यह अभिव्यक्ति नहीं, विषवमन है

कुछ लोग ब्राह्मण समाज के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं

यह अभिव्यक्ति नहीं, विषवमन है

बेटियों के लिए घिनौनी मानसिकता रखने वालों को दंडित किया जाना चाहिए

मध्य प्रदेश में एक आईएएस अधिकारी द्वारा ब्राह्मण समाज की बेटियों के बारे में की गई मर्यादाविहीन टिप्पणी निंदनीय है। इस अधिकारी का दुस्साहस इतना बढ़ गया कि उच्च न्यायालय पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। ऐसी मानसिकता का व्यक्ति प्रशासनिक सेवा में कैसे आ गया? इस शख्स ने जिन शब्दों का प्रयोग किया, वे किसी आईएएस अधिकारी को शोभा नहीं देते। इस पद की गरिमा होती है, जिसे अधिकारी धूमिल कर रहा है। यह अभिव्यक्ति नहीं, विषवमन है। मध्य प्रदेश सरकार ने उक्त अधिकारी को बर्खास्त करने की सिफारिश कर उचित निर्णय लिया है। बेटियां ब्राह्मण परिवार की हों या किसी अन्य की, उनके लिए ऐसी घिनौनी मानसिकता रखने वालों को कानून द्वारा दंडित किया जाना चाहिए। ऐसे लोग समाज में फूट डाल रहे हैं, नफरत के बीज बो रहे हैं। इस अधिकारी ने बेटियों के बारे में जिस कलुषित सोच का प्रदर्शन किया, वह किसी 'स्वस्थ' व्यक्ति की नहीं हो सकती। इसके खिलाफ विस्तृत जांच होनी चाहिए। प्राय: जांच में पुराने कांड भी सामने आ जाते हैं। जब ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती तो ये खुद को सर्वशक्तिमान समझने लगते हैं। इन्हें यह भ्रम होने लगता है कि 'हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा ... हमें सबकुछ बोलने, लिखने का लाइसेंस मिल गया है।' हालांकि जब सरकार सख्ती दिखाती है तो ये खुद को पीड़ित की तरह पेश करने लगते हैं, सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार शुरू कर देते हैं कि 'भारत में मानवाधिकारों का गला घोंटा जा रहा है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई है।' क्या सारे मानवाधिकार उसी समय याद आते हैं? जिस समाज की मान-मर्यादा पर कीचड़ उछाल रहे हैं, उसके कोई अधिकार नहीं हैं?

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यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए ब्राह्मण समाज के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं। जो व्यक्ति जितना ज्यादा जहर उगलता है, वह उतना ही प्रगतिशील समझा जाता है। ब्राह्मण आज से नहीं, सदियों से आसान निशाना रहे हैं। विदेशी आक्रांताओं ने सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए पुस्तकालय जलाए थे। तब ब्राह्मण ही थे, जो मुट्ठीभर चावल खाकर पूरा दिन अपने धर्मग्रंथों को कंठस्थ करते थे। अंग्रेजों ने बड़े ही शातिर ढंग से ऐसा पाठ्यक्रम तैयार किया, जिसमें हर समस्या की जड़ में ब्राह्मण को दिखाया। उनका बस चलता तो ब्रिटेन में बर्फबारी की वजह भी ब्राह्मण को बता देते। भारत में पिछले एक हजार साल में सत्ता में कौन रहा है? अगर ज़माना इतनी सदियों बाद भी अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाया है तो इसके लिए ब्राह्मण को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? क्या ब्राह्मण उसे सुधार करने से रोक रहा है? देश में कुछ बुद्धिजीवी अजीब दलीलें देते हैं। वे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी जैसी कई समस्याओं के तार ब्राह्मण से जोड़ देते हैं। क्या ब्राह्मण किसी को स्कूल जाने, काम सीखने और नौकरी करने से मना कर रहा है? एक साजिश के तहत हिंदू समाज को बांटा जा रहा है। कुछ लोग प्रसिद्धि पाने के लिए ब्राह्मण ही नहीं, क्षत्रिय और वैश्य समाज के खिलाफ भी अनर्गल टिप्पणियां करते रहते हैं। एक लेखक ने ऐसी कहानी लिखी थी, जिसे पढ़कर आज भी पाठक सोचता है- 'क्या ठाकुर अपने कुएं से अन्य जातियों को पानी नहीं पीने देते थे?' ऐसे कितने लेखक हैं, जिन्होंने अपनी कहानियों में यह बताने की हिम्मत दिखाई कि ठाकुरों ने सर्वसमाज के लिए हजारों कुओं, तालाबों और बावड़ियों का निर्माण करवाया था? यह कहकर वैश्य समाज को कोसने वालों की कमी नहीं है कि इन्होंने सदैव शोषण किया। कुछ लोगों ने किया होगा। शोषक प्रवृत्ति के लोग किस देश में नहीं हैं? वैश्य समाज ने हजारों धर्मशालाओं, विद्यालयों और चिकित्सालयों का निर्माण करवाया था। इस समाज के कितने ही परिवारों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी संपत्तियां दान कर दी थीं। उनके लिए कहानियां कौन लिखेगा? हमें जातिगत पूर्वाग्रहों को त्यागकर सबके लिए सम्मान की भावना रखनी चाहिए। किसी भी समाज के लिए गलत टीका-टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए। इसी से सशक्त और समावेशी भारत का निर्माण संभव है।

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