किस राह पर ब्रिटेन?
सभ्य समाज में हिंसा और उपद्रव के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए
कुछ दशक पहले ब्रिटेन में ऐसे दृश्यों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी
ब्रिटेन समेत यूरोप के कई देश आंतरिक सुरक्षा के संकट का सामना कर रहे हैं, जो भविष्य में और गंभीर हो सकता है। इन देशों के मौजूदा हालात को देखकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि ये 'बारूद' के ढेर पर बैठे हैं। अगर आने वाले दौर में हालात नहीं सुधरे तो एक 'चिन्गारी' इनकी दशा और दिशा बदल सकती है। बेशक ब्रिटेन के इतिहास में क्रूरता और साम्राज्यवाद के ऐसे कई अध्याय हैं, जिन्हें नैतिकता और मानवता की दृष्टि से बिल्कुल भी उचित नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इस देश के रवैए में काफी बदलाव आ गया था। ब्रिटेन अपने शांत वातावरण, नागरिकों के जीवन की सुरक्षा और भविष्य को लेकर आशावादी नजरिए के लिए जाना जाता 'था'। इस 'था' में ऐसा बहुत कुछ था, जो अब नहीं है। अब वहां से खबरें आती हैं- 'ब्रिटेन में हिंसा भड़की ... विशेष प्रशिक्षण प्राप्त पुलिसकर्मी तैयार ... बेकाबू हो रहे हालात!' वर्षों पहले भारत से ब्रिटेन गए लोगों ने भी अपनी मेहनत से इस देश को संवारा था। वे इसे अपने सपनों का ऐसा देश मानते थे, जहां उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहेगा। अब वहां जैसे हालात पैदा हो रहे हैं, उन्हें देखकर सपनों के देश की नींव हिलती महसूस हो रही है। साउथ पोर्ट में तीन लड़कियों की चाकू घोंपकर हत्या की घटना के बाद जिस तरह सोशल मीडिया पर गलत सूचना फैली और झड़पें शुरू हुईं, उससे इस देश के सुरक्षा तंत्र पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगता है। ब्रिटिश मीडिया दुनियाभर की खबरों की सच्चाई का पता लगाने का दावा करता है, तथ्यों की जांच करता है, लेकिन अपने देश में हुई घटना के सही तथ्य जनता के सामने सही तरीके से नहीं रख पाया!
उन तीन बच्चियों की हत्या की घटना बहुत दु:खद है। सभ्य समाज में हिंसा और उपद्रव के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सबके जान-माल की सुरक्षा करे। आज ब्रिटेन अपने शासकों द्वारा अतीत में की गईं गंभीर गलतियों के नतीजे भुगत रहा है। उन्होंने एक ऐसे काल्पनिक समाज का निर्माण करने की कोशिश की थी, जिसमें ब्रिटिश मूल्यों की घोर अनदेखी की गई। उन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, सोमालिया, सूडान जैसे देशों से लोगों को उनकी पृष्ठभूमि की ठीक तरह से जांच-पड़ताल किए बगैर ले लिया। भारत से भी बहुत लोग ब्रिटेन गए, लेकिन वे कुशल श्रमबल का हिस्सा थे, जो उसके सामाजिक जीवन में रच-बस गए। जबकि पाकिस्तान जैसे देशों से बड़ी संख्या में ऐसे लोग ब्रिटेन जा पहुंचे, जिनकी शैक्षणिक योग्यता बहुत कम थी और हुनर की भी कमी थी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का जमकर फायदा उठाया, लेकिन उस समाज में घुले-मिले नहीं, बल्कि समय-समय पर अपने लिए विशेष अधिकारों की मांग करते रहे। सरकारें उनके लिए सुविधाएं बढ़ाती रहीं, उनकी मांगें पूरी करती रहीं, बस यह देखना भूल गईं कि जिन लोगों को सहायता दी जा रही है, वे स्थानीय परिवेश का हिस्सा बन रहे हैं या नहीं! कई अंग्रेजों ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा किए, जिनका निष्कर्ष यह है कि उनके मन में अपनी सरकारों के प्रति आक्रोश है, क्योंकि उनके हितों की अनदेखी की गई। एक अंग्रेज, जो खानपान से संबंधित चीजों का व्यवसाय करता है, ने बताया कि पाक मूल के एक व्यक्ति ने उसके यहां नौकरी के लिए आवेदन किया था। शुरुआत में उसने मेहनत व ईमानदारी के बड़े-बड़े वादे किए। बाद में, वह निजी आस्था संबंधी कारण बताकर कार्यस्थल से कई-कई घंटे गायब रहने लगा। वह ग्राहकों को चीजें परोसने से साफ इन्कार कर देता था। उसने कुछ सहकर्मियों को धर्मांतरण के लिए उकसाया। वह लोगों के पहनावे पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी करता था। उसके इस रवैए से तंग आकर उसे नौकरी से निकाल दिया। बाद में पता चला कि उसने एक व्यक्ति के साथ वित्तीय धोखाधड़ी भी की थी। आज ब्रिटेन में कई लोग 'रूल ब्रिटानिया', 'इंग्लैंड टिल आई डाई' और 'वी वांट आवर कंट्री बैक' जैसे नारे लगा रहे हैं तथा सड़कों पर 'नाजी सैल्यूट' कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री स्टार्मर को पता लगाना होगा कि इसकी जड़ में क्या है, क्योंकि कुछ दशक पहले ब्रिटेन में ऐसे दृश्यों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।