'गलत नीति-रीतियों से समाज को बचना चाहिए'

धर्म के नीति-नियमाें के विरुद्ध काेई आचरण नहीं हाेना चाहिए

'गलत नीति-रीतियों से समाज को बचना चाहिए'

शादियाें में शराब, धूम्रपान, हुक्का, जुआ आदि काे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए

शिव्वमाेग्गा/दक्षिण भारत। डाॅ. एम. विश्वेश्वरैया मार्ग पर स्थित कुवेंपु रंग मंदिर में जैनधर्म के सभी संप्रदायाें की संयुक्त धर्मसभा काे मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि दान की घाेषणा कर धनराशि तत्काल जमा करवाई जानी चाहिए। जाे दान देने के बाद भी धनराशि पर अपना अधिकार रखते हैं, वह निकृष्ट पाप प्रवृत्ति है। सामाजिक-धार्मिक स्थानाें पर धर्म के नीति-नियमाें के विरुद्ध काेई आचरण नहीं हाेना चाहिए। 

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जाे लाेग सामाजिक-धार्मिक स्थानाें पर रात्रिभाेजन, शराब, जुआ और किराए की डांसर आदि बुराइयाें काे लाने के समर्थक हैं, वे अपने समाज व धर्म काे बिल्कुल सुरक्षित नहीं रख पाएंगे। किसी भी कीमत पर समाज की शादियाें में शराब, धूम्रपान, हुक्का, जुआ आदि काे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। 

ऐसे कुकृत्याें के हिमायती लाेगाें काे समाज से बाहर धकेल कर ही समाज काे स्वच्छ और सुरक्षित रखा जा सकता है। जाे लाेग चार और पांच सितारा हाेटलाें में अपने कार्यक्रम आयाेजित करना चाहते हैं, वे समाज की गाैरवशाली उज्ज्वल परंपराओं काे धूमिल कर उसकी गरिमा काे समाप्त कर रहे हैं। आज नहीं ताे कल श्रीमंत वर्ग की यह दिखावे की मानसिकता उन्हें और समाज काे भारी नुकसान पहुंचाएगी।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि किसी भी समाज का अस्तित्व और उसका विकास संपत्ति तथा बुद्धि से नहीं, उसकी नीति-रीतियाें से हाेता है। गलत नीतियां समाज के भविष्य काे अंधकारमय बना देती हैं। समाज में छाेटे-बड़े, सामान्य-विशेष, सभी वर्गाें के लाेग हाेते हैं। सबकी बुद्धि, क्षमता, संपत्ति और सामर्थ्य एक जैसे नहीं हाेते। ऐसे में सबके हिताें का चिंतन करके ही समाज का अखंडित, प्रगतिशील और स्वच्छ रखा जा सकता है। 

भेदभाव और पक्षपात समाज के अस्वस्थ हाेने के सबूत हैं। समाज की अच्छी और बहुहितकारी नीति-रीतियां ही उसकी परिपक्वता का निर्धारण करती है। इसलिये यह आवश्यक है कि समाज कुछ गिने-चुने प्रभावशाली लाेगाें की मनमानी का भाेग ना बनें।

समाज काे प्रगतिशील और परिपक्व बनाने के लिए लाेगाें का जागरूक और सामाजिक संगठन का मजबूत हाेना भी अत्यंत जरूरी है। जिसका सांगठनिक ढांचा कामजाेर हाेता है और जिस समाज का प्रबुद्ध वर्ग उदासीन हाेता है, वह समाज आपसी विवादाें और मनमानियाें में तबाह हाे जाता है।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने आगे कहा कि अंतरजातीय विवाहाें काे मिलती सामाजिक सहमति भी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। एक तरफ जहां समाज में कन्याओं की संख्या कम हैं और पर्याप्त उम्र हाेने के बाद भी युवकाें काे कन्याएं नहीं मिल रही है, ऐसी विकट स्थिति में अंतरजातीय विवाहाें काे मिल रही सहमति भारी सामाजिक असंतुलन पैदा करेगी। इससे समाज में पाखंड बढ़ेगा और समाज रुग्ण बन जाएगा। वर्तान में यह समस्या समाज की बहुत बड़ी चिंता का विषय है।

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