“कोरोना-वोरोना कुछ नहीं”, इस धारणा की धज्जियां उड़ीं

“कोरोना-वोरोना कुछ नहीं”, इस धारणा की धज्जियां उड़ीं

“कोरोना-वोरोना कुछ नहीं”, इस धारणा की धज्जियां उड़ीं

'दक्षिण भारत राष्ट्रमत' में प्रकाशित आलेख।

बचाव के दिशानिर्देशों की अवहेलना ने बिगाड़े हालात

श्रीकांत पाराशर
दक्षिण भारत राष्ट्रमत

कोरोना-वोरोना कुछ नहीं है, सब बकवास है, इस धारणा की धज्जियां उड़ा दीं कोरोना ने। कुछ लोग कहते थे कि कोरोना कहां है, सब नेताओं की सैटिंग है जो कोरोना के नाम पर जारी फंड को हड़प जाएंगे। किसी ने कहा, अस्पतालों को लूटने की छूट दी गई है और सरकार व अस्पताल मिलकर जनता को लूट रहे हैं, कोरोना एक सामान्य वायरस है जिसका हौव्वा खड़ा किया जा रहा है। कुछ तो अभी भी व्यंग्य से कहते हैं कि नेताओं की रैलियों में जाने से कोरोना नहीं होगा और जहां चुनाव नहीं हैं, उन प्रदेशों में सामान्य गतिविधियों पर भी पाबंदियां लगाई जा रही हैं क्योंकि कोरोना बंगाल में नहीं जाएगा।

मैं इन कथनों को पूरी तरह नकार नहीं रहा हूं कि इनमें कोई सच्चाई ही नहीं है। हां, कुछ हद तक गड़बड़ियां हो रही हैं, तो कार्रवाइयां भी हो रही हैं लेकिन नेताओं और अस्पतालों की सांठगांठ की आशंका के आधार पर हम अपने खुद के जीवन को जोखिम में डाल दें, यह कहां की बुद्धिमानी है? चुनावी रैलियों में लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं तथा सोशल डिस्टेंसिंग मेन्टेन नहीं कर रहे हैं तो हम भी क्यों करें, यह कौनसी दलील हुई? किसी भी कारण से कोई लापरवाही बरत रहा है तो हम भी कोरोना से बचाव के उपाय नहीं करेंगे, दिशानिर्देशों का पालन नहीं करेंगे। ऐसा करके खुद की जान तो दांव पर लगाएंगे ही, दूसरों को भी मुसीबत में डालने पर उतारू रहेंगे। इस सोच को क्या समझदारी कहा जाएगा? सच्चाई तो यह है कि जो कोरोना के अस्तित्व को सिरे से खारिज कर रहे थे, या इसका मखौल उड़ा रहे थे, उनमें से कुछ तो काल के गाल में समा चुके हैं।

इस बार का कोरोना वैरिएंट पहले चरण वाले कोरोना से ज्यादा घातक बताया जा रहा है। जिस तरह से यह फैल रहा है और संक्रमित होने वालों की संख्या बढ रही है, उससे तो इस बात की साफ पुष्टि हो रही है कि इस बार का कोरोना ज्यादा प्रभावशाली है। इतना ही नहीं, कोरोना से जान गंवाने वालों के नाम देखकर भी हम इस यथार्थ को स्वीकार कर सकते हैं क्योंकि कोरोना के कारण दुनिया छोड़कर जाने वालों में नेता हैं, युवा पत्रकार हैं, बड़े अधिकारी हैं, डाक्टर हैं, नर्सेज हैं, सामाजिक कार्यकर्ता हैं, सब वर्ग के लोग हैं। कोरोना की किसी से कोई पहचान नहीं है। जिनको अस्पताल में बेड, आक्सीजन और रेमडिसिवर इंजेक्शन के लिए सामान्य व्यक्ति की तरह मशक्कत नहीं करनी पड़ती है, वे भी अपनी जान नहीं बचा पा रहे हैं।

