बचपन में होने वाली अपंगता की 70 प्रतिशत वजह तंत्रिका संबंधी विकार: के सुधाकर
'खान-पान की मौजूदा आदतों, जीवन शैली और नींद के पैटर्न के कारण मानसिक स्वास्थ्य के मसले और गैर-संचारी रोग बढ़ रहे हैं'
उन्होंने कहा कि हमें स्कूली बच्चों से लेकर कामकाजी पेशेवरों तक जागरूकता पैदा करने की जरूरत होगी
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री के सुधाकर ने शनिवार को कहा कि न्यूरोलॉजिकल विकार बचपन में दिव्यांगता का लगभग 70 प्रतिशत योगदान करते हैं और इसके परिणामस्वरूप हमारे देश के विकास के लिए खतरा हो सकता है।
उन्होंने कहा कि खान-पान की मौजूदा आदतों, जीवन शैली और नींद के पैटर्न के कारण मानसिक स्वास्थ्य के मसले और गैर-संचारी रोग बढ़ रहे हैं।सुधाकर ने कहा कि अब हम देखते हैं कि सभी आयु समूहों में युवाओं से लेकर वयस्कों और वरिष्ठ नागरिकों तक, हम बहुत सारे मानसिक स्वास्थ्य मसलों को देख रहे हैं। इसके कारण जीवन की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है।
सीओएमएचएडी (कॉमनवेल्थ एसोसिएशन फॉर हेल्थ एंड डिसएबिलिटी) के तीसरे भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधित करते हुए मंत्री ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल किसी भी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मंत्री ने कहा कि भारत में न्यूरोलॉजिकल मसलों का बोझ लगातार बढ़ रहा है और यह आर्थिक और सामाजिक रूप से हमारे देश की वृद्धि और विकास के लिए खतरा बन सकता है। मनोभ्रंश, पक्षाघात स्ट्रोक, मिर्गी आदि सहित मानसिक स्वास्थ्य और न्यूरोलॉजिकल मसलों में बढ़ोतरी हुई है।
उन्होंने कहा कि हमें स्कूली बच्चों से लेकर कामकाजी पेशेवरों तक इन मसलों के बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत होगी। न्यूरोलॉजिकल विकार बचपन में दिव्यांगता के बोझ का लगभग 70 प्रतिशत योगदान करते हैं।
उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि राज्य सरकार ने इसे बहुत लगन से उठाया है और एनआईएमएचएएनएस (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस) के साथ मिलकर 'हब एंड स्पोक' मॉडल विकसित किया है। सुधाकर ने कहा, इसका मतलब यह है कि एनआईएमएचएएनएस एक हब के रूप में काम करेगा और सभी जिलों में पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य के मसलों को संबोधित करने के लिए एकसाथ काम करने के लिए काम करेंगे।
उन्होंने कहा कि हम मानसिक स्वास्थ्य जरूरतों वाले रोगियों के निदान और परामर्श के लिए पीएचसी में एमबीबीएस डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।