संपादकीय: सराहनीय फैसला
संपादकीय: सराहनीय फैसला
बांग्लादेश की अदालत का एक और सराहनीय फैसला, जिसे ऐसे मामलों में नजीर कहा जाना चाहिए। एक साथ 14 आतंकवादियों को मृत्युदंड सुना दिया। आतंकवाद के खिलाफ ऐसा ही रुख अपनाए जाने की जरूरत है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इनमें से नौ अभी जेल में बंद हैं। बाकी फरार हैं जिनकी बांग्लादेशी एजेंसियों को तलाश है। अगर इनका सुराग लग जाता है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि ये भी एक दिन कानून के शिकंजे में होंगे। अदालत ने फैसला सुनाते समय किसी कट्टरपंथी संगठन का लिहाजा नहीं किया।
मामले की गंभीरता, तथ्य और प्रमाण के आधार पर सुनवाई की और करीब 21 साल बाद इंसाफ किया। ये आतंकवादी हरकत-उल-जिहाद बांग्लादेश के लिए काम कर रहे थे और प्रधानमंत्री शेख हसीना को जुलाई 2000 में उस समय बम से उड़ा देना चाहते थे जब वे एक रैली को संबोधित करने वाली थीं। पाकिस्तान से मुक्ति पाने के बाद यह पड़ोसी देश किसी तरह गुजारा करते हुए अपने पैरों पर खड़ा हो रहा था कि पाकिस्तान की नापाक हरकतों का शिकार हो गया।
आईएसआई के इशारे पर यहां वही खेल दोहराया जाने लगा जिसके लिए यह एजेंसी बदनाम है। कट्टरपंथ की फसल ने बांग्लादेश की फिजाओं में जहर घोलना शुरू कर दिया था। भारत बांग्लादेशियों की घुसपैठ से पहले ही परेशान रहा है। कट्टरपंथी इधर आने लगें तो यहां सामाजिक सौहार्द के लिए चुनौती बन सकते हैं। इन्हीं वर्षों में यहां कई संगठन पनपे जिनका काम धर्म के नाम पर नफरत को बढ़ावा देना था। हिंदुओं के घर जलाए जाने लगे। भारत के खिलाफ माहौल बनने लगा था। चूंकि शेख हसीना भारत के साथ मधुर संबंध रखने की पक्षधर हैं, इसलिए वे भी निशाने पर आ गईं।
उनकी हत्या के इरादे से 76 किलोग्राम का टाइम बम इस्तेमाल किया गया था। यह स्टेज से करीब 50 फीट नीचे लगाया गया था ताकि किसी की नजर न पड़े और जब शेख हसीना यहां भाषण दें तो धमाका कर दिया जाए। शेख हसीना सौभाग्यशाली थीं जो बम का खुलासा हो गया वरना बेनजीर भुट्टो की तरह दुनिया से रुख्सत कर दी जातीं और कातिल खुले घूम रहे होते। कोटलीपाड़ा केस के नाम से चर्चित उक्त मामला यह भी बताता है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथ कितनी बड़ी समस्या है। इससे पहले, शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान और अनेक परिजन की एक साजिश के तहत हत्या कर दी गई थी।
शेख हसीना के बारे में यह दुष्प्रचार किया जाता है कि वे धर्म के खिलाफ हैं और भारत के प्रभाव में आकर सेकुलरिज्म को समर्थन देती हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो शेख हसीना बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति नरम रवैया रखती हैं, जो कट्टरपंथियों को सख्त नापसंद है। बांग्लादेशी अदालत का यह फैसला ऐसे कट्टरपंथियों को चेतावनी है कि वे कानून से बड़े नहीं हैं। जो कुछ पाकिस्तान में दोहराया जा रहा है, अगर वही बांग्लादेश में दोहराने का दुस्साहस किया तो कानून अपना काम करेगा।
इस फैसले के बाद नैतिकता को लेकर कुछ चर्चा शुरू हो गई। चूंकि जज अबू जफर मोहम्मद कमरूज्जमां ने अपने फैसले में यह लिखा है कि मिसाल कायम करने के लिए इस फैसले को फायरिंग दस्ता लागू करेगा यानी दोषियों को गोली मारी जाएगी, वह भी सार्वजनिक रूप से। जज का विचार है कि इससे आतंकवादियों के बीच कड़ा संदेश जाएगा। हालांकि अभी इस मामले के ऊपरी अदालतों में जाने के रास्ते खुले हैं और संभव है कि वहां सार्वजनिक रूप से गोली मारने का आदेश पलट दिया जाए।
अगर इन आतंकवादियों को फांसी पर लटकाया जाता है तो भी कठोर संदेश जाएगा और यह कट्टरपंथियों को हतोत्साहित करने की दिशा में एक कदम होगा। बांग्लादेश को भारत के साथ मधुर संबंध रखते हुए अपने देश में कट्टरपंथ को सख्ती से नकेल डालनी होगी, ऐसे तत्वों को कानून के कठघरे में खड़ा करना होगा और कठोर सजाएं देकर मिसाल कायम करनी होगी। प्रगति की राह में उल्लेखनीय गति पकड़ चुका बांग्लादेश कट्टरपंथियों को सजा देने में चूका तो इसके अफगानिस्तान, पाकिस्तान बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
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