पूरे देश में हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं। देश की राजधानी दिल्ली की दयनीय हालत ने तो पूरे देश को डरा दिया है। दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो गत महिनों से मीडिया विज्ञापनों द्वारा कोरोना को भगा रहे हैं और दिल्लीवासियों को लगातार विश्वास दिला रहे हैं कि घबराने की जरूरत नहीं है। बार बार अदालतों की डांट से कुछ सीख लें तो बात अलग है। दिल्ली सरकार ने क्या किया और क्या नहीं, यह अलग चर्चा का विषय है। हम अभी उस पर फोकस नहीं करना चाहते।

अभी इस लेख के दो ही महत्वपूर्ण बिंदू हैं। एक, यह सोचना नादानी है कि कोरोना-वोरोना सब बकवास है। ऐसा सोचकर इस गंभीर बीमारी को नजरअंदाज करना और मौत को दावत देना निरी मूर्खता है। प्रधानमंत्री मोदी तो अनेक बार विभिन्न अवसरों पर, अलग अलग माध्यमों से जनता से अपील कर चुके हैं और कोरोना से आगाह कर चुके हैं परंतु बहुत से लोगों ने सरकार और प्रशासन को कोसने में वक्त गंवा दिया। जिन आयुवर्ग के लोगों को टीकाकरण का अवसर दिया वे भी घर पर आराम फरमाते रहे, टीके नहीं लगवाए। अब एक साथ घरों से निकल पड़े हैं तो टीकों की कमी आ गई है। अब धैर्य भी नहीं है कि टीके आने का इंतजार किया जाए। अफरातफरी बढाने में हर कोई योगदान दे रहा है।

बहरहाल, इस बात को स्वीकार करना होगा कि कोरोना का सेकेंड वैरियंट बहुत घातक है, सरकार इसके बचाव के लिए समय समय पर जो भी दिशानिर्देश देती है उन सबका सख्ती से पालन करना चाहिए और एक अनुशासित, जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए। ऐसा करना हमारे स्वयं के लिए तथा अन्य नागरिकों के हित में है। जिस तरह से हमें दूसरों के संक्रमण से बचना है उसी प्रकार यह भी ध्यान में रखना है कि हमारे कारण, हमारी लापरवाही के कारण कोई और व्यक्ति संक्रमित न हो जाए। बहुत सी बार कोरोना संक्रमित व्यक्ति को भी पता नहीं होता कि वह संक्रमित है भी या नहीं। ऐसे रोगी असिम्पटैमेटिक पेसेंट कहलाते हैं। ये अनजाने में भी संक्रमण फैलाते रहते हैं।

दूसरी बात, यह भी महत्वपूर्ण है कि कोरोना के कारण इतने भी ज्यादा न घबराएं कि हम कोरोना के प्रारंभिक चरण में उसकी जांच कराने से ही बचने लगें, हड़बड़ाहट में अपनी मर्जी अनुसार दवा लेने लगें, डर को अपने मन में गहरा बैठ जाने की इजाजत दे दें। यह समझने की जरूरत है कि समय रहते जांच करवा लेने से मामूली लक्षणों के आधार पर भी डाक्टर उचित सलाह देकर, आवश्यक दवाओं के साथ होम क्वारंटाइन रखकर इलाज कर सकते हैं। अस्पतालों में भी पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। जिन्हें सांस लेने में ज्यादा कठिनाई हो रही हो और आक्सीजन लेवल नीचे गिर रहा हो उनके लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी हो जाता है बशर्ते उन्हें अस्पताल में सुविधाएं मिल जाएं।

हर संभव प्रयासों के बाद भी मौतें हो रही हैं तो यही कहा जा सकता है कि इलाज के पहले ही कोरोना ऐसे लोगों को इतना नुकसान पहुंचा चुका होता है कि इलाज भी निष्प्रभावी ही रहता है। इसलिए कोरोना के इलाज से भी ज्यादा बेहतर यह है कि हम बचाव की कोशिश करें। यह ज्यादा आसान है। मास्क लगाएं। संभव हो तो डबल मास्क लगाएं। मास्क ठीक से लगाएं। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। हाथों को बार बार साफ करें। यदि संभव हो तो घर पर ही रहें, बाहर न निकलें।

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