
23 जुलाई को सोएंगे देव, मांगलिक कार्यों पर लगेगा चार माह के लिए विराम
23 जुलाई को सोएंगे देव, मांगलिक कार्यों पर लगेगा चार माह के लिए विराम
इन चार महीनों में हल्का एवं सुपाच्य भोजना करना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, ताकि शरीर, मन और आत्मा का कल्याण हो।
बेंगलूरु। इस साल 23 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। इसी के साथ विवाह एवं मांगलिक कार्य चार माह के लिए रुक जाएंगे। इस अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता है। सनातन धर्म में इस अवधि का विशेष महत्व है। इस दौरान विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण संस्कार आदि नहीं किए जाते हैं। चार महीनों की यह अवधि दान-पुण्य, तीर्थयात्रा, संतों के प्रवचन आदि के लिए श्रेष्ठ समझी जाती है। विद्वानों ने ऐसे कई कार्यों का उल्लेख किया है जो इस अवधि में नहीं करने चाहिए।
शास्त्रों की मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद वे देवउठनी एकादशी (इस साल 19 नवंबर) को निद्रा से बाहर आते हैं। चूंकि इन चार महीनों में वर्षा का प्रभाव होता है। चारों ओर जल का साम्राज्य होता है। नए-नए जीव पैदा होते हैं। ऐसे में बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में ऋषियों द्वार बताए गए नियम-संयम स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होते हैं।
आयुर्वेद में कहा गया है कि इन चार महीनों में हल्का एवं सुपाच्य भोजना करना चाहिए, गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, ताकि शरीर, मन और आत्मा का कल्याण हो। चार माह में मांगलिक कार्यों को न करना इसलिए भी उचित है क्योंकि इस दौरान ग्रामीण भारत में लोग कृषि कार्यों में व्यस्त रहते हैं और वर्षा के कारण आयोजन में खलल पड़ सकता है। चूंकि विष्णुजी योगनिद्रा में रहते हैं, इसलिए विभिन्न संस्कारों में वैदिक मंत्रों के माध्यम से आह्वान करना उचित नहीं माना गया है।
कई संत-महात्मा इस अवधि में एक ही स्थान पर ठहरकर लोगों को कल्याणकारी उपदेश देते हैं। इस परंपरा के पीछे एक तर्क यह भी है कि वर्षाकाल में अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीव पैदा हो जाते हैं। ज्यादा चलने-फिरने से इन जीवों को कष्ट हो सकता है। अत: साधु-महात्मा तपस्या में व्यस्त रहते हैं और शेष समय में लोगों को संयम, सदाचार की शिक्षा देते हैं।
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