बेघर जिंदगियां और हमारे शहर

बेघर जिंदगियां और हमारे शहर

मौसम बदल रहा है। जा़डे में प्रकृति सुंदर हो जाती है। इस नजारे के लिए दिल्ली का मुगल गार्डन आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है। लेकिन, इसी देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके लिए हर जा़डा मौत का पैगाम लेकर आता है। आप यदि रात में दिल्ली की स़डकों पर निकल जाएं, तो आपको एक दूसरी ही दिल्ली दिखेगी। उस दूसरी दिल्ली में लाखों लोग स़डक पर सोने का प्रयास कर रहे होते हैं। कौन हैं ये लोग? क्यों रहते हैं ये स़डकों पर? ये बेघर लोग हैं और इस श्रेणी के लोग केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि भारत के सभी ब़डे शहरों में मिल जाएंगे। भारत ही क्या, दुनिया के सभी शहरों में मिलेंगे लेकिन, अंतर यह है कि भारत में इनकी संख्या बहुत ज्यादा है और विकसित देशों की तरह यहां उनके लिए कोई सरकारी नीति नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, केवल दिल्ली में चार लाख से ज्यादा लोग चौबीस घंटे और सातों दिन स़डक पर रहते हैं। वहीं उनका खाना-पीना और सोना, सब कुछ चलता है। नई दिल्ली में आपको उनसे कम मुलाकात होगी, क्योंकि वहां तो गंदगी, गरीबी, मैलापन को दूर करने के लिए शुद्धोधन के पहरेवाले लगे रहते हैं। सो, ये लोग पुरानी दिल्ली में ज्यादा मिलते हैं। आप लाल किला और पुरानी दिल्ली स्टेशन के पास जाएंगे, तो कप़डे की पोटलियों की तरह आपको स़डक के दोनों तरफ फुटपाथ पर और कभी-कभी बीच में डिवाइडर पर भी मिल जाएंगे। पुरानी दिल्ली स्टेशन के ठीक सामने एक पार्कनुमा जगह है, जहां हजारों लोग रात में सोते हैं और उन्हें ओ़ढने-बिछाने के लिए कंबल जैसी कोई चीज, जिसे ठिया कहते हैं, रात भर के लिए किराये पर मिल जाती है। विडंबना देखिए कि कुछ को तो वह ठिया भी नसीब नहीं है। जा़ड़े की ठिठुरन में उनकी हालत आप समझ सकते हैं। महिलाओं के लिए बेघर होने का क्या मतलब है, यह समझा जा सकता है। बलात्कार उनके लिए आम बात है। इस देश में ब़डी संख्या में बच्चे भी बेघर हैं। उनके लिए तो यह नर्क से भी बदतर है। उनके साथ मार-पीट, यौन शोषण आदि सब कुछ होता है। दिल्ली में तो यह खबर आम है कि ड्रग रैकेट भी इससे जु़डा हुआ है। इनके बीच ड्रग्स बेची जाती है। जो कुछ ये कमाते हैं, उसे ड्रग माफिया को भेंट च़ढा देते हैं।। यह न समझें कि ड्रग ये अपनी मर्जी से लेते हैं क्योंकि इन्हें लती बनाने का एक पूरा तरीका है, जिसके जरिये इन्हें उस गंदगी में धकेला जाता है। अब सवाल है कि इनकी जिम्मेदारी किसकी है? यदि ये भी भारत के नागरिक हैं, तो इनका मानवाधिकार क्या है? यदि ये मजदूर हैं, तो इन्हें न्यूनतम मजदूरी दिलाने की जिम्मेदारी किसकी है? इनमें से ज्यादातर बिहार, झारखंड और बंगाल से आते हैं। क्या इन राज्यों का यह दायित्व नहीं बनता है कि वे अपने यहां से पलायन को रोकने का प्रयास करें?

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