सुरक्षा बलों की सतर्कता

जब साल 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था तो पाकिस्तान में हर्ष की लहर थी

सुरक्षा बलों की सतर्कता

तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता तो हथिया ली, लेकिन उसके पास शासन के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं हैं

भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का यह बयान कि 'कश्मीर में किसी अफगान तालिबान ने घुसपैठ नहीं की', राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसका श्रेय हमारे सुरक्षा बलों की सतर्कता को जाता है। साथ ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंधों का भी इसमें अहम किरदार है। 

जब साल 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था तो पाकिस्तान में हर्ष की लहर थी। वहां राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर यह चर्चा होने लगी थी कि अब तालिबान हमें 'कश्मीर' लेकर देंगे। भारत में भी राष्ट्रीय सुरक्षा को और मजबूत करने की मांग होने लगी थी। चूंकि पूर्व में जब तालिबान का निर्माण किया गया था तो उसके पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और पाक फौज व आईएसआई की बड़ी भूमिका थी। 

तत्कालीन पाकिस्तानी सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया-उल हक़ की मंशा थी कि जिन लड़ाकों को पहले अफगानिस्तान में सोवियत फौजों से भिड़ने के लिए भेजा जाएगा, जब वहां मंसूबा पूरा होगा तो उनका रुख कश्मीर की ओर किया जाएगा। चूंकि जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से पाकिस्तान के इशारे पर आतंकवाद फैलाया जाता रहा है, जो हाल के वर्षों में काफी नियंत्रण में है। 

ऐसे में तालिबान के अफगानिस्तान में दोबारा सत्ता में आने से सुरक्षा को लेकर चिंता होना स्वाभाविक था। हालांकि भारतीय सेना की चिनार कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल एडीएस औजला ने स्पष्ट किया है कि 'जहां तक तालिबान 2.0 के बाद उत्पन्न हुईं आशंकाओं की बात है, कश्मीर में भी इसको लेकर चिंताए हैं, हालांकि ऐसा नहीं हुआ।'

तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता तो हथिया ली, लेकिन उसके पास शासन के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं हैं। देश में खाद्यान्न संकट पसरा हुआ है। दवाइयों की किल्लत है। ऐसे मुश्किल वक्त में जब कथित मानवाधिकार समर्थक देशों ने अफगानिस्तान की जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया था, भारत ने गेहूं, दवाइयां और जरूरी चीजें भेजीं। 

भारत ने अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से आम लोगों की हमेशा मदद करने की कोशिश की है। उधर, पाक ने अफगानिस्तान को हमेशा दर्द ही दिया है। एक आम अफगान, जो पाकिस्तान या विदेश में कहीं शरणार्थी के रूप में रह रहा है, अपनी कष्टपूर्ण स्थिति के लिए पाक को जिम्मेदार मानता है। 

अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाली फौजें गईं तो उसे रास्ता पाकिस्तान ने दिया था। बाद में जब कभी हवाई हमले हुए तो पाकिस्तान का नाम सामने आता रहा, क्योंकि पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने हवाई मार्ग की अनुमति दी थी। तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद पाक-अफगान सीमा पर भिड़ंत होने लगी थीं। आए दिन गोलीबारी में पाकिस्तानी फौज के जवान ढेर होने लगे थे। तालिबान पाक फौज की तारबंदी को नहीं मानता। उसके आतंकवादी जब-तब ऐसी बाड़ को उखाड़ फेंकते हैं। 

तालिबान के आगमन से पाक में हर्षित होने वाले लोगों को उस समय बड़ा झटका लगा था, जब टीटीपी के आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए थे। उनमें दर्जनों लोग मारे गए थे। आए दिन बम धमाकों के कारण पाक फौज और आईएसआई का काफी ध्यान अफगान सरहद की ओर रहा। वहीं, पाक की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। 

ऐसी सूरत में तालिबान द्वारा भारत के खिलाफ पाक की 'मदद' की आशंका कम ही नजर आती है। पाकिस्तान खुद के आतंकवादी, मादक पदार्थ और हथियार भेजने के प्रयास करता रहेगा। इसके मद्देनजर सुरक्षा बलों को और सतर्क रहना होगा।

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