दूसरों की रक्षा के लिए अपमान सहने वाला ही सच्चा स्वाभिमानी: संतश्री कमलमुनि
'स्वाभिमान ही धर्म का प्रवेश द्वार है'

'स्वाभिमान अमृत है ताे अभिमान जहर है'
ऐलीपुर (टुमकूर)/दक्षिण भारत। टुमकूर की ओर विहाररत राष्ट्रसंतश्री कमलमुनिजी 'कमलेश’ ने साेमवार काे ऐलीपुर ग्राम में उपस्थित श्रद्धालुओं काे संबाेधित करते हुए कहा कि स्वाभिमान गिरवी रखकर प्राप्त किया हुआ साेना, चांदी, महल भी मिट्टी के समान है और स्वाभिमान की सूखी राेटी भी पांच पकवान से बढ़कर है।
जिस व्यक्ति के जीवन में देश के प्रति स्वाभिमान नहीं हाेता, वह जिंदा भी मुर्दे के समान है। स्वाभिमान ही धर्म का प्रवेश द्वार है, इसके बिना कितना ही दान, त्याग, तपस्या की जाएं, सब व्यर्थ हैं।यहां तक कि यदि संत भी बन जाए ताे भी विश्व के किसी धर्म में प्रवेश नहीं हाे सकता है। विश्व के सभी महापुरुषाें ने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना तन, मन, धन सर्वस्व न्याेछावर कर दिया।
संतश्री ने कहा कि स्वाभिमान और अभिमान में दिन-रात का अंतर है, स्वाभिमान अमृत है ताे अभिमान जहर है। दूसराें काे नीचा दिखाने के लिए किया गया काम अभिमान का पाेषण करता है और सब की रक्षा के लिए अपमान सहने वाला ही सच्चा स्वाभिमानी है।
विहार के दाैरान संतवृंदाें ने सिख प्रतिष्ठान पर ठहराव किया, जहां उन्हाेंने कहा कि गुरु गाेविंद सिंहजी ने धर्म, देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए चाराें शहजादाें काे हंसते-हंसते शहीद करवा दिया था, जैन श्रावक दानवीर टाेडरमल जैन ने सिख समाज सहित संपूर्ण मानव समाज के स्वाभिमान के लिए गुरु गाेविंदसिंहजी के दाेनाें बच्चाें के अंतिम क्रिया के लिए स्वर्ण मुद्राओं का भंडार समर्पित कर दिया था।
इस माैके पर अवतार सिंह, गुरजंत सिंह, एकम जिंता सिंह, सुखजीत सिंह काैर, सिमरजीत सिंह, काैर चरणजीत सिंह आदि ने संतश्री कमलमुनिजी, घनश्याममुनिजी, अक्षतमुनिजी, काैशलमुनिजी व सक्षममुनिजी आदि का स्वागत करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। गुरुवार काे मुनिश्री की टुमकूर पहुंचने की संभावना है।