बेंगलूरु। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोधी) कानून पर सुप्रीम कोर्ट के नजरिए में कोई बदलाव नहीं आता है तो केंद्र सरकार एक अध्यादेश जारी कर इन समुदायों के लोगों को इनका हक दिलाएगी। यह कहना है केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का। उन्होंने मंगलवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार ने इस कानून के बारे में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की समीक्षा के लिए याचिका दायर की है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस आदेश पर नरम रुख नहीं अपनाता है तो केंद्र इस कानून को इसके मूल स्वरूप में लागू करेगा। माना जा रहा है कि केंद्र में सत्तासीन भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के दलित समुदाय का चेहरा पासवान को भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति के तहत यहां के मैदान में उतारा है। पासवान ने भाजपा के मीडिया सेंटर में पत्रकारों के साथ बातचीत में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, ’’मैं एक चीज स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोधी) कानून पर दिया गया अपना आदेश वापस ले ले। अगर सुप्रीम कोर्ट पूर्व के कानून को लागू रखने की अनुमति नहीं देता है तो सरकार ने इसे प्रभाव में बनाए रखने के लिए एक अध्यादेश लाने का निर्णय लिया है। इस अध्यादेश में वर्ष १९८९ के कानून को अक्षरश: लागू करने का प्रावधान होगा। इस अध्यादेश में पूर्ववर्ती कानून का एक कॉमा या एक विराम चिह्न तक बदला नहीं जाएगा।’’ सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार द्वारा उचित समय पर उचित कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगता रहा है। इसके साथ ही भाजपा सरकार पर दलित विरोधी नीतियां अपनाने के आरोप लगाए गए हैं्। चूंकि कर्नाटक में दलित समुदाय के मतदाताओं की संख्या काफी ब़डी है (राज्य की कुल आबादी का १६.२ प्रतिशत) और कोई भी राजनीतिक पार्टी इस वोटबैंक की अनदेखी नहीं कर सकती, इसलिए भाजपा दलित विरोधी छवि से उबरने के लिए लगातार जतन कर रही है।