शत्रुबोध
भारतीयों में प्राय: शत्रुबोध का अभाव रहा है
विदेशी आक्रांता हमारी उदारता, मित्रता एवं नम्रता का दुरुपयोग करते रहे हैं
किसी भी युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है — 'शत्रुबोध' अर्थात् हमें इस बात का बोध हो कि हमारा शत्रु कौन है। यदि शत्रुबोध नहीं है तो कोई योद्धा कितना ही शक्तिशाली, कितना ही साधन-संपन्न क्यों न हो, विजयश्री उससे दूर ही रहती है। जिसे शत्रुबोध हो गया, जिसने अपने सिद्धांतों, रणनीतियों एवं उद्देश्यों के संबंध में स्पष्टता प्राप्त कर ली, वह विजयपथ पर निरंतर आगे बढ़ता जाता है। हम भारतीयों में प्राय: शत्रुबोध का अभाव रहा है। इस कारण विदेशी आक्रांता हमारी उदारता, मित्रता एवं नम्रता का दुरुपयोग करते रहे हैं।
भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने से लेकर कई वर्षों/दशकों तक हम यही आशा पालते रहे कि आज नहीं तो कल, चीन और पाक सुधर जाएंगे। अब जबकि वर्ष 2022 समाप्त होने को है, विश्व अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, अमेरिका समेत हर देश में रोजगार, स्वास्थ्य, घरेलू बजट की स्थिति चिंताजनक है, हमारे ये दोनों पड़ोसी अपनी जनता के कल्याण पर ध्यान देने के बजाय इस षड्यंत्र में लिप्त हैं कि भारत को विकास करने से कैसे रोका जाए।ये रक्त-पिपासु एवं आसुरी प्रवृत्ति वाले हैं, जिन्हें किसी के सुख से सुख नहीं मिलता, अपितु दूसरों का दु:ख देखकर ही इन्हें आनंद की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल में जब ऋषि-मुनि यज्ञ करते थे तो आसुरी शक्तियां अपवित्र वस्तुएं फेंक कर उसे भंग करने का कुप्रयास करती थीं। श्रीराम ने उनके विरुद्ध धनुष उठाया था। जब समुद्र ने मार्ग नहीं दिया, तब श्रीराम ने धनुष उठाया था।
इसीलिए गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है कि भय बिन प्रीत नहीं होती। इस संदेश को आत्मसात् करने में हमने ही विलंब कर दिया। आज शत्रु हम पर प्रबल होने/दिखने का अवसर ढूंढ़ रहा है। पूर्व में चीन तो पश्चिम में पाकिस्तान इस फिराक में है कि कब किसी भारतीय को लहूलुहान किया जाए, उसके जीवन का हरण कर लिया जाए। उनके लिए आप हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी ... नहीं, मात्र भारतीय हैं। इसलिए हमें प्रत्येक नागरिक में शत्रुबोध उत्पन्न करना होगा, ताकि अपने देश एवं देशवासियों को सुरक्षित रख सकें।
हमारी उदारता ने चीन-पाक को अत्यधिक उद्दंड बना दिया है। अब समय आ गया है कि इनके साथ न केवल बलपूर्वक, अपितु बुद्धिपूर्वक भी निपटा जाए। सैन्य ही नहीं, अपितु राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक ... हर मोर्चे पर इनसे युद्ध के लिए तैयार रहा जाए।
नोएडा की एक घटना हैरान कर देनेवाली है। एक ओर जहां हमारे सैनिक तवांग में चीनियों को पीटकर खदेड़ रहे हैं, वहीं देश में चीनी लोन ऐप और उगाही का जाल बढ़ता जा रहा है। नोएडा में ऐसे गिरोह का पर्दाफाश हो चुका है, जिसके बाद 46 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। ये ऐप आसानी से, परंतु अत्यधिक उच्च ब्याज दर पर लोन देती हैं। जब संबंधित व्यक्ति चुकाने में विलंब करता है या असमर्थ हो जाता है तो उसकी अश्लील फोटो वायरल करने की धमकी दी जाती है। क्या ये चीनी ऐप भविष्य में भारत की स्वतंत्रता तथा संप्रभुता के लिए खतरा नहीं बन सकतीं?
चीनी कंपनियां लोन देने के नाम पर श्रीलंका, पाकिस्तान और अफ्रीका के कई देशों में अर्थव्यवस्था की दुर्गति कर चुकी हैं। अगर भारत में उनके पांव जम गए तो क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं? इन ऐप के जाल में फंसकर लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं। इनसे पूरी तरह दूर रहने में ही भलाई है। सरकार को इन पर शिकंजा कसना चाहिए।
हमारा दूसरा दुष्ट पड़ोसी आर्थिक मामलों में तो कंगाली के कगार पर है, परंतु वह इंटरनेट के माध्यम से जनता के मन में विष घोलने में लगा हुआ है। भारत के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पाकिस्तान के एक ओटीटी मंच की वेबसाइट, दो मोबाइल ऐप, चार सोशल मीडिया अकाउंट, एक स्मार्ट टीवी ऐप पर प्रतिबंध लगाकर उचित ही किया है। इन दिनों पाक एक वेब सिरीज के नाम पर भारत में सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करना चाहता है। उसकी मंशा पर प्रहार करना समय की आवश्यकता है।
आज भी यूट्यूब पर ऐसे सैकड़ों वीडियो मौजूद हैं, जिनमें भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार को हवा दी जा रही है। पाकिस्तानी सेना ऐसी फिल्में बनाती है, जिनमें भारत के लिए अत्यधिक आपत्तिजनक शब्दों का उपयोग होता है। उन्हें लाखों व्यूज़ मिलते हैं। निस्संदेह इनमें बहुत बड़ी संख्या उन यूजर्स की है, जो भारत से हैं।
भारत में एक यूट्यूब चैनल (पाकिस्तानी ड्रामों के कारण) बहुत देखा जा रहा है। वह 'कश्मीर' के नाम पर पुरस्कार समारोह भी करता है और अलगाववाद को समर्थन देता है। ऐसी सामग्री पर बिना विलंब किए प्रतिबंध लगाना चाहिए। शत्रु से युद्ध करना सैनिक का ही दायित्व नहीं होता, जनता का भी होता है। सैनिक को तो शत्रुबोध है, क्या जनता को भी है?