क्या करेंगे मुनीर?

रावलपिंडी के जनरल चाहते हैं कि किसी भी तरह से डॉलर आ जाएं

क्या करेंगे मुनीर?

पाक में तख्तापलट की आशंकाओं को बल मिल रहा है

पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और फ़ौज के बीच बढ़ते टकराव के साथ हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं। इमरान चाहते हैं कि तुरंत चुनाव हों, क्योंकि जिस तरह उनके आह्वान पर कार्यकर्ता हुड़दंग मचा रहे हैं, उससे उन्हें लगता है कि यह सब वोट में तब्दील हो जाएगा। वहीं, फौज किसी भी तरह मामले को लंबा खींचना चाहती है, ताकि इमरान की लोकप्रियता में कमी आए और मुल्क की अर्थव्यवस्था भी थोड़ी बेहतर हो जाए। पाक की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था की मार फौज और आईएसआई पर भी पड़ रही है। 

अब तक मनमाने तरीके से खजाने की मलाई खाने वाले जनरल, ब्रिगेडियर और सैन्य अधिकारी इस बात से खफा हैं, क्योंकि सत्तारूढ़ शहबाज सरकार मजबूरी में ही सही, फौज के खर्चों में कटौती करना चाहती है। सैन्य अधिकारियों को यह नागवार गुजर रहा है, क्योंकि उनके ऐशो-आराम तब तक ही बढ़िया ढंग से चल सकते हैं, जब तक बाहर से डॉलर आते रहें। अभी पश्चिमी देशों का ध्यान यूक्रेन की ओर है। 

इसके अलावा अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग संकट छाया है। इस सूरत में पाक को मुफ्त के डॉलर देना उन्हें भारी पड़ सकता है। रावलपिंडी के जनरल चाहते हैं कि किसी भी तरह से डॉलर आ जाएं। इसके लिए रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई जा रही है। उन्होंने बयान दे दिया कि मुल्क में चुनाव के लिए धन नहीं है। 

इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि अगर पश्चिमी देश चाहते हैं कि यहां ‘लोकतंत्र’ रहे तो डॉलर भेजें। अन्यथा तख्तापलट हो सकता है या आतंकवादी संगठन विभिन्न इलाकों पर कब्जे का ऐलान कर सकते हैं। पाक को यह भ्रम है कि उसे बचाने की जिम्मेदारी उसके नेताओं की नहीं, बल्कि दुनिया की है। इसीलिए उसने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया।  

पाक में तख्तापलट की आशंकाओं को इस वजह से बल मिलना स्वाभाविक है, क्योंकि इस पड़ोसी मुल्क के इतिहास में इस समय फौज पर जितने जुबानी हमले हो रहे हैं, उतने कभी नहीं हुए। जो इमरान ख़ान तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बाजवा की शान में कसीदे पढ़ रहे थे, जब खुद की सरकार गिर गई तो उन्हें जमकर आड़े हाथों लेने लगे। 

इमरान ने पिछले दिनों ज़मान पार्क गतिरोध के नाम पर जो आगजनी और तोड़फोड़ करवाई, वह फौज के सामने उनका शक्ति प्रदर्शन था। वे पूर्व में कह चुके हैं कि मैं सत्ता से बेदखल होने के बाद अधिक खतरनाक हो जाऊंगा। लिहाजा वे खुद को ताकतवर दिखाने और पाक का एकमात्र जुझारू, ईमानदार व हितैषी नेता साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। अभी पाकिस्तान में जिस तरह के हालात हैं, उससे तय समय पर चुनाव होने मुश्किल हैं। 

बहुत संभव है कि फौज खराब अर्थव्यवस्था का बहाना बनाकर चुनाव टाल दे। इस तरह वह कमजोर शहबाज सरकार से अपने मनमाने फैसले करवाती रहेगी और इमरान को सत्ता से दूर रखने में सफल होगी। इसके लिए सेना प्रमुख जनरल मुनीर अपने शीर्ष कमांडरों के साथ बैठकों में व्यस्त हैं। माना जाता है कि जब पाक में कोई सेना प्रमुख शीर्ष कमांडरों से वार्ता करता है तो मामला गंभीर ही होता है। वहां सेना प्रमुख गुप्त बैठकें करते रहते हैं, जिनकी भनक आईएसआई और सरकार तक को नहीं लगती। 

वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में हारने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने ऐसी ही बैठकें की थीं, जिसके बाद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार को उखाड़ फेंका था। आज नवाज के भाई शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं और परवेज मुशर्रफ परलोक सिधार चुके हैं, लेकिन पाकिस्तानी फौज की फितरत वही है। अगर इमरान की वजह से हालात और बिगड़ गए, विदेशी कर्ज न मिलने से अर्थव्यस्था चौपट हो गई तथा टीटीपी के हमलों में तेजी आ गई तो जनरल मुनीर भी जनरल मुशर्रफ के नक्शे-कदम पर चलने से परहेज नहीं करेंगे।

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