कर्म का ऋण चुकाने का पर्याप्त साधन है वर्षीतप: नरेशमुनि

गुरु ज्येष्ठ पुष्कर जैन चेरिटेबल ट्रस्ट ने करवाए शताधिक सामूहिक वर्षीतप पारणे

कर्म का ऋण चुकाने का पर्याप्त साधन है वर्षीतप: नरेशमुनि

शरीर की आवश्यकता है भोजन और आत्मा की आवश्यकता है भजन

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के कुम्बलगुड़ स्थित तुलसी चेतना केन्द्र में गुरु ज्येष्ठ पुष्कर जैन चेरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में राष्ट्रसंत उपप्रवर्तक श्रीनरेशमुनिजी, शालिभद्रमुनिजी व साध्वीश्री सत्यप्रभाजी, सुशीलकंवरजी, दर्शनप्रभाजी, सुप्रभाश्रीजी, मंगलज्योतिजी, विपुलदर्शनाश्रीजी, आगमश्रीजी और चैतन्यश्रीजी की निश्रा में साधना के शिखर पुरुष गुरु पुष्कर संयम शताब्दी वर्ष व अक्षय तृतीया के मंगल अवसर पर पारणोत्सव एवं श्रमण संघ स्थापना दिन शताधिक सामूहिक वर्षीतप पारणा का आयोजन किया गया| 

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इस मौके पर १२० तपस्वियों ने वर्षीतप के पारणे किए| इस पारणोत्सव के मौके पर राष्ट्रसंत उपप्रवर्तक श्रीनरेशमुनिजी ने कहा कि तपस्या कर्म का ऋण चुकाने का पर्याप्त साधन है| तप से शरीर को शुद्ध करने, मन को शुद्ध करने, क्षय को धीमा करने और योग्यता में वृद्धि करने की संभावना है| 

उन्होंने कहा कि शरीर की आवश्यकता है भोजन और आत्मा की आवश्यकता है भजन| शरीर इस जन्म का साथी, आत्मा जन्म जन्म का साथी है| शरीर पांच भूतों से बना और पांच भूतों में विलीन हो जाना है| मुनिश्री ने कहा हमें शरीर का शोषण और आत्मा का पोषण करना है| मुनिश्री कहा तप के माध्यम से हमें सिर्फ तन को नहीं तपाना है अपितु मन को सरल बनाना है| मुनि ने सभी तपाराधिक-तपाराधिकाओं की अनुमोदना की|

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