घुसपैठियों पर अंकुश कब?

हमारे कई शहरों में अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं

घुसपैठियों पर अंकुश कब?

घुसपैठियों के मददगारों का अपराध ज्यादा गंभीर है

भारत के विभिन्न इलाकों में अवैध ढंग से रहने वाले बांग्लादेशियों के खिलाफ स्थानीय पुलिस की सख्त कार्रवाई की जरूरत है। विदेशी नागरिकों की घुसपैठ और अवैध प्रवास से भविष्य में गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिसके मद्देनज़र पुलिस को सतर्क रहना चाहिए। महाराष्ट्र में मुंबई समेत चार अलग-अलग शहरों में ऐसे 17 बांग्लादेशियों को एटीएस ने गिरफ्तार किया है। ये तो वे लोग हैं, जो पकड़ में आ गए। मुंबई जैसे बड़े शहर में किसी घुसपैठिए का अपनी असल पहचान छिपाकर रहना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। प्राय: शहरों में पड़ोसियों का एक-दूसरे से ज्यादा परिचय नहीं होता। इसका फायदा उठाकर कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया महीनों या वर्षों से रह रहा हो तो लाखों लोगों की भीड़ में उसका पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। फिर भी महाराष्ट्र एटीएस ने डेढ़ दर्जन बांग्लादेशियों को धर दबोचा, जिसके लिए उसके अधिकारियों की सराहना होनी चाहिए। इसी तरह दिल्ली पुलिस ने बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ करवाने वाले एक गिरोह का पर्दाफाश करते हुए दर्जनभर लोगों को गिरफ्तार कर लिया। यह कार्रवाई भी सराहनीय है। अब सवाल यह उठता है कि हमारे देश में अवैध ढंग से डेरा डालकर बैठे ये बांग्लादेशी अंतरराष्ट्रीय सीमा से इतनी दूर कैसे आ गए? अगर बांग्लादेश से कोई व्यक्ति सीमा पार कर आएगा तो उसके लिए प. बंगाल में अपनी पहचान छिपाकर रहना सबसे ज्यादा आसान होगा। चूंकि वहां उसे भाषा, परिवेश, रहन-सहन, खानपान के मामले में तालमेल बैठाने में आसानी होगी। ये लोग दिल्ली और मुंबई में रह रहे थे! किसी में इतना दुस्साहस तभी पैदा होता है, जब वह कई चीजों को लेकर 'निश्चिंत' हो जाए।

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पूर्व में आईं मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि हमारे कई शहरों में अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं। जब ये इधर आते हैं, तब पुलिस को इनकी भनक कैसे नहीं लगती? कोई व्यक्ति इतनी दूर पैदल तो आएगा नहीं! उसके लिए ट्रेन सबसे सस्ता और सुविधाजनक जरिया होती है। हमारे खुफिया तंत्र को रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों, बस अड्डों आदि जगहों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। इतने बड़े देश में अलग-अलग इलाकों के लोग सफर करते रहते हैं, जिनकी भाषा, पहनावे, खानपान आदि में बहुत भिन्नता होती है। उनके बीच बांग्लादेशियों की पहचान करना थोड़ा मुश्किल काम जरूर है, लेकिन यह नामुमकिन नहीं है। जिस तरह पाकिस्तानियों को उनके लहजे और कुछ खास आदतों से पहचाना जा सकता है, उसी तरह बांग्लादेशियों को भी पहचाना जा सकता है। इसके लिए अधिकारियों और पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। अगर कोई अवैध बांग्लादेशी किसी तरह हमारे शहर में ठिकाना बनाने में कामयाब हो जाए तो उसका पता लगाने के कई तरीके हैं। वह रोजमर्रा की जरूरतों के लिए उस इलाके के दुकानदारों, सब्जीवाले, दूध विक्रेता आदि से चीजें लेता ही है। पुलिस को चाहिए कि वह अपने इलाकों में मजबूत नेटवर्क खड़ा करे। अगर दृढ़ता से काम करेंगे तो कोई घुसपैठिया कितना ही शातिर क्यों न हो, वह एक-दो हफ्ते से ज्यादा बचकर नहीं रह सकता। यह देखने में आया है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में फर्जी दस्तावेज मुहैया कराने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं। वे चंद रुपयों के लालच में अपने ही देश की सुरक्षा का सौदा कर रहे हैं। एक ओर जहां आम आदमी को अपने दस्तावेज बनवाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं (यह प्रक्रिया डिजिटल होने से कुछ राहत मिली है), दूसरी ओर बांग्लादेशी घुसपैठिए आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज लेकर धड़ल्ले से रह रहे हैं। घुसपैठियों के मददगारों का अपराध ज्यादा गंभीर है। दोनों को ही सख्त सज़ाएं देकर कड़ा संदेश देना चाहिए।

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