विश्वास और तालमेल
महाराष्ट्र में पालघर जिले के एक गांव चंद्रनगर में दो साधुओं को भीड़ ने ‘बच्चा-चोर’ समझकर घेर लिया
लोग आक्रामक होकर हिंसा पर उतारू होते, इससे पहले ही किसी जागरूक व्यक्ति ने पुलिस को सूचना दे दी
हाल के वर्षों में सोशल मीडिया ने जिस तरह अफवाहों को पंख दिए हैं, उससे कई समस्याएं पैदा हो गई हैं। अब स्थिति यह है कि जो कुछ भी सोशल मीडिया पर आ जाता है, आमतौर पर लोग उसे सच मान लेते हैं। विभिन्न वॉट्सऐप समूहों में कुछ महीनों के अंतराल में ‘बच्चों के अपहरण’ की पोस्ट वायरल होती रहती हैं, जिनके कारण कई निर्दोष लोग मारपीट के शिकार हो चुके हैं। कुछ तो जान गंवा चुके हैं।
महाराष्ट्र में पालघर जिले के एक गांव चंद्रनगर में दो साधुओं को भीड़ ने ‘बच्चा-चोर’ समझकर घेर लिया। लोग आक्रामक होकर हिंसा पर उतारू होते, इससे पहले ही किसी जागरूक व्यक्ति ने पुलिस को सूचना दे दी और एक बड़ी दुर्घटना टल गई। इसके लिए उस व्यक्ति और पुलिस की भूमिका प्रशंसनीय है। अगर समय रहते पुलिस को सूचना नहीं मिलती और वह फुर्ती दिखाते हुए मौके पर न पहुंचती तो अंजाम भयानक हो सकता था।गेरुए और सफेद कपड़े पहने ये दोनों साधु गांव-गांव जाकर भिक्षा मांगते थे, लेकिन कुछ ग्रामीणों ने उन्हें ‘बच्चा-चोर’ समझ लिया। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अफवाहों के नाम पर भीड़ द्वारा पिटाई की कई घटनाएं हो चुकी हैं। यहां सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाजार गरम होते देर नहीं लगती। कुछ शरारती तत्त्व पुराने वीडियो और तस्वीरें पोस्ट करके भी भ्रम फैलाते रहते हैं। लोग बिना कोई छानबीन किए इन पर विश्वास कर लेते हैं।
इन देशों में जब उग्र भीड़ किसी व्यक्ति को घेर लेती है तो वह मन ही मन यह धारणा बना लेती है कि अमुक व्यक्ति दोषी है, लिहाजा मौके पर ही ‘इंसाफ़’ कर देना चाहिए। यह सोच ग़लत है। संभवतः इसके पीछे यह धारणा भी जिम्मेदार है कि पुलिस ठीक तरह से जांच नहीं करेगी, अदालत से फैसला आने में वर्षों लग जाएंगे, तो इतना इंतजार क्यों किया जाए?
कोरोना काल में बांग्लादेश के एक गांव में भीड़ ने एक व्यक्ति को ‘बच्चा-चोर’ समझकर पीट दिया था। लोग बुरी तरह भड़के हुए थे और वे उस व्यक्ति से जानना चाहते थे कि उसका यहां आने का क्या मकसद है। वह कुछ जवाब नहीं दे पा रहा था, लेकिन भीड़ में से कोई न कोई उसे तमाचा जड़ देता था। जब इस मामले की सूचना पुलिस को मिली तो वह उसे थाने लेकर आ गई। जांच के दौरान पता चला कि वह व्यक्ति गूंगा था और भीख मांगकर गुजारा करता था। उसका किसी बच्चे के अपहरण से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था।
निस्संदेह ऐसी घटनाएं रोकने के लिए सोशल मीडिया पर प्रसारित फ़र्ज़ी पोस्ट पर तो नज़र रखनी ही होगी, इसके अलावा पुलिस को आम जनता के बीच अपनी छवि सुधारनी होगी, ताकि ऐसी किसी भी स्थिति में लोग बेहिचक उसे सूचित करें और कानून अपने हाथ में न लें। पालघर पुलिस ने अप्रैल 2020 में गडचिंचाले गांव में भीड़ द्वारा की गई हिंसा के बाद ‘जनसंवाद’ पहल शुरू की थी। इसके जरिए संबंधित थाने के पुलिसकर्मी गांवों में जाकर स्थानीय लोगों से बातचीत करते हैं और उनका विश्वास जीतते हैं। इससे पुलिस और जनता के बीच तालमेल बढ़ता है। जब जरूरत होती है तो पुलिस को तुरंत सूचना मिल जाती है, जिससे अपराधों पर नियंत्रण में मदद मिलती है।
पुलिस और जनता के बीच विश्वास तथा तालमेल होना ही चाहिए। इससे कई अप्रिय घटनाओं को टाला जा सकता है। फिल्मों और धारावाहिकों में पुलिस की जो नकारात्मक छवि बनाई गई है, उसे बदलने के लिए पुलिस को आगे आना होगा और लोगों में विश्वास पैदा करना होगा। विश्वास की शक्ति से अफवाहों और अपराधों, दोनों पर काबू पाने में काफी आसानी होगी।