अपने दफ्तरों में बैठकर जो मर्जी नाम रख लें, उससे धरातल पर कोई बदलाव नहीं आने वाला है।
चीन ऐसे नामकरण में बड़ी चालाकी दिखाता है। उसके मीडिया में तिब्बत को ‘चीन का तिब्बत’ लिखकर/बोलकर संबोधित किया जाता है। इसी तरह वह अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहकर उस पर अपना अवैध दावा जताता है। चीन इस सिद्धांत पर चलता है कि एक झूठ को बार-बार दोहराया जाए। इससे कालांतर में वह सच लगने लगेगा। पूरी दुनिया की ज़मीन हड़पने के लिए आतुर चीन की राह में सबसे बड़ी रुकावट भारत है, इसलिए वह बार-बार ऐसी हरकतें करता है, ताकि भारत को ‘परेशान’ कर सके, उकसा सके।
उसका यह दांव काम नहीं आ रहा है। जब उसकी ओर से भारतभूमि के किसी हिस्से को लेकर ऐसा झूठा दावा किया जाता है तो भारतवासी और ज्यादा दृढ़ता से एकजुटता का परिचय देते हैं। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, एलएसी के आस-पास रहने वाले भारतीय नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना बहुत गहरी है। वे भारतीय सेना और सुरक्षा बलों के साथ पूरा सहयोग करते हैं और जब जरूरत होती है, उन तक सूचनाएं भी पहुंचा देते हैं।
यहां लोग जानते हैं कि चीन के हाथ निर्दोष तिब्बतियों के खून से रंगे हैं, जिसका मंसूबा यह है कि लोकतंत्र, मानवाधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पलीता लगाकर ऐसा शासन स्थापित किया जाए, जहां हर कोई चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ‘जी-हुजूरी’ करे। चीन की यह दाल इधर गलने वाली नहीं है। वह जानता है कि भारत से सीधे सैन्य टकराव लेना बीजिंग के लिए आत्मघाती साबित होगा, इसलिए शी जिनपिंग समय-समय पर कोई शिगूफ़ा छोड़ते रहते हैं, ताकि कोरोना से बेहाल हुई अपनी जनता को दिखा सकें कि वे ‘कुछ-न-कुछ’ कर रहे हैं। चाहे उसका परिणाम शून्य ही क्यों न हो!