हौसला बढ़ाएं
जब कोई विद्यार्थी कोटा आता है तो उसकी यह ख्वाहिश होती है कि वह सफल होकर ही लौटे
विद्यार्थियों को जीवन में जीतना ही नहीं, गरिमापूर्ण तरीके से हार का सामना करना भी सिखाएं
इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों के लिए मशहूर राजस्थान के कोटा शहर में विद्यार्थियों की आत्महत्याओं की घटनाएं अत्यंत दु:खद और चिंताजनक हैं। इस मुद्दे को लेकर पहले भी विशेषज्ञों ने कई सुझाव दिए हैं, लेकिन कुछ हफ्तों के अंतराल के बाद ऐसी घटना हो जाती है, जो कई आंखों को नम कर जाती है। साथ ही अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाती है।
उन सवालों में सबसे अहम है- कुछ कोचिंग विद्यार्थी ऐसा कदम क्यों उठा रहे हैं? ऐसा क्या किया जाए, ताकि ये नौनिहाल कोई खौफनाक कदम न उठाएं? मीडिया रिपोर्टें बताती हैं कि इस साल अब तक 22 विद्यार्थियों ने यहां आत्महत्या कर ली है। वहीं, इनमें से भी दो विद्यार्थियों ने 27 अगस्त को अपनी ज़िंदगी खत्म कर ली। पढ़ाई का दबाव, टेस्ट में बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव, परिवार की आकांक्षाएं, दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों की उम्मीदें ... यह सबकुछ वह विद्यार्थी अकेला झेलता है।
निस्संदेह जब कोई विद्यार्थी कोटा आता है तो उसकी यह ख्वाहिश होती है कि वह सफल होकर ही लौटे। यहां प्रतिस्पर्धा के माहौल में उसे पढ़ाया गया विषय याद रखने के साथ ही समय-समय पर होने वाले टेस्ट में बेहतर प्रदर्शन भी करना होता है। इस बीच कहीं कोई बात समझ में न आए, टेस्ट में कम नंबर आ जाएं, साथियों से पिछड़ जाए, खुद की योग्यता पर संदेह होने लगे, काफी कोशिशों के बावजूद अनुकूल परिणाम न आए तो विद्यार्थी तनावग्रस्त हो जाता है। फिर उसके मन में खुद के लिए नकारात्मक धारणाएं घर करने लगती हैं।
वह सोचने लगता है- अब परिवार को क्या जवाब दूंगा? मेरे दोस्त क्या कहेंगे? वे चिढ़ाएंगे कि डॉक्टर/इंजीनियर बनने कोटा गया था, क्या हुआ? रिश्तेदारों से कैसे मिलूंगा? पड़ोसियों से कैसे बात करूंगा?
उधर पढ़ाई, कोचिंग, टेस्ट का दबाव बढ़ता जाता है और वह बच्चा अपने मन की बात किसी के साथ साझा नहीं कर पाने के कारण अंदर ही अंदर घुटन महसूस करता रहता है। उसे आशंका होती है कि अगर वह दोस्तों के सामने अपनी कमजोरी जाहिर करेगा तो उसे ठीक नहीं समझा जाएगा। अगर वह परिजन से कहेगा तो उन्हें अपने अरमानों पर पानी फिरता नजर आएगा, जिन्होंने यहां भेजने में काफी रुपए खर्च कर दिए। वह किससे मिले, क्या करे?
अगर इस दौरान संबंधित विद्यार्थी को हिम्मत दी जाए, उसका हौसला बढ़ाया जाए, सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया जाए तो वह तनाव से उबर कर पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। कुछ बच्चों के अवसादग्रस्त होने की एक और बड़ी वजह उनका परिवार से दूर होना है। चूंकि कोटा में कोचिंग के लिए आने वाले ज्यादातर विद्यार्थी दूसरों शहरों व गांवों से होते हैं। इससे पहले वे अपने परिवारों के साथ रहते थे, जहां उन्हें माता-पिता और बड़ों से स्नेह मिलता था।
वहां से एक नए शहर में आकर तालमेल बैठाने में समय लगता है। चारों ओर प्रतिस्पर्धा का वातावरण देखकर उन पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने और माता-पिता के सपनों को पूरा करने का काफी दबाव आ जाता है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि इन विद्यार्थियों को ऐसा वातावरण उपलब्ध कराया जाए, जो तनाव और अवसाद से उबरने में मदद करे।
विद्यार्थियों को जीवन में जीतना ही नहीं, गरिमापूर्ण तरीके से हार का सामना करना भी सिखाएं। बड़े से बड़े योद्धा के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब उसे मनचाहे परिणाम नहीं मिलते। इसका यह अर्थ तो नहीं कि वह योद्धा वीर नहीं था। बल्कि यही वह समय होता है, जब उसकी वीरता की परख होती है। उसे हिम्मत बटोरकर फिर तैयारी करनी चाहिए और दुगुने उत्साह के साथ मैदान में उतरना चाहिए।
ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, जब लोगों को निराशा और असफलता ने आ घेरा, लेकिन हिम्मत के साथ की गई मेहनत से उन्हें सफलता मिली। कठिन क्षण जीवन में आते हैं, चले जाते हैं। ये स्थायी नहीं हैं। इनके वशीभूत होकर ऐसा कोई फैसला नहीं लेना चाहिए, जो परिवार को ग़मगीन कर जाए।
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