‘निपाह’ के डर से रुकी अल्फांसो की बिक्री, कीमत गिरी धड़ाम

‘निपाह’ के डर से रुकी अल्फांसो की बिक्री, कीमत गिरी धड़ाम

बेलगावी/दक्षिण भारतप़डोसी राज्य केरल में चमगाद़डों से फैले निपाह वायरस के संक्रमण के कारण कई लोगों की जान जाने के बाद मशहूर रत्नागिरि आमों की बिक्री में तेज गिरावट दर्ज की गई है। उत्तर कर्नाटक का यह शहर इस बेहद स्वादिष्ट आम का काफी ब़डा बाजार माना जाता है। यहां रत्नागिरि आम के लिए लोग ब़डी रकम खर्च करने को तैयार हो जाते हैं। वहीं, इस वर्ष आवक के अनुपात में उठाव न होने से इस आम की कीमत में काफी गिरावट भी आ चुकी है। निपाह वायरस के संक्रमण के डर से इस वर्ष लोग कोई आम खरीदने को तैयार नहीं हैं। कर्नाटक को महाराष्ट्र और गोवा से जो़डने वाले बेलगावी में रत्नागिरि आम की बिक्री के लिए पुणे-बेंगलूरु राष्ट्रीय राजमार्ग और कांग्रेस रोड के पास स्थित महंतेश नगर में कई अस्थायी दुकानें लगाई गई हैं। वहीं, ब़डी स्टॉल्स लगाने वाले विक्रेताओं की बिक्री के आंक़डों में काफी गिरावट आई है। उन्हें हमेशा की तरह बेलगावी में अच्छी-खासी बिक्री की उम्मीद थी। हाल के समय तक रत्नागिरि और देवग़ड अल्फांसो आम की कीमत यहां काफी ऊंची थी। १५ आमों के एक बक्से की कीमत ७०० रुपए तक पहुंच चुकी थी। वहीं बिक्री घटने से अब इनकी कीमत सिर्फ ७५ रुपए प्रति बक्सा रह गई है। निपाह वायरस का डर ही गिरावट का प्रमुख कारण माना जा रहा है। निपाह के अलावा महाराष्ट्र से भारी मात्रा में रत्नागिरि और अल्फांसो आमों की आवक को भी कीमत में आई गिरावट का महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि मुंबई और बेंगलूरु जैसे ब़डे बाजारों में अल्फोंसो आमों कीमत इस समय प्रति किलोग्राम १५० रुपए चल रही है। इस कीमत में ब़डे आकार के पांच आम आ जाते हैं। वहीं, समस्या यह है कि ईंधनों की कीमत में हाल के दिनों में हुई वृद्धि के कारण इन्हें दूर-दराज के बाजारों में बेचकर काफी लाभ नहीं कमाया जा सकता। महाराष्ट्र के रत्नागिरि और देवग़ड अल्फोंसो आम के उत्पादन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं्। इनके साथ ही बेलगावी में धारवा़ड, कलघटगी, तरिहाल, शिग्गांव, खानापुर, कित्तूर और कर्नाटक के अन्य स्थानों से मलगोआ, तोतापुरी, ईसादी, गिनिरामा और पैरी प्रजाति के लोकप्रिय आम की आवक होती है। खास बात यह है कि निपाह वायरस का संक्रमण फैलने के बाद इस वर्ष लोग कर्नाटक में उपजाए गए आम भी नहीं खरीद रहे हैं। इन सभी प्रजातियों के आम की कीमत आसमान से लु़ढककर जमीन के नीचे पहुंचने लगी है। इससे आम की खरीददारी में काफी पैसे निवेश कर चुके विक्रेताओं की हालत पतली है। उन्हें भारी नुकसान उठाना प़ड रहा है। बेलगावी की मशहूर कांग्रेस रोड पर आम की बिकवाली करने वाले एजेड आसिफ ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि दो सप्ताह पहले तक उन्हें अल्फांसो आम की बिक्री से अच्छा-खासा मुनाफा हो रहा था। वहीं, अब इनकी कीमत पूरी तरह से नीचे आ चुकी है। फिलहाल यह १५० रुपए प्रति किलो की दर से उपलब्ध हैं्। इस कीमत पर भी लोग अल्फांसो आम नहीं खरीदना चाह रहे। इसकी सबसे अच्छी और लोकप्रिय प्रजाति भी ३०० रुपए में १८ आम की दर से बिक रही है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस वर्ष आम खरीदने के लिए तीन लाख रुपए लगाए थे। उनके पास इस समय भारी मात्रा में आम बचे हुए हैं, जो अगले १५ दिनों के अंदर खराब होने लगेंगे। यह उनकी चिंता का ब़डा कारण है क्योंकि अब तक आम की बिक्री तेजी नहीं पक़ड सकी है। मंडी में आम की लदाई और ढुलाई करने वाले मजदूरों को अपनी जेब से दैनिक वेतन देना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। खेत से गोदाम तक आम के परिवहन में आने वाला मोटा खर्च भी उन पर भारी प़ड रहा है। एक अन्य आम विक्रेता एम मोहम्मद ने कहा कि पहले ग्राहक खुद ही उनकी दुकान तक चलकर आया करते थे और काफी ऊंची कीमत में आम की पेटियां खरीदकर ले जाते थे। वहीं, आज उन्हें अपनी दुकान से अल्फोंसो आम खरीदने के लिए लोगों को आवाज लगानी प़ड रही है। दुनिया भर में मशहूर अल्फांसो आम की कीमत भी बेहद कम है लेकिन फिर भी लोग आम खरीदने से बच रहे हैं। मोहम्मद ने महंतेश नगर में एक ब़डी स्टॉल लगाई है लेकिन पूर्व में सिर्फ आम की गुणवत्ता भांपकर ५०-५० बक्से आम खरीद लेने वाले ग्राहकों को एक दिन में १० बक्सा आम बेच पाना भी मुमकिन नहीं हो रहा है। वहीं, आम की शौकीन नेहा गुि़ढयाल, डॉ. सुष्मिता महंतशेट्टी और अनुश्री ने बताया कि वह इस बार भी आम का स्वाद चखने का इंतजार कर रही थीं लेकिन निपाह वायरस से केरल में हुई मौतों की खबरें सुनने के बाद उन्होंने इस वर्ष एहतियात के तौर पर आम नहीं खरीदे। यहां तक कि इन महिलाओं ने अपने बच्चों को भी सख्त हिदायत दे रखी है कि वह किसी भी हालत में आम न खाएं। इसके साथ ही बच्चों की करीबी निगरानी भी की जा रही है कि कोई उन्हें आम न खिलाए। निश्चित रूप से आम विक्रेताओं ने बाजार में फलों के राजा की यह हालत होने की कभी कल्पना भी नहीं की थी।

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