रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता

विदेशी कंपनियां हथियारों का धंधा इसलिए नहीं कर रहीं, क्योंकि वे दुनिया में शांति स्थापित करना चाहती हैं

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता

एक ओर तो अमेरिका भारत से मैत्री का दावा करता है, लेकिन दूसरी ओर पाकिस्तान को हथियार भी देता रहता है

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आत्मनिर्भरता की जरूरत पर जोर दिया है, जो वर्तमान परिस्थितियों में अत्यधिक प्रासंगिक है। वास्तव में आत्मनिर्भरता की अवधारणा सिर्फ राजनीतिक, आर्थिक और कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। यह अत्यंत व्यापक है। 

Dakshin Bharat at Google News
जब बात रक्षा क्षेत्र की हो तो यह अनिवार्यता की श्रेणी में आनी चाहिए। भारत ने विश्व की ओर सदैव सहायता का हाथ आगे बढ़ाया है, लेकिन जब हमें जरूरत पड़ी तो कुछ देशों ने इसे सुनहरे मौके की तरह भुनाया था। फिर चाहे वह साल 1971 का युद्ध हो या 1999 का कारगिल युद्ध। उन्होंने सख्त जरूरत पड़ने पर हमें रक्षा उपकरण देने से इन्कार कर दिया था। जब दिसंबर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में आम जनता पर पाकिस्तानी फौज अत्याचार कर रही थी, तब अमेरिका ने उसे फटकार लगाने के बजाय भारत को अपने सातवें बेड़े की धमकी दी थी। पाकिस्तानी फौज ने भारत पर हमले में अमेरिकी टैंकों और हथियारों का इस्तेमाल किया था। 

इसी तरह कारगिल युद्ध में कई देशों ने मौके का फायदा उठाने की भरपूर कोशिशें की थीं। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक एक कार्यक्रम में कह चुके हैं कि उस दौरान जहां कहीं से भी हथियार या गोला-बारूद खरीदना चाहा, कंपनियों ने, भले ही वे हमारे मित्र देश की हों, फायदा उठाना चाहा था। 

भारत ने एक विदेशी कंपनी से डेनेल गन खरीदने की कोशिश की तो वह इसके लिए तैयार हो गई। बाद में यह कहकर अपने वादे से पलट गई कि उसके पास तो पुराने हथियार हैं और वे ही भारत भेजे जाएंगे। चूंकि युद्ध में काफी मात्रा में गोला-बारूद की जरूरत थी, तो एक विदेशी कंपनी ने जो माल पहुंचाया, वह सत्तर के दशक का था। स्पष्ट है कि उस कंपनी ने इस बहाने पुराना माल खपाया था, जिसे सामान्य परिस्थितियों में कोई नहीं खरीदता।

कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठियों को ऊंचाई का फायदा मिल रहा था। वे बंकर या चट्टान की ओट में बैठकर हमारे जवानों को नुकसान पहुंचा रहे थे। तब हवाई हमलों का फैसला लिया गया। उस सिलसिले में सैटेलाइट इमेज की जरूरत थी। उसके हर फ्रेम की कीमत करीब 36 हजार रुपए थी। जब फ्रेम भारत ने खरीदे तो पता चला कि उनकी उपयोगिता नहीं है, चूंकि वे तीन साल पुराने थे। 

अगर उस समय हम रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होते तो भारतीय जवानों का जीवन अधिक सुरक्षित होता और पाकिस्तानी घुसपैठियों पर और ज्यादा ताकत से प्रहार होता। हमें इन दोनों युद्धों के अनुभवों से सबक लेना चाहिए। इसका एक बड़ा सबक यह भी है कि अपनी रक्षा के लिए विदेशों पर निर्भरता नहीं होनी चाहिए या कम से कम होनी चाहिए। हमारी सेनाओं के लिए उच्च गुणवत्ता की रक्षा सामग्री और उपकरणों का निर्माण भारत में ही होना चाहिए। 'मेक इन इंडिया' से ही भारत की सुरक्षा पुख्ता की जा सकती है। 

विदेशी कंपनियां हथियारों का धंधा इसलिए नहीं कर रहीं, क्योंकि वे दुनिया में शांति स्थापित करना चाहती हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ कमाना है। दुनिया में जितनी अशांति होगी, उतनी ही उनके खजाने में धनवर्षा होगी। जब वे यह देखती हैं कि भारत को किसी उपकरण या सामग्री की सख्त जरूरत है तो उस समय उनके लिए लॉटरी लग जाती है। वे खूब चांदी कूटना चाहती हैं। 

एक ओर तो अमेरिका भारत से मैत्री का दावा करता है, लेकिन दूसरी ओर पाकिस्तान को हथियार भी देता रहता है! यह दोहरी नीति इसलिए है, ताकि भारत पर दबाव बना रहे और वह हथियार भी खरीदता रहे। भारत की सुरक्षा, स्वतंत्रता और संप्रभुता कायम रखने के लिए बहुत जरूरी है कि रक्षा क्षेत्र में शोध और निवेश को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा जाए। इसमें कुछ समय लग सकता है, लेकिन भारत इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम है।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download