जिस देश में गाय की रक्षा होगी, वही विकसित होगा: संतश्री कमलमुनि
रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाइयां धरती काे बंजर बना रही हैं

पशु आधारित खेती और कृषि संस्कृति ही हमारी रक्षा कर सकती हैं
चित्रदुर्गा/दक्षिण भारत। शहर के जाेगनहल्ली नित्यानंद आश्रम में राष्ट्रसंतश्री कमलमुनिजी 'कमलेश’ ने उपस्थित श्रद्धालुओं काे जीवदया के बारे में बताते हुए कहा कि एक तरफ ताे हम मार्बल की गाय की मूर्ति बनाकर उसकी आरती उतारते हैं और दूसरी तरफ जिंदा गाैमाता काे प्लास्टिक और गंदगी खिलाकर माैत का शिकार बनाते हैं, यह महापाप है।
संतश्री ने कहा कि हिंदुस्तान में लाखाें धर्मस्थल हैं, यदि प्रत्येक धर्मस्थल पर एक-एक गाैशाला चालू कर दी जाए ताे कत्लखाने जाने से गायाें काे बचाया जा सकता है।उन्हाेंने कहा कि पर्यावरण कानून में हरे वृक्ष की डाली ताेड़ना अपराध है, पर पशुओं पर खंजर चलाने की इजाजत मिली हुई है, यह हमारे देश की न्यायव्यवस्था की बड़ी खामी है।
मुनिश्री ने बताया कि खूंखार जंगली जानवर के शिकार पर ताे सरकार दंड देती है और पशु अवशेष मिलने पर अपराधी घाेषित करती है, ताे फिर पालतू पशु पर खंजर चलाने की इजाजत कैसे देती है, यह न्यायालयाें के चिंतन का विषय है।
उन्हाेंने कहा कि जिस देश में गाय की रक्षा हाेगी वही देश विकसित देश हाेगा। उन्हाेंने कहा कि रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाइयां धरती काे बंजर बना रही हैं, मानव के जीवन पर गलत प्रभाव डाल रही हैं, ऐसे में पशु आधारित खेती और कृषि संस्कृति ही हमारी रक्षा कर सकती हैं।
इस माैके पर उपस्थित स्थानीय स्वामी पूर्णानंदजी ने कहा कि राष्ट्रसंत के आह्वान पर हमें गाैसेवा व पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। कार्यक्रम में अखिल भारतीय जैन दिवाकर विचार मंच, नई दिल्ली के महेन्द्र चाैपड़ा ने संतश्री के प्रवचन से प्रेरित हाेकर घाेषणा की कि यदि यहां मंदिर गाैशाला चालू करता है ताे संस्था की ओर से 51 हजार रुपए की सहायता दी जाएगी।
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