'शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के लिए किसी जाति को अलग समूहों में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता'
कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला

Photo: PixaBay
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि एक ही समुदाय को शिक्षा और रोजगार के लिए दो अलग-अलग आरक्षण श्रेणियों के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता।
यह निर्णय पूर्ववर्ती मैसूरु जिले के कोल्लेगल तालुक की निवासी वी सुमित्रा द्वारा दायर याचिका के जवाब में आया, जिन्होंने राज्य द्वारा बालाजिगा/बनाजिगा समुदाय के वर्गीकरण को चुनौती दी थी।न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज ने हाल ही में फैसला सुनाते हुए कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि वह बालाजिगा/बनाजिगा समुदाय को शिक्षा और रोजगार दोनों उद्देश्यों के लिए समान रूप से ग्रुप 'बी' के अंतर्गत वर्गीकृत करे।
न्यायालय ने कहा कि राज्य का मौजूदा वर्गीकरण, जो समुदाय को शिक्षा के लिए ग्रुप 'बी' और रोजगार के लिए ग्रुप 'डी' के अंतर्गत रखता है, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।
सुमित्रा को साल 1993 में ओबीसी कोटे के तहत प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका के रूप में नियुक्त किया गया था। उनका दावा था कि उनकी जाति ग्रुप 'बी' से संबंधित है।
हालांकि, साल 1996 में उन्हें एक नोटिस मिला जिसमें कहा गया था कि उनके समुदाय को रोजगार के लिए ग्रुप 'डी' के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जिससे नौकरी से संबंधित आरक्षण के लिए उनका जाति प्रमाण पत्र अमान्य हो गया।
विभागीय अपीलों और कर्नाटक प्रशासनिक न्यायाधिकरण के माध्यम से निवारण के कई असफल प्रयासों के बाद, सुमित्रा को साल 1986 की एक सरकारी अधिसूचना मिली, जिसमें यह दोहरा वर्गीकरण दर्शाया गया था।
उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 15 और 16 के पीछे संवैधानिक मंशा सुसंगत है और इसका उद्देश्य समान वंचित समूहों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है। उन्होंने राज्य के वर्गीकरण को चुनौती दी और इसे विरोधाभासी बताया।
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