विविधता की जड़ें
पित्रोदा की चौतरफा आलोचना हुई, जो कि होनी ही थी
चुनावी मौसम में पित्रोदा अपने बयानों से पार्टी की काफी किरकिरी करवा चुके हैं
खुद को दूरसंचार के क्षेत्र का आविष्कारक, उद्यमी, विकास विचारक, नीति-निर्माता और लेखक बताने वाले सैम पित्रोदा को अचानक क्या सूझी कि वे भारत की विविधता बताते-बताते लोगों का संबंध चीनियों, अरबों, गोरों और अफ़्रीकियों से जोड़ बैठे? उन्हें पता नहीं था कि 'समानता स्थापित' करने की ऐसी कोशिश क्या रंग लाएगी? पित्रोदा की चौतरफा आलोचना हुई, जो कि होनी ही थी। कांग्रेस ने भी उनके बयान से पल्ला झाड़ लिया था। जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि 'सैम पित्रोदा द्वारा भारत की विविधताओं को जो उपमाएं दी गई हैं, वे अत्यंत ग़लत व अस्वीकार्य हैं ... भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इन उपमाओं से अपने आप को पूर्ण रूप से अलग करती है', तो ऐसे कयास लगाए जाने लगे थे कि अब पित्रोदा की कुर्सी संकट में पड़ने वाली है। आखिर में उन्हें इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया। चुनावी मौसम में पित्रोदा अपने बयानों से पार्टी की काफी किरकिरी करवा चुके हैं। अगर वे आखिरी चरण के मतदान तक इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहते तो पार्टी को और मुसीबत में डालते। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष ने इस्तीफा स्वीकार करने में देर नहीं लगाई! पहले मणिशंकर अय्यर ऐसे बयान देते थे, जो पलटकर कांग्रेस को ही घायल करते थे। उनसे पहले दिग्विजय सिंह ऐसे 'शब्दबाण' छोड़ने के लिए मशहूर थे। अब ये दोनों नेता तो कहीं-न-कहीं चुप्पी साधने का अभ्यास करते दिख रहे हैं, लेकिन उनकी कमी पित्रोदा ने पूरी कर दी। वे भारत की विविधता का वर्णन करना चाहते थे तो इसके हजारों तरीके थे। उन्हें चीनियों, अरबों, गोरों और अफ़्रीकियों से ऐसा संबंध जोड़ने की क्या जरूरत थी?
पित्रोदा यह कह सकते थे कि 'दुनिया के सभी इन्सानों का खून एक जैसा है, सुख-दु:ख में सभी एक जैसा महसूस करते हैं, हमारे सामने कई चुनौतियां भी एक जैसी हैं, जिनमें पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जल संकट, बेरोजगारी आदि प्रमुख हैं ... हम सामूहिक प्रयासों से धरती को और बेहतर जगह बना सकते हैं ...' लेकिन वे चीनियों, अरबों, गोरों और अफ़्रीकियों तक चले गए! क्या पित्रोदा को नहीं मालूम था कि उनके इस बयान पर लोग किस तरह प्रतिक्रिया देंगे? भारतीय ऋषियों-मुनियों की संतानें हैं। भले ही उन्होंने कालांतर में किसी कारणवश अपनी पूजन-पद्धति बदल ली। आज भी ऐसे कई खानदान हैं, जिन्होंने अपनी पूजन-पद्धति तो बदली, लेकिन अपनी 'असल' पहचान को कायम रखा। वे वही उपनाम लगाते हैं, जो उनके पूर्वज लगाया करते थे। जिस देश में लोग अपने कुल और पहचान के चिह्नों को लेकर इतने सजग हों, वहां एक वरिष्ठ नेता उनका संबंध चीनियों, अरबों, गोरों और अफ़्रीकियों से बताएं तो उनके इस बयान को सख्त नापसंद ही किया जाएगा। एक सामान्य विद्यार्थी, जिसे इतिहास की बहुत गहरी समझ न हो, वह भी इस तथ्य से भलीभांति परिचित होगा कि चीन, अरब और यूरोपीय देशों की ओर से भारत पर आक्रमण हुए थे। उन्होंने भारतवासियों का लहू बहाया था। भारतीय अपनी पहचान उन विदेशी आक्रांताओं से नहीं, बल्कि भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक देवजी और अनेक संतों-महापुरुषों से जोड़कर देखते हैं। उनके लिए चीनी आक्रांता थे, अरब आक्रांता थे। यूरोपीय आक्रांताओं से निजात पाए तो कुछ ही दशक हुए हैं। इसके बावजूद इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष ऐसे बयान देंगे तो उनकी पार्टी के लिए स्थिति को संभालना सहज नहीं होगा। पित्रोदा को 'विरासत टैक्स' संबंधी बयान देने के बाद ही तौबा कर लेनी चाहिए थी, लेकिन वे विविधता की जड़ें तलाशते-तलाशते पार्टी की जड़ें ही हिला बैठे!