'इंतजार' न करें, 'इच्छाशक्ति' दिखाएं
आम जनता हो या रसूखदार लोग, सबका जीवन सुरक्षित हो

अपराधी बेलगाम हो रहे हैं
अभिनेता सैफ अली खान के घर में घुसकर उन पर चाकू से हमला किए जाने की घटना के तार बांग्लादेश से जुड़ना यह बताता है कि भारत में घुसपैठियों का दुस्साहस बहुत बढ़ गया है। मामले के आरोपी बांग्लादेशी नागरिक शहजाद जैसे कितने ही लोग हमारे शहरों में रह रहे हैं, घूम रहे हैं। उन पर शिकंजा कब कसा जाएगा? क्या किसी ने सोचा था कि पड़ोसी देश का कोई नागरिक भारत के एक मशहूर अभिनेता के घर तक पहुंचकर वारदात को अंजाम दे सकता है? चूंकि मामला एक बड़े अभिनेता से जुड़ा था, जिसकी देशभर में चर्चा हुई, पुलिस ने भी खूब सक्रियता दिखाई, कई सीसीटीवी कैमरे खंगाले। आखिरकार आरोपी को पकड़ लिया। क्या ही अच्छा हो, अगर इतनी सक्रियता किसी आम आदमी के मामले में भी दिखाई जाए। होना तो यह चाहिए कि आम जनता हो या मशहूर / रसूखदार लोग, सबका जीवन और संपत्ति सुरक्षित हों। उक्त मामले में आरोपी कितना बेखौफ था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह इमारत की 12वीं मंजिल पर पहुंच गया था! क्या रात को उस इलाके में पुलिस का एक भी गश्ती वाहन मौजूद नहीं था? जब मुंबई जैसे महानगर का यह हाल है तो देश के अन्य शहरों और गांवों की सुरक्षा किसके भरोसे है? आज अपराधी बेलगाम हो रहे हैं। शरीफ लोगों के मन में तो पुलिस का वाहन देखकर भय पैदा होता है, सुरक्षा का भाव भूल ही जाइए। इस तरह अपराधों पर कैसे नियंत्रण कर पाएंगे? क्या राज्यों की पुलिस का खुफिया नेटवर्क इतना कमजोर है कि एक बांग्लादेशी शख्स इतनी दूर आकर अपराध कर सकता है? इस बीच किसी पुलिसकर्मी ने उसे रोकने-टोकने और शक के आधार पर हिरासत में लेने की जहमत नहीं की?
एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ठाणे में श्रमिक शिविर में बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक रह रहे हैं, जहां से सैफ अली खान पर हमले के आरोपी को गिरफ्तार किया गया। जब यह मालूम है कि श्रमिक शिविर में बांग्लादेशी नागरिक डेरा डाले बैठे हैं और उनके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है तो ऐसी जगहों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? समस्या कहां है? अगर सरकारें ठान लें कि एक-एक बांग्लादेशी घुसपैठिए को पकड़ा जाएगा तो समस्या का समाधान संभव है। इसमें जनता का सहयोग जरूर मिलेगा। भारत में बांग्लादेश के कई नागरिक विभिन्न अपराधों में लिप्त हैं। कुछ तो दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों में शामिल रहे हैं। चोरी, लूट, छीना-झपटी जैसे मामले भी बहुत आ चुके हैं। इनके भारतीय नागरिक नहीं होने के कारण कोई पुख्ता रिकॉर्ड नहीं होता। कई बांग्लादेशी घुसपैठिए जगह बदलते रहते हैं। वे फर्जी दस्तावेज देकर गलत पहचान के साथ सफर करते हैं। इन्होंने कई जगह अतिक्रमण कर अपनी झुग्गियां बना रखी हैं। वोटबैंक के लालच में कुछ नेता इनके मददगार के तौर पर खड़े हो जाते हैं। कई बाजारों में स्थानीय व्यापारियों के साथ इनका झगड़ा होता रहता है, जिनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं। प्रशासन की नजरें इतनी पैनी होनी चाहिएं कि ऐसी घटनाओं की अनदेखी न हो। बांग्लादेशी घुसपैठियों का पता लगाने के लिए कई तरह के सुझाव दिए जाते हैं, जिनमें से कुछ को लागू करना काफी खर्चीला और पेचीदा काम हो सकता है। हालांकि ढेरों ऐसे 'असरदार तरीके' हैं, जिन पर अमल किया जाए तो बांग्लादेशी घुसपैठियों का न केवल पता लगाया जा सकता है, बल्कि 'उचित कार्रवाई' होने के बाद वे भविष्य में भूलकर भी इधर आने की गलती नहीं करेंगे। इसके लिए सरकारें किसी 'घटना' का इंतजार न करें, इच्छाशक्ति दिखाएं